मुझको मुझ में ही मार दिया तूने,
ज़ख़्म ऐसा हर बार दिया तूने।
तेरी ख़ामोशी चीर गई मुझको,
जैसे दिल को ही तार-तार किया तूने।
मैं तो सांसों में बस रहा था कभी,
फिर क्यों पल में इनकार किया तूने?
तेरा वादा था साथ चलने का,
बीच रस्ते में ख़ार दिया तूने।
जिसने तुझसे वफ़ा निभाई थी,
उसी दिल को ही दरबार किया तूने।
अब न शिकवा, न आरज़ू कोई,
ख़ुद ही मुझसे इनकार किया तूने।
~~ARKAN
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