तू ही मेरी आशिकी

(11)
  • 17k
  • 0
  • 8.5k

शहरों से दूर, एक छोटा सा शहर... उस शहर की एक संकरी सी गली में एक पुराना-सा, दो मंज़िला मकान खड़ा था। बाहर से देखने पर कुछ ख़ास नहीं, मगर अंदर की दीवारों में बहुत सी कहानियाँ दबी हुई थीं। सुबह का वक़्त था। किचन से धीमी आवाज़ में किसी पुराने रोमांटिक गाने की धुन सुनाई दे रही थी—मारिया की आवाज़ में। “तू ही ये मुझको बता दे... चाहूँ मैं या ना... अपने तू दिल का पता दे... चाहूँ मैं या ना...” संगीत जैसे पूरे घर में बह रहा था, लेकिन तभी एक मज़ाकिया झुंझलाहट भरी आवाज़ आई— "अरे मारिया बिटिया, गाना ही गाती रहेगी या हमारी चाय भी लाएगी?" डाइनिंग टेबल पर बैठी नानी ने किचन की तरफ आवाज़ लगाई।

1

तू ही मेरी आशिकी - 1

शहरों से दूर, एक छोटा सा शहर...उस शहर की एक संकरी सी गली में एक पुराना-सा, दो मंज़िला मकान था। बाहर से देखने पर कुछ ख़ास नहीं, मगर अंदर की दीवारों में बहुत सी कहानियाँ दबी हुई थीं।सुबह का वक़्त था। किचन से धीमी आवाज़ में किसी पुराने रोमांटिक गाने की धुन सुनाई दे रही थी—मारिया की आवाज़ में।“तू ही ये मुझको बता दे... चाहूँ मैं या ना...अपने तू दिल का पता दे... चाहूँ मैं या ना...”संगीत जैसे पूरे घर में बह रहा था, लेकिन तभी एक मज़ाकिया झुंझलाहट भरी आवाज़ आई—"अरे मारिया बिटिया, गाना ही गाती रहेगी या ...Read More

2

तू ही मेरी आशिकी - 2

रात के ढाई बज रहे थे, और सड़क पर अंधेरा छाया हुआ था। हवा में सर्दी थी, लेकिन मारिया आँखों में एक अजीब सी निडरता थी। एक तरफ, उसे डर भी लग रहा था, क्योंकि वह अकेली थी और यह सुनसान जगह थी, लेकिन दूसरी तरफ वह आत्मविश्वास से भरी हुई थी। उसकी आँखों में कोई संकोच नहीं था, बस एक बेबाकी थी, जैसे किसी भी मुश्किल का सामना करने के लिए वह तैयार हो।इतना ही नहीं, कुछ दूर से एक काले रंग की ऑडी तेजी से आती हुई दिखी। मारिया का ध्यान उस कार पर गया, और वह ...Read More

3

तू ही मेरी आशिकी - 3

सुबह की हल्की सी ठंडी हवा कमरे में घुसकर पर्दों को झकझोर रही थी, और सूरज की किरणें धीरे-धीरे से अंदर आकर मारिया के चेहरे पर पड़ रही थीं। वह धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलती है, आँखों में हल्की सी नींद और चेहरे पर रात की थकान। बिस्तर से उठते हुए उसने अपने बालों को झटकते हुए कमरे की ओर देखा। कमरे में सुकून था, कुछ पल पहले की घटनाएँ अब भी उसके मन में घूम रही थीं।वह हमेशा से अपनी छोटी सी दुनिया में जीने वाली लड़की थी। घर में नानी की देखभाल, खुद का काम और फिर गाना ...Read More

4

तू ही मेरी आशिकी - 4

दरगाह से लौटते हुए...मारिया की रूह अब भी उस दरगाह की मिट्टी में अटकी थी। शहर की सड़कों पर के हॉर्न, चेहरों की भीड़ और विज्ञापनों की चमक सब कुछ उस पर से फिसल रहा था — जैसे वो किसी और समय में चल रही हो। हवा उसके बालों में उलझती रही, और दिल में कुछ खुलता रहा, धीरे-धीरे।क्लब के बैकस्टेज पर...हवा यहाँ भारी थी — परफ्यूम, पसीने और एक्साइटमेंट से भरी हुई। साउंड चेक हो रहा था, स्पॉटलाइट्स की एंगल्स बदली जा रही थीं, किसी के हेडसेट में कमांड्स गूंज रहे थे।“मारिया!”जावेद भाई की आवाज़ आई — तेज़, ...Read More

5

तू ही मेरी आशिकी - 5

रात के 3 बजे।क्लब की रौशनी अब बुझ चुकी थी —सिर्फ दीवारों पर फैली हल्की पीली रोशनी अब भी टिकी थी।मारिया जब क्लब के रूम में पहुँची, तो थकी हुई थी —शायद थोड़ा उलझी भी।डांस, मीर की नज़रें, हादी की बाँहें,सब कुछ अब एक उलझी लड़ी जैसा लग रहा था।जैसे ही उसने कपड़े बदले —उसका मन अचानक चौक गया।पीठ पीछे कुछ था —न कोई आवाज़, न कोई आहट,बस एक ठंडी सांस का एहसास… जैसे कोई पास खड़ा हो।उसने झटके से पीछे देखा —कोई नहीं।फिर, जैसे ही वो दरवाज़े की ओर बढ़ी,दरवाज़ा 'ठाक' से बंद हो गया।"कौन है?"उसकी आवाज़ काँप ...Read More

