Quotes by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR in Bitesapp read free

DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR

DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR Matrubharti Verified

@dhirendra342gmailcom
(169)

“जब कोई बेटा गांव छोड़ता है, तो सिर्फ घर खाली नहीं होता —
एक मां की ज़िंदगी भी अधूरी हो जाती है।”

— Dhirendra Singh Bisht, “जब पहाड़ रो पड़े”

गांव के दरवाज़े सिर्फ लकड़ी के नहीं होते…
वे उम्मीदों के होते हैं।
हर बार जब एक बेटा शहर की ओर जाता है —
उसके पीछे एक मां का दिन वहीं ठहर जाता है।

वो थाली अब भी हर रोज़ सजती है।
वो आंगन अब भी सुबह धुलता है।
और वो खिड़की अब भी खुली रहती है —
बस इस उम्मीद में,
“शायद आज वो लौट आए।”

“जब पहाड़ रो पड़े” कोई कहानी नहीं —
हज़ारों माताओं की अधूरी ज़िंदगी का दस्तावेज़ है।

यह किताब उन रिश्तों की बात करती है
जो आज भी मोबाइल के “ठीक हूं मां” के जवाब से आगे कुछ नहीं पा पाते।

📘 अगर आपने कभी गांव छोड़ा है…
तो पढ़िए, क्योंकि किसी ने आज भी आपको भुलाया नहीं है।

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“ज़िन्दगी राख में मिल जायेगी एक दिन, फिर लाख का ख़ाक होना भी लाज़मी है।”
— धीरेन्द्र सिंह बिष्ट, लेखक : अग्निपथ 🔥📖

कभी सोचा है कि जिस ज़िंदगी को हम पल-पल सहेजते हैं, वो एक दिन बस एक मुट्ठी राख बन जाएगी?
फिर चाहे दौलत हो, शौहरत हो या नाम — सब धुएँ में उड़ जाएगा।

तो क्यों न कुछ ऐसा जिया जाए, जो ख़ाक होने से पहले आग बन जाए?
‘अग्निपथ’ एक ऐसी ही यात्रा है — संघर्ष से आत्मबल तक, अंधेरे से उजाले तक।

यह किताब सिर्फ़ पढ़ने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए है।
हर पन्ना आपको अपनी किसी ना किसी कहानी से जोड़ देगा।
हर शब्द आपको झकझोर देगा — सोचने पर मजबूर कर देगा कि
आप अपनी ज़िंदगी के हीरो हैं, कोई और नहीं।

📚 ‘अग्निपथ’ अब उपलब्ध है:
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“तुम्हारा वजूद तुम्हारी कोशिशों से है — किसी और की उम्मीद तुम्हें तोड़ सकती है।”
— धीरेन्द्र सिंह बिष्ट, लेखक: ‘वो आख़िरी पन्ना’

कई बार हम दूसरों की उम्मीदों का बोझ उठाते-उठाते खुद से दूर हो जाते हैं। किसी और के नजरिए से खुद को परखना, अपने होने की कीमत कम कर देना जैसा है। लेकिन सच यही है — तुम्हारा वजूद उन्हीं कोशिशों से बना है जो तुमने बिना शोर किए की हैं। वो सुबहें जब कोई जागा नहीं था, पर तुम खड़े थे। वो फैसले जो आसान नहीं थे, पर तुमने लिए।

दूसरे क्या सोचते हैं, क्या चाहते हैं — ये सब तुम्हारे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को परिभाषित नहीं कर सकते। उनकी उम्मीदें अगर तुम्हें तोड़ रही हैं, तो शायद वक़्त आ गया है अपनी कोशिशों पर भरोसा करने का।

क्योंकि अंत में, वही लोग पहचान पाते हैं जो खुद की पहचान बनाते हैं।

तुम वही हो — जितनी मेहनत तुमने की है, जितनी लड़ाइयाँ तुमने लड़ी हैं।
और यही वजूद तुम्हारा सबसे बड़ा सच है।

