जब मैंने आँखें बंद की तब उस स्वर्णिम वेला का मनोरम दृश्य मेरे सामने चलचित्र की भांती प्रकट हुआ। भादो की सौरभ युक्त सुबह थी, मेघाच्छन आकाश के विस्तार के नीचे कलरव करते पक्षी और वृक्ष की छाँव में बंधी गाय जिसके गले में बंधी घंटी का वह स्वर मेरा ध्यान भटका रहा था। अतः मैंने किताब रख दी और भाभी को चाय के लिए बोल दिया। “भाभी! चाय बना लो न, आलस आ रहा है।” मैं बोल कर फिर किताब पढनें लगा। इतनें में डाॅरबेल बजा। “जरा देखना तो कोन है?” भाभी ने रसोई से आवाज़ दी। मैं उठ कर दरवाजा खोलने गया। जैसे ही दरवाजा खोला सामने एक इक्कीस वर्षीय सुंदर तरुणी खड़ी थी। दुबली-पतली कद-काठी, माथे पर अत्यंत छोटी लाल बिंदी, नाक में नथुनी और लीलन का सफेद मख्खन-सा पजामा और हल्के गुलाबी रंग का कुर्ता, बंधे बाल लेकिन एक रेशमी लट्ट उसके कपोलों को चुम रही थी। उसने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा।
प्रेम के दो अध्याय - भाग 1
प्रेम के दो अध्यायअध्याय- 1| भाग 1जब मैंने आँखें बंद की तब उस स्वर्णिम वेला का मनोरम दृश्य मेरे चलचित्र की भांती प्रकट हुआ। भादो की सौरभ युक्त सुबह थी, मेघाच्छन आकाश के विस्तार के नीचे कलरव करते पक्षी और वृक्ष की छाँव में बंधी गाय जिसके गले में बंधी घंटी का वह स्वर मेरा ध्यान भटका रहा था।अतः मैंने किताब रख दी और भाभी को चाय के लिए बोल दिया। “भाभी! चाय बना लो न, आलस आ रहा है।” मैं बोल कर फिर किताब पढनें लगा। इतनें में डाॅरबेल बजा।“जरा देखना तो कोन है?” भाभी ने रसोई से ...Read More