मैग्गी प्वाइंट्स की शाम म के कोई सात बजने वाले थे। जून का महीना था, लेकिन पहाड़ों में गर्मियाँ कुछ और ही होती हैं — न ज्यादा तेज़, न ज्यादा ठंडी — बस हल्की-हल्की हवा जो हर थकावट को चुपचाप चुरा ले जाए। कनिका ने अपना दुपट्टा कंधे पर ठीक किया और बाइक से उतरते हुए सचिन से कहा, “यह जगह ना… कुछ अलग है। पहली बार आई हूँ लेकिन अजीब सुकून है।” सचिन हँसा, “काठगोदाम की हवा में जादू है, धीरे-धीरे असर करती है।”
काठगोदाम की गर्मियाँ - 1
अध्याय 1 मैग्गी प्वाइंट्स की शाम शा म के कोई सात बजने वाले थे। जून का महीना था, लेकिन में गर्मियाँ कुछ और ही होती हैं — न ज्यादा तेज़, न ज्यादा ठंडी — बस हल्की-हल्की हवा जो हर थकावट को चुपचाप चुरा ले जाए। कनिका ने अपना दुपट्टा कंधे पर ठीक किया और बाइक से उतरते हुए सचिन से कहा, “यह जगह ना… कुछ अलग है। पहली बार आई हूँ लेकिन अजीब सुकून है।” सचिन हँसा, “काठगोदाम की हवा में जादू है, धीरे-धीरे असर करती है।” दोनों मैग्गी प्वाइंट्स पर पहुँचे थे — एक छोटा-सा ...Read More
काठगोदाम की गर्मियाँ - 2
नए शहर, पुराने सवाललेखक- धीरेंद्र सिंह बिष्टकभी-कभी शहर बदलने से ज़िंदगी नहीं बदलती, सिर्फ़ खिड़की के बाहर का दृश्य जाता है।कर्णिका के लिए काठगोदाम सिर्फ़ एक नया पता नहीं था—यह एक ऐसी जगह थी जहाँ वो पुराने रिश्तों के जवाब ढूँढना चाहती थी।दिल्ली की सुबहें तेज़ होती हैं—एलार्म की आवाज़, ट्रैफिक का शोर और लोगों की भीड़। लेकिन काठगोदाम में, सुबहें दरवाज़े पर दस्तक नहीं देतीं; वो खिड़की से आती हल्की धूप और हवा की सरसराहट में दाख़िल होती हैं।कर्णिका का नया फ्लैट छोटा था, लेकिन उसमें एक खुली बालकनी थी—सीधा पहाड़ों की ओर। वहीं बैठी चाय के कप ...Read More
काठगोदाम की गर्मियाँ - 3
रिश्तों की परछाइयाँकाठगोदाम की सुबहें जितनी शांत थीं, रोहन का घर उतना ही हलचल भरा था। घर में बहन शादी की तैयारियाँ चल रही थीं—माँ रसोई में हल्दी के पकवानों में व्यस्त थीं, छोटी बहन रंग-बिरंगे सजावटी आइटम्स को व्हाट्सएप पर भेज-भेजकर सबकी राय ले रही थी और पापा थोड़े बीमार होकर कमरे में लेटे रहते थे।रोहन सब कुछ देख रहा था। वह कहीं भाग लेना चाहता था, लेकिन हर ओर से खिंचता चला जा रहा था। वह छत की ओर देखने लगा—जहाँ उसे अपनी साँसें थोड़ी खुली सी लगती थीं।“भैया, हल्दी में कौन-कौन आएगा? लिस्ट चेक कर लो,” ...Read More