परिंदों को यहां पर आशियाना मिल नहीं सकता ।
सियासत कह नहीं सकती ये साखें जानती हैं ।।
हुकूमत की हकीकत को यूं ही कब तक छिपाओगे ।
हुआ कितना बखेड़ा है दीवारें जानती हैं ।।
मुहब्बत दिल में रखने से भला कुछ भी नहीं होगा ।
जवां बेबस भलां हों पर निगाहें जानती हैं ।।
यह आईना तुम्हारा है यह पत्थर भी तुम्हारे हैं ।
कि शायर मर नहीं सकता किताबें जानती हैं ।।
तेरी दीवानगी में यूं फिदा कितने हो गए होंगे ।
जमाना जानता है यह मजारें जानती हैं ।।
- आनन्द गुर्जर सहोदर