6

तू ही मेरी आशिकी - 6

कुछ दिन बाद…मारिया अब बहुत कम बोलती थी, पर उसकी ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहने लगी थीं।छोटे के साथ खेलते भी,नानी की कहानियाँ सुनते हुए भी,उसके ज़हन में मीर का चेहरा बार-बार तैर जाता।"तुम मेरी हो... मीर सुल्तान की..."वो शब्द हर बार उसके भीतर कुछ हिला देते।कभी किचन में चाय बनाते हुए वो मुस्कुरा देती,फिर तुरंत खुद को टोकती,"क्या हो गया है मुझे..."और चेहरा दोनों हथेलियों में छुपा लेती।उस रात चाँद कुछ ज़्यादा ही पास महसूस हो रहा था।कमरे की खिड़की खुली थी,मारिया वहीं बैठी थी —गोदी में छोटे का सिर रखा हुआ,उसकी मासूम सांसें एक सुकून दे रही थीं।तभी ...Read More

7

तू ही मेरी आशिकी - 7

तीन दिन बाद...मारिया उस दिन छोटे के साथ नानी के कहने पर पास के बाजार गई थी।छोटे को नए चाहिए थे, और मारिया भी अब धीरे-धीरे अपनी पुरानी जिंदगी में लौटने की कोशिश कर रही थी।बाजार में हलचल थी, लोग खरीदारी में लगे थे,गर्मियों की दोपहर थी, मगर हवा में कुछ मीठी सी ताजगी थी।छोटा अपनी मर्जी से एक दुकान से दूसरी दुकान भाग रहा था।मारिया उसे पकड़ने के लिए इधर-उधर दौड़ रही थी,जब अचानक भीड़ के बीच में एक तेज़ आती बाइक ने छोटा की तरफ रुख किया —और वो पल...सब कुछ जैसे थम गया।मारिया चीखी,"छोटे!"लेकिन किसी के ...Read More

8

तू ही मेरी आशिकी - 8

अगली सुबह...कमरे की खिड़की से धूप की महीन लकीरें फर्श पर गिर रही थीं।चिड़ियों की आवाजें हल्के से कमरे घुल रही थीं।छोटा अभी भी अपने तकिए में मुंह छिपाए सोया था,मगर मारिया —वो आज जल्दी उठ गई थी।आँखों में नींद की मिठास थी,मगर दिल में एक अजीब सी हलचल —बेहद नर्म, बेहद प्यारी।वो धीरे-धीरे आईने के सामने आकर खड़ी हो गई।थोड़ी देर तक खुद को देखती रही —जैसे खुद से पहली बार मुलाकात हो रही हो।हल्की सी मुस्कान उसके होठों पर आकर टिक गई —बेहद कोमल, बेहद अनकही।मारिया ने अलमारी खोली।साधारण कपड़े हटा कर एक हल्की गुलाबी कुर्ता निकाल ...Read More

9

तू ही मेरी आशिकी - 9

स्टूडियो की बड़ी शीशेदार खिड़कियों से छनती हल्की रोशनी, दीवारों पर टंगे गोल्डन रिकॉर्ड्स, और दीवार के उस पार रूम का हलचल भरा माहौल —यही थी "MS Harmony Records" — शहर का सबसे नामी स्टूडियो, हर नए सिंगर का सपना।मारिया घबराई सी वेटिंग रूम के एक कोने में बैठी थी। हाथ में रखा वॉटर बॉटल तक हौले-हौले भींच रही थी।भीतर से उसे बार-बार मीर का चेहरा याद आ रहा था, पर होश इतना था कि यहाँ उसे सिर्फ अपने गाने पर फोकस करना है।अचानक उसका नाम पुकारा गया।"मारिया खान, स्टूडियो बी में आइए।"साँस रोक कर, दिल थाम कर वो ...Read More

10

तू ही मेरी आशिकी - 10

अगली शाम...मारिया स्टूडियो से जल्दी निकल गई थी।उसका मन अब मीर से दूर भागना चाहता था,मगर दिल... दिल बार-बार के ख्याल में भटक जाता था।जब वो स्टूडियो से बाहर निकली तो देखा, सामने एक छोटी सी गाड़ी खड़ी थी।ड्राइवर ने उसके पास आकर कहा —"मैडम, किसी ने आपके लिए ये भेजी है। प्लीज़ बैठिए।"मारिया हिचकिचाई, मगर न जाने क्यों कदम खुद-ब-खुद गाड़ी की तरफ बढ़े।ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और शहर से थोड़ा दूर एक जगह ले गया...जहाँ हल्की रौशनी थी, एक छोटा सा गार्डन,और सामने एक बड़ी सी स्क्रीन लगी थी —"OPEN AIR PRIVATE CINEMA" टाइप का सीन ...Read More

11

तू ही मेरी आशिकी - 11

रात का वक्त था।स्टूडियो की सारी रिकॉर्डिंग्स खत्म हो चुकी थीं।मारिया अपना सामान समेट रही थी कि तभी सामने मीर आयाआज कुछ अलग था उसकी चाल में, उसकी आँखों में।एक गर्मी... एक मासूम सा आग्रह।मीर ने जेब से एक छोटा-सा कार्ड निकाला,और बड़ी नरमी से मारिया की ओर बढ़ाया।उस पर बस इतना लिखा था:"डिनर विद मी?"मारिया ने कार्ड पढ़ते हुए शरारत भरी नज़रों से मीर को देखा।उसकी आँखों में जैसे चाँदनी उतर आई हो।हौले से मुस्कुराई, फिर गर्दन झुकाकर धीरे से हामी भर दी।"अभी?"मारिया ने पूछा, उसकी आवाज़ खुद उसके धड़कते दिल से लरज रही थी।"हाँ, अभी,"मीर ने कहा,"बस ...Read More