प्रारम्भिक जीवन और आध्यात्मिक झुकाव वृंदावन की पावन गंध, राधे-राधे की गूँज और कृष्ण नाम की रसधारा… इन्हीं भावों के बीच प्रेमानंद जी महाराज का जीवन आरंभ हुआ। उनका जन्म सामान्य परिवार में हुआ, लेकिन यह सामान्यता केवल बाहरी थी। भीतर से उनका व्यक्तित्व जैसे किसी विशेष उद्देश्य के लिए गढ़ा गया हो। बहुत छोटी आयु से ही उनके मुख पर भक्ति का तेज और आँखों में कृष्ण प्रेम की झलक देखी जा सकती थी।
Full Novel
प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 1
भाग 1 : प्रारम्भिक जीवन और आध्यात्मिक झुकाववृंदावन की पावन गंध, राधे-राधे की गूँज और कृष्ण नाम की रसधारा… भावों के बीच प्रेमानंद जी महाराज का जीवन आरंभ हुआ। उनका जन्म सामान्य परिवार में हुआ, लेकिन यह सामान्यता केवल बाहरी थी। भीतर से उनका व्यक्तित्व जैसे किसी विशेष उद्देश्य के लिए गढ़ा गया हो। बहुत छोटी आयु से ही उनके मुख पर भक्ति का तेज और आँखों में कृष्ण प्रेम की झलक देखी जा सकती थी।1. बचपन का वात्सल्य और धार्मिक संस्कारप्रेमानंद जी का जन्म उस समय हुआ जब घर-घर में धार्मिकता अभी भी संस्कृति का हिस्सा थी। उनका ...Read More
प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 2
भाग 2 : गुरु-दीक्षा और साधना मार्ग1. भक्ति की तृष्णा और गुरु की खोजजब कोई आत्मा जन्म से ही में रंगी होती है, तो उसका हृदय किसी न किसी गुरु की तलाश में स्वयं ही निकल पड़ता है। प्रेमानंद जी का जीवन भी इसी पथ पर चला। किशोर अवस्था तक आते-आते उनके भीतर भक्ति की तृष्णा इतनी तीव्र हो चुकी थी कि वे दिन-रात केवल यही सोचते – “मुझे वह गुरुदेव कब मिलेंगे जो मुझे राधा-कृष्ण के सच्चे मार्ग पर ले जाएँगे?”उनका मन किसी सांसारिक आकर्षण में नहीं रमता था। लोग कहते – “इतनी छोटी उम्र में यह लड़का ...Read More
प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 3
भाग 3 : प्रवचन, कीर्तन और भक्ति संदेशभक्ति की धारा का प्रवाहगुरु-दीक्षा और कठोर साधना के बाद प्रेमानंद जी जीवन का अगला चरण शुरू हुआ—भक्ति का प्रसार।गुरुदेव