मन की हार, ज़िंदगी की जीत

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मन की प्रकृति और उसकी उलझनें इंसान का मन शायद सबसे रहस्यमयी चीज़ों में से एक है। यह कल्पना करता है, डरता है, सोचता है, सवाल करता है और कई बार ख़ुद ही अपने जाल में फँस जाता है। मन एक ऐसा साथी है जो कभी तुम्हें आसमान तक उड़ाता है और कभी ज़मीन पर गिरा देता है — और सबसे हैरानी की बात यह है कि दोनों ही बार वह तुम्हारा ही होता है। आपने अक्सर सुना होगा — “सब कुछ मन का खेल है।” लेकिन क्या यह केवल एक कहावत है या इसमें कोई गहरी सच्चाई है? असल में, जब कोई मुश्किल सामने आती है, तो दिमाग़ सबसे पहले रिस्क को जज करता है। वह सोचता है — “अगर मैं असफल हुआ तो क्या होगा?” और इस सोच की गहराई में उतरते ही मन डर की दिशा में चल पड़ता है। डर को महसूस करना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन उसे अपने ऊपर हावी कर लेना, यही वो मोड़ है जहाँ से हम हार मानने लगते हैं।

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मन की हार, ज़िंदगी की जीत - भाग 1

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