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Umabhatia UmaRoshnika

Umabhatia UmaRoshnika

@umabhatiaumaroshnika941412

आज फिर दिल ने तमन्ना की
रूह ने क्या खोया क्या पाया
मैं हूँ भी कि नहीं
दिल में ये सवाल आया
- Umabhatia UmaRoshnika

सात चक्र और जीवन-यात्रा

सात चक्र हमारे शरीर से भी जुड़े होते हैं और हमारी रूह (आत्मा) की यात्रा/विकास की सीढ़ियों से भी।

जैसे बचपन → किशोरावस्था → जवानी → परिपक्वता, वैसे ही चक्र भी हमारी आत्मा की यात्रा के पड़ाव हैं।

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🌈 सात चक्र और जीवन-यात्रा

1. मूलाधार (Root Chakra) –

जन्म और बचपन

सुरक्षा, परिवार, ज़मीन से जुड़ाव।

(बचपन में हमें सुरक्षा चाहिए, इसलिए यह पहला चरण है।)

2. स्वाधिष्ठान (Sacral Chakra) –

किशोरावस्था

भावनाएँ, रचनात्मकता, संबंध।

(इस उम्र में दोस्ती, आकर्षण और अपनी पहचान उभरती है।)

3. मणिपुर (Solar Plexus Chakra) –

युवा अवस्था

आत्मबल, निर्णय, “मैं कौन हूँ” का अहसास।

(यही समय है जब इंसान अपने फैसले लेना चाहता है।)

4. अनाहत (Heart Chakra) –

प्रेम और परिपक्वता

प्रेम, करुणा, दिल से जुड़ाव।

(यहीं से सच्चे रिश्ते और रूहानी प्रेम का आरंभ होता है।)

5. विशुद्धि (Throat Chakra) –

स्व-अभिव्यक्ति

अपनी आवाज़ दुनिया तक पहुँचाना, सच बोलना, रचनात्मकता।

(लेखन, कला, संवाद यहीं से फूटते हैं।)

6. आज्ञा (Third Eye Chakra) –

बुद्धि और अंतर्ज्ञान

दृष्टि, सत्य को देखना, भीतर की आवाज़ सुनना।

(यहीं से "inner whispers" आते हैं,

7. सहस्रार (Crown Chakra) –

रूह की परिपूर्णता

आत्मा और परमसत्य का मिलन।

(यानी जीवन का अंतिम पड़ाव, जब हम अपने अस्तित्व का रहस्य जान लेते हैं।)

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✨ बिल्कुल वैसे ही जैसे उम्र की सीढ़ियाँ होती हैं—

बचपन, किशोरावस्था, जवानी, परिपक्वता—

चक्र भी हमारी रूह के आध्यात्मिक बचपन से आध्यात्मिक परिपक्वता तक के पड़ाव हैं

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"जिस तरह शरीर उम्र के पड़ाव चढ़ता है,

वैसे ही रूह चक्रों के पड़ाव चढ़ती है।

हर चक्र खुलते ही आत्मा का एक नया मौसम खिलता है।”

यह अनुभव तब होता है जब रूह स्वयं को देखने लगती है

शरीर से नहीं बल्कि अपनी पूरी यात्रा के रूप में

यह एक रूह की जागरूकता का संकेत है

#Umabhatia ( umaroshnika )#spiritual writer

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"माँ का संघर्ष – कौन देगा उसे आराम?"

आज के युग में हर औरत—चाहे बेटी हो या बहू—नौकरीपेशा है।
सुबह से शाम तक ऑफिस का काम, घर की जिम्मेदारियां और बच्चों की परवरिश, सब कुछ संभालना आसान नहीं है।
इस भाग-दौड़ में सबसे बड़ी अनदेखी नायिका है – माँ।

👉 जब नौकरानी या आया उपलब्ध हो, तब तो कुछ बोझ हल्का हो जाता है,
परंतु जब ऐसा सहारा नहीं होता, तब सबसे पहले माँ का दरवाज़ा खटखटाया जाता है।
वह अपनी नौकरी से थकी हुई हो या रिटायर्ड हो चुकी हो, फिर भी
बच्चों को संभालना, घर को मैनेज करना, और बहू-बेटी की मदद करना
उसकी ज़िम्मेदारी मान ली जाती है।

पर सवाल यह है – माँ कब आराम पाएगी?

