बात 1920 के दशक की है । उस समय जहां देखो वहीं गरीबी का आलम था। बहुत ही ऐसे कम परिवार थे जहां पर दो समय की रोटी आराम से मिलती हो । अधिकतर गरीबी से जूझ रहे थे। मैं ऐसी ही परिस्थितियों में एक गरीब किसान के घर में पैदा हुआ, जहां पर कृषि योग्य भूमि तो थी परंतु कृषि उत्पाद बहुत कम था। परिवार में अधिक लोग होने के कारण खाने पीने की समस्या भी थी। वर्षा ठीक समय पर हो गई तो कृषि ठीक हो जाती थी । परंतु वर्षा के अभाव में केवल भुखमरी ही थी।
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आंसू सूख गए - 1
बात 1920 के दशक की है । उस समय जहां देखो वहीं गरीबी का आलम था। बहुत ही ऐसे परिवार थे जहां पर दो समय की रोटी आराम से मिलती हो । अधिकतर गरीबी से जूझ रहे थे। मैं ऐसी ही परिस्थितियों में एक गरीब किसान के घर में पैदा हुआ, जहां पर कृषि योग्य भूमि तो थी परंतु कृषि उत्पाद बहुत कम था। परिवार में अधिक लोग होने के कारण खाने पीने की समस्या भी थी। वर्षा ठीक समय पर हो गई तो कृषि ठीक हो जाती थी । परंतु वर्षा के अभाव में केवल भुखमरी ही थी। ...Read More
आंसू सूख गए - 2
जीवन का अंत सुखद होना चाहिए, यदि जीवन का अंत सुखद नहीं है तो वह अन्त नहीं है । जीवन में बहुत सारी त्रासदी होती हैं परंतु दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि जीवन में प्रसन्नता का भी कोई अभाव नहीं है। जीवन त्रासदी तथा प्रसन्नता दोनों का मिश्रण है। आपकी किस्मत में जो है वह मिल जाएगा। मेरा जीवन भी एक त्रासदी से भरा हुआ था। मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ , जहां पर हर प्रकार की गरीबी थी। गरीबी इतनी थी कि दो समय की रोटी जुटाना भी कठिन था ।परिवार में चार बहन ...Read More
आंसू सूख गए - 3
आंसू सूख गएजिस गति से संसार भौतिकता की ओर जा रहा है , उस के कारण नये नये रोगों हो रहे हैं । बहुत ऐसे रोग हैं जो पहले नहीं थे परंतु आज के मनुष्य ने बिना किसी प्रयास और रिसर्च के खोज निकाले हैं।आर्थिक सम्पन्नता के कारण मनुष्य एक प्रकार के चक्रव्यूह में फंसाता जा रहा है। इस चक्रव्यूह में प्रवेश करना आसान है परंतु बाहर निकलने के लिए जान गंवानी पड़ती हैं। जब मनुष्य के ऊपर अर्थ का भूत सवार हो जाता है तो वह अपने रिश्तेदारों तथा मित्रों को भूल जाता है। यथार्थ में वह भूलता ...Read More