चलते चलते एक मंदिर के सामने अचानक मेरे पैर रुक गए। अंदर से ओंकार धुन का नाद सुनाई दे रहा था। एक लय, ताल में छोटे से बडे बुढों तक, तन्मयता से ओंकार धुन का उच्चारण कर रहे थे। सबके चेहरे पर एक अगम्यता का भाव स्पष्ट रुप से दिखाई दे रहा था। गुढ, शांत भाव की झाँकिया उन स्वरों में झलक रही थी। ऐसे वातावरण में एकरूप होने की आकांक्षा मेरे मन में भी जागृत हो गई। कितनी पवित्रता समायी हुई थी उस नाद में। विश्व की उत्पत्ति ओंकार से ही हुई है यह सार्थ भाव अंदर से जागृत हो रहा था। ओंकार धुन का स्वागत वे लोग अपने तन-मन से कर रहे थे। हृदय के ताल से ताल मिलाकर वहाँ से वलय निर्माण हो रहा होगा। यह सुक्ष्म दृष्टी का खेल स्थूल दृष्टी कैसे अनुभव कर सकती है? वहाँ अनुभव होती है केवल अगम्य शांती।
परिमल - 1
ओंकार चलते चलते एक मंदिर के सामने अचानक मेरे पैर रुक गए। अंदर से ओंकार धुन का नाद दे रहा था। एक लय, ताल में छोटे से बडे बुढों तक, तन्मयता से ओंकार धुन का उच्चारण कर रहे थे। सबके चेहरे पर एक अगम्यता का भाव स्पष्ट रुप से दिखाई दे रहा था। ...Read More