दिल्ली की वो सुबह ठंडी थी, पर हल्की नहीं। सर्द हवाओं ने शहर को ढक रखा था, जैसे किसी पुराने ज़ख्म पर फिर से पट्टी बंध रही हो। लेकिन कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो ठंड में और भी ज़्यादा जलते हैं। एक आलीशान अपार्टमेंट की तीसरी मंज़िल की बालकनी में एक लड़की चुपचाप खड़ी थी — कंधे पर शॉल लपेटे, बाल बिखरे हुए, आँखें नींद से भारी… पर दिल, सालों से जागा हुआ। सिद्धि। नाम जितना शांत, ज़िंदगी उतनी ही तूफ़ानी। उसकी आँखों के नीचे हल्के से काले घेरे थे — नींद की कमी से नहीं, बिखरी हुई मोहब्बत और अधूरी बातें सहेजने से। दीवार पर टंगी एक पुरानी तस्वीर पर उसकी नज़र गई। माँ, पापा, और बीच में वो — सोलह की उम्र, आँखों में ख्वाब और होठों पर बेफिक्री। आज वो सब कहीं नहीं था। बस तस्वीर थी… और एक सवाल — "क्या कोई मुस्कान वक़्त के साथ तस्वीरों में ही रह जाती है?"
अधूरे हम.. - 1
दिल्ली की वो सुबह ठंडी थी, पर हल्की नहीं।सर्द हवाओं ने शहर को ढक रखा था, जैसे किसी पुराने पर फिर से पट्टी बंध रही हो। लेकिन कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो ठंड में और भी ज़्यादा जलते हैं।एक आलीशान अपार्टमेंट की तीसरी मंज़िल की बालकनी में एक लड़की चुपचाप खड़ी थी — कंधे पर शॉल लपेटे, बाल बिखरे हुए, आँखें नींद से भारी… पर दिल, सालों से जागा हुआ।सिद्धि।नाम जितना शांत, ज़िंदगी उतनी ही तूफ़ानी।उसकी आँखों के नीचे हल्के से काले घेरे थे — नींद की कमी से नहीं, बिखरी हुई मोहब्बत और अधूरी बातें सहेजने से।दीवार ...Read More