तू ही मेरी आशिकी

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शहरों से दूर, एक छोटा सा शहर... उस शहर की एक संकरी सी गली में एक पुराना-सा, दो मंज़िला मकान खड़ा था। बाहर से देखने पर कुछ ख़ास नहीं, मगर अंदर की दीवारों में बहुत सी कहानियाँ दबी हुई थीं। सुबह का वक़्त था। किचन से धीमी आवाज़ में किसी पुराने रोमांटिक गाने की धुन सुनाई दे रही थी—मारिया की आवाज़ में। “तू ही ये मुझको बता दे... चाहूँ मैं या ना... अपने तू दिल का पता दे... चाहूँ मैं या ना...” संगीत जैसे पूरे घर में बह रहा था, लेकिन तभी एक मज़ाकिया झुंझलाहट भरी आवाज़ आई— "अरे मारिया बिटिया, गाना ही गाती रहेगी या हमारी चाय भी लाएगी?" डाइनिंग टेबल पर बैठी नानी ने किचन की तरफ आवाज़ लगाई।

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तू ही मेरी आशिकी - 1

शहरों से दूर, एक छोटा सा शहर...उस शहर की एक संकरी सी गली में एक पुराना-सा, दो मंज़िला मकान था। बाहर से देखने पर कुछ ख़ास नहीं, मगर अंदर की दीवारों में बहुत सी कहानियाँ दबी हुई थीं।सुबह का वक़्त था। किचन से धीमी आवाज़ में किसी पुराने रोमांटिक गाने की धुन सुनाई दे रही थी—मारिया की आवाज़ में।“तू ही ये मुझको बता दे... चाहूँ मैं या ना...अपने तू दिल का पता दे... चाहूँ मैं या ना...”संगीत जैसे पूरे घर में बह रहा था, लेकिन तभी एक मज़ाकिया झुंझलाहट भरी आवाज़ आई—"अरे मारिया बिटिया, गाना ही गाती रहेगी या ...Read More

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तू ही मेरी आशिकी - 2

रात के ढाई बज रहे थे, और सड़क पर अंधेरा छाया हुआ था। हवा में सर्दी थी, लेकिन मारिया आँखों में एक अजीब सी निडरता थी। एक तरफ, उसे डर भी लग रहा था, क्योंकि वह अकेली थी और यह सुनसान जगह थी, लेकिन दूसरी तरफ वह आत्मविश्वास से भरी हुई थी। उसकी आँखों में कोई संकोच नहीं था, बस एक बेबाकी थी, जैसे किसी भी मुश्किल का सामना करने के लिए वह तैयार हो।इतना ही नहीं, कुछ दूर से एक काले रंग की ऑडी तेजी से आती हुई दिखी। मारिया का ध्यान उस कार पर गया, और वह ...Read More

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तू ही मेरी आशिकी - 3

सुबह की हल्की सी ठंडी हवा कमरे में घुसकर पर्दों को झकझोर रही थी, और सूरज की किरणें धीरे-धीरे से अंदर आकर मारिया के चेहरे पर पड़ रही थीं। वह धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलती है, आँखों में हल्की सी नींद और चेहरे पर रात की थकान। बिस्तर से उठते हुए उसने अपने बालों को झटकते हुए कमरे की ओर देखा। कमरे में सुकून था, कुछ पल पहले की घटनाएँ अब भी उसके मन में घूम रही थीं।वह हमेशा से अपनी छोटी सी दुनिया में जीने वाली लड़की थी। घर में नानी की देखभाल, खुद का काम और फिर गाना ...Read More

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तू ही मेरी आशिकी - 4

दरगाह से लौटते हुए...मारिया की रूह अब भी उस दरगाह की मिट्टी में अटकी थी। शहर की सड़कों पर के हॉर्न, चेहरों की भीड़ और विज्ञापनों की चमक सब कुछ उस पर से फिसल रहा था — जैसे वो किसी और समय में चल रही हो। हवा उसके बालों में उलझती रही, और दिल में कुछ खुलता रहा, धीरे-धीरे।क्लब के बैकस्टेज पर...हवा यहाँ भारी थी — परफ्यूम, पसीने और एक्साइटमेंट से भरी हुई। साउंड चेक हो रहा था, स्पॉटलाइट्स की एंगल्स बदली जा रही थीं, किसी के हेडसेट में कमांड्स गूंज रहे थे।“मारिया!”जावेद भाई की आवाज़ आई — तेज़, ...Read More

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तू ही मेरी आशिकी - 5

रात के 3 बजे।क्लब की रौशनी अब बुझ चुकी थी —सिर्फ दीवारों पर फैली हल्की पीली रोशनी अब भी टिकी थी।मारिया जब क्लब के रूम में पहुँची, तो थकी हुई थी —शायद थोड़ा उलझी भी।डांस, मीर की नज़रें, हादी की बाँहें,सब कुछ अब एक उलझी लड़ी जैसा लग रहा था।जैसे ही उसने कपड़े बदले —उसका मन अचानक चौक गया।पीठ पीछे कुछ था —न कोई आवाज़, न कोई आहट,बस एक ठंडी सांस का एहसास… जैसे कोई पास खड़ा हो।उसने झटके से पीछे देखा —कोई नहीं।फिर, जैसे ही वो दरवाज़े की ओर बढ़ी,दरवाज़ा 'ठाक' से बंद हो गया।"कौन है?"उसकी आवाज़ काँप ...Read More