प्रेम के दो अध्याय

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जब मैंने आँखें बंद की तब उस स्वर्णिम वेला का मनोरम दृश्य मेरे सामने चलचित्र की भांती प्रकट हुआ। भादो की सौरभ युक्त सुबह थी, मेघाच्छन आकाश के विस्तार के नीचे कलरव करते पक्षी और वृक्ष की छाँव में बंधी गाय जिसके गले में बंधी घंटी का वह स्वर मेरा ध्यान भटका रहा था। अतः मैंने किताब रख दी और भाभी को चाय के लिए बोल दिया। “भाभी! चाय बना लो न, आलस आ रहा है।” मैं बोल कर फिर किताब पढनें लगा। इतनें में डाॅरबेल बजा। “जरा देखना तो कोन है?” भाभी ने रसोई से आवाज़ दी। मैं उठ कर दरवाजा खोलने गया।

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प्रेम के दो अध्याय - भाग 1

प्रेम के दो अध्यायअध्याय- 1| भाग 1जब मैंने आँखें बंद की तब उस स्वर्णिम वेला का मनोरम दृश्य मेरे चलचित्र की भांती प्रकट हुआ। भादो की सौरभ युक्त सुबह थी, मेघाच्छन आकाश के विस्तार के नीचे कलरव करते पक्षी और वृक्ष की छाँव में बंधी गाय जिसके गले में बंधी घंटी का वह स्वर मेरा ध्यान भटका रहा था।अतः मैंने किताब रख दी और भाभी को चाय के लिए बोल दिया। “भाभी! चाय बना लो न, आलस आ रहा है।” मैं बोल कर फिर किताब पढनें लगा। इतनें में डाॅरबेल बजा।“जरा देखना तो कोन है?” भाभी ने रसोई से ...Read More

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प्रेम के दो अध्याय - भाग 2

प्रेम के दो अध्याय अध्याय -1भाग- 2बाहर आकर मैं बागवानी में टहलने लगा। वहां की फिजा में महक थी, थी, उत्साह था और उस सुनहरी धूप का कुछ अंश भी था जो बादलों को चिर कर उन फूलों पर बरस रही थी। और वहाँ लगे फूल मेरे परिचित थे, लेकिन कुछ नए फूल अपरिचित भी थे। वह फूल जैसे पुराने फूलों में घुल-मिल-से गए हो लेकिन उनकीं महक में एक ताज़गी थी और एक नयापन था। मैंने फूलों के नजदीक जाकर एक गहरी सांस ली और वहाँ बिखरा सुकून मैंने सांसो के साथ अपने भितर समेट लिया। और वहीं ...Read More