माँ भी तो एक नारी है।
उसका भी हक है कि वह अपनी सेहत का ख्याल रखे,
अपने मन की शांति ढूंढे,
और उम्र ढलने के बाद कुछ पल अपने लिए जी सके।

लेकिन होता उल्टा है —
रिटायरमेंट के बाद भी माँ का रिटायरमेंट नहीं होता।
बहू नौकरी पर गई है, तो घर माँ संभालेगी।
बेटी मीटिंग में गई है, तो बच्चे माँ के पास छोड़ जाएगी।
पति कहेंगे – “अगर थक गई हो तो अलग हो जाओ।”
बेटा कहेगा – “माँ, कुछ मत बोलना, बीवी को दुख होगा।”

और माँ?
वह चुपचाप सहती रहती है।
मन टूटता है, शरीर थकता है, पर चेहरे पर ममता की मुस्कान रहती है।
क्योंकि उसे लगता है – “जब तक मुझसे हो पाएगा, मैं अपने बच्चों के लिए करती रहूँगी।”

लेकिन सच्चाई यह है कि –
👉 माँ का भी हक है आराम का।
👉 माँ का भी हक है स्वतंत्रता का।
👉 माँ का भी हक है सम्मान का।

सिर्फ जवान और नई बहुओं-बेटियों को ही बराबरी का अधिकार नहीं मिलना चाहिए,
बल्कि वह माँ भी बराबरी की हक़दार है
जिसने पूरी ज़िंदगी दूसरों के लिए जी दी।

🪷 अब समय है कि समाज इस सच को माने –
“माँ सिर्फ़ कर्तव्य की मूर्ति नहीं, एक इंसान भी है।
उसे भी सांस लेने का, जीने का और चैन से आराम करने का अधिकार है।”

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पोस्ट शीर्षक:
"आज की नारी इतनी बेबाक क्यों है?"

क्योंकि उसे अब चुप रहने की कीमत समझ आ गई है।

क्योंकि उसकी माँ ने चुप रहकर सिर्फ आँसू कमाए थे — इज़्ज़त नहीं।
क्योंकि उसने देखा कि चुप रहकर रिश्ते नहीं बचे, आत्मा मरती चली गई।
क्योंकि अब वो जानती है — जो बोलता है, वही सुना जाता है।
जो सवाल करती है, वही जवाब पाती है।

आज की नारी बेबाक है क्योंकि वो डरना छोड़ चुकी है।
वो जानती है कि अगर उसने अपनी बात नहीं रखी,
तो उसकी कहानी कोई और गढ़ देगा —
और शायद हमेशा अधूरी या ग़लत।

उसने अब तय कर लिया है —
वो सहना नहीं, समझाना सीखेगी।
वो लड़ना नहीं, लेकिन झुकना भी नहीं सीखेगी।
वो अब सिर्फ़ सब्र नहीं, स्वर भी बनाएगी।

क्योंकि चुप्पी में इज़्ज़त नहीं —
चुप्पी में बस धीरे-धीरे आत्मा गलती है।

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#रूह_की_आवाज़ #umabhatia#umaroshnika#blog post

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"झुके हुए राजकुमार: पुरुष
आज का पुरुष रिश्तो में दब्बू क्यों लगता है?"

कभी जो पुरुष घर का सिरमौर कहलाता था, वही आज अपने रिश्तों में दब्बू क्यों दिखाई देता है?

क्या कारण है कि आजकल कई लड़कों में आत्मविश्वास की कमी दिखाई देती है? क्या ये सिर्फ पत्नी के आगे झुकना है या भीतर एक नया डर बस गया है —
“रिश्ता टूट न जाए”?
घर में शांति बनी रहे?

जब एक पुरुष अपने पिता को माँ पर रौब जमाते देखता है, जब स्नेह से ज़्यादा सत्ता का प्रदर्शन होता है — तो वो या तो उसी को दोहराता है या उसका उल्टा बन जाता है।
और उल्टा बनने की कोशिश में — वो बोलना भूल गया है, निर्णय लेना छोड़ दिया है। कहीं वो माँ के दुःख से इतना घबरा गया कि अब किसी भी स्त्री को दुखी होते देख, खुद को ही गुनहगार मान लेता है।

पुरुषों का दब्बूपन उनकी हार नहीं, एक अंतर्मन की प्रतिक्रिया है।
ये उस चोट की आवाज़ है जो उन्होंने बचपन में देखी, पर कह नहीं सके।
ये वो चुप सहमति है, जो उन्होंने माँ की आँखों में पढ़ी, पर पिता से कभी कह न सके।

आज ज़रूरत है एक संतुलन की।
पुरुष को फिर से अपने भीतर के निर्णयकर्ता से मिलवाने की।
स्त्री को फिर से उसके भीतर के सहचर को पहचानने की।

"न कोई झुका हुआ राजा चाहिए,
न कोई रोब जमाता सम्राट —
इस युग को चाहिए —
एक ऐसा पुरुष, जो साथ खड़ा हो,
और कह सके — चलो, दोनों साथ चलें।"

#रिश्तों_का_संतुलन #पुरुष_की_आवाज़ #आधुनिक_रिश्ते #RoohSaathi


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(माँ
बेआवाज़ करुण गाथा)

वो सब सह जाती है...
फिर भी चुप रहती है।
कभी रोटी सेंकते वक़्त जलती है,
तो कभी शब्दों की आग में।

पति की उपेक्षा,
बच्‍चों की चुप्पी,
ससुराल की अपेक्षा,
और अपने अस्तित्व की छाया-सी उपस्थिति।

वो माँ है…
पर खुद के लिए कोई नहीं।

🌿
"जो माँ सबको जीवन देती है,
क्या उसका आत्म-सम्मान इतना सस्ता है?"
#umabhatia #umaroshnika

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