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📚 एक सपना… एक किताब… और अब सीमाओं से परे मेरी कहानी 🌍✍️

आज दिल बेहद भावुक है… क्योंकि जो सपना कभी सिर्फ मन के कोनों में पल रहा था, वो अब सच हो चुका है।

मेरी पहली किताब अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिक रही है और पहले 100 प्रतियाँ भी पाठकों तक पहुँच चुकी हैं।

शायद किसी के लिए यह सिर्फ एक आंकड़ा हो, लेकिन मेरे लिए यह संघर्ष, आत्म-विश्वास और न जाने कितनी रातों की मेहनत की गूंज है।

इस पल ने मुझे बेहद भावुक कर दिया है। सफलता की खुशी तो है ही, पर उससे ज़्यादा इस बात की संतुष्टि है कि मैंने कभी हार नहीं मानी। कई बार खुद पर शक हुआ, उम्मीदें डगमगाई, लेकिन कलम नहीं छोड़ी… और आज मेरे शब्द दुनियाभर के पाठकों तक पहुँच चुके हैं।

मेरी छोटी सी लिखने की जगह से उन घरों तक जिनसे मैं शायद कभी न मिल पाऊँ — यह किताब मेरे मन का एक टुकड़ा अपने साथ ले जाती है।

उन सभी लोगों का दिल से आभार जिन्होंने मुझ पर विश्वास रखा, एक शब्द प्रोत्साहन का दिया, या बस पूछा – “किताब कैसी चल रही है?”
यह सिर्फ मेरी नहीं, हमारी जीत है।

और उन सभी युवा लेखकों से कहना चाहता हूँ —
आपके शब्द मायने रखते हैं, आपका सपना मायने रखता है।
कभी हार मत मानिए।

कहानियाँ उड़ान भरती हैं, सपने हकीकत बनते हैं — बस लिखते रहिए। ✨

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“फोकटिया” — एक ऐसा नाम, जो समाज ने उस इंसान को दिया, जो सबसे ज़्यादा देने वाला था।
यह सिर्फ़ एक कहानी नहीं, एक आईना है — जिसमें हर कोई किसी न किसी मोड़ पर खुद को देख सकता है।

क्या आपने कभी ऐसा रिश्ता निभाया, जहाँ आप सब कुछ देते रहे — और बदले में सिर्फ़ खामोशी मिली?
“फोकटिया” उन लोगों की आवाज़ है जिन्हें हर किसी ने इस्तेमाल किया, पर कभी समझा नहीं।

लेखक धीरेन्द्र सिंह बिष्ट ने बेहद सादगी और सच्चाई से उस पीड़ा को काग़ज़ पर उतारा है, जो बोलती नहीं — बस दिल में चुभती है।

यह किताब आपको झकझोर देगी, रुलाएगी… और शायद वो सवाल पूछेगी जो आपने कभी खुद से भी नहीं पूछे।

📖 अगर कहानियों में सिर्फ़ सुखांत नहीं, सच्चाई भी खोजते हैं — तो “फोकटिया” आपके लिए है।

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🛒 लिंक बायो में है – पढ़िए वो आवाज़ जिसे दुनिया ने नज़रअंदाज़ किया, लेकिन वो अब शब्द बनकर लौट आई है।

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“सोच बदलना आसान है,
हालात बदलने में उम्र लग जाती है।”
— धीरेन्द्र सिंह बिष्ट | लेखक – आख़िरी पन्ना

कभी-कभी ज़िंदगी हमें वो सिखा देती है जो किताबें नहीं…
सोच तो उड़ान भर लेती है,
लेकिन हालात ज़मीन पर रेंगते रहते हैं।

ये पंक्तियाँ सिर्फ़ शब्द नहीं —
वो एहसास हैं जिन्हें हर वो इंसान समझता है,
जो बदलाव चाहता है…
पर रोज़ हालात से जूझता है।

🖋️ अगर ये पंक्तियाँ आपके भीतर कुछ हिला गई हों,
तो यकीन मानिए — “आख़िरी पन्ना” आपकी किताब है।

📖 C⏳S

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🔥 “हर रास्ता आसान नहीं होता, लेकिन हर मुश्किल मंज़िल की तरफ़ एक इशारा ज़रूर होती है।”
— अग्निपथ, धीरेन्द्र सिंह बिष्ट

“स्वार्थ सिर्फ मन का भ्रम है, और विचार मन की पूँजी —
हर वह शख़्स भीड़ से आगे निकल जाएगा जिसमें चाह होगी।”

अग्निपथ सिर्फ़ एक किताब नहीं, वो रास्ता है जहाँ पाठक अपने भीतर झाँकता है।
जहाँ शब्द सिर्फ़ शब्द नहीं, बल्कि हर लाइन एक अग्नि की लपट है, जो अंदर छुपी कमजोरी को जलाकर हौसले में बदल देती है।

📖 यह किताब उन सभी के लिए है —
जो कभी हार के क़रीब पहुँचे हैं,
जो कभी भीड़ में खो गए,
और उन सबके लिए जो अपने ‘अग्निपथ’ पर चलने का साहस रखते हैं।

अगर आप भी खुद को तलाश रहे हैं,
तो “अग्निपथ” आपके दिल से निकले हर सवाल का जवाब बन सकती है।

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📌 Link in bio — चलिए, खुद से मिलने निकलते हैं।

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“फोकटिया” — जब दोस्ती सिर्फ़ लेने तक सिमट जाए, और देने वाला एक दिन चुपचाप टूट जाए…

यह किताब सिर्फ़ एक कहानी नहीं, हम सबकी एक अनकही सच्चाई है।
राजीव और कमल की कहानी में वो हर रिश्ता है जहाँ हम कभी बिना शर्त देते रहे — वक़्त, भावनाएँ, भरोसा — लेकिन जब ज़रूरत पड़ी, जवाब मिला सिर्फ़ ‘खामोशी’।

लेखक धीरेन्द्र सिंह बिष्ट ने न केवल रिश्तों की परतों को उघाड़ा है, बल्कि आत्म-सम्मान और भावनात्मक ठगी के बीच की बारीक लकीर को भी बखूबी दिखाया है।

अगर आपके जीवन में भी कोई ऐसा है, जो मुफ़्त में आपकी अच्छाई का फायदा उठाता रहा, तो “फोकटिया” आपकी कहानी है — पढ़िए, महसूस कीजिए, और शायद खुद को फिर से पा लीजिए।

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🔗 Link in bio – ये सिर्फ़ एक किताब नहीं, आपकी चुप्पी की आवाज़ है।

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“एक ही जीवन है और उसमें अनगिनत स्वार्थ —
सब कुछ फ़ितरत तय करती है जीवन में।”
— धीरेंद्र सिंह बिष्ट, लेखक: अग्निपथ

हर इंसान एक ही जीवन लेकर आता है, लेकिन रास्ते हज़ार होते हैं — कुछ संघर्षों से भरे, कुछ आत्म-स्वार्थों से।
अग्निपथ उन्हीं रास्तों की कहानी है, जहाँ इंसान अपने भीतर की आग से लड़ता है… और फिर उस अग्नि में खुद को गढ़ता है।

यह सिर्फ़ एक किताब नहीं, यह एक दर्पण है — आपके विचारों का, आपकी फ़ितरत का, और उस आग का जो हम सबमें कहीं न कहीं जल रही है।

अगर आपने कभी खुद से लड़ाई लड़ी है…
अगर आपने कभी अपने स्वार्थों से ऊपर उठने की कोशिश की है…
तो “अग्निपथ” आपकी अपनी कहानी है।

📖 Now available on Notion Press & Amazon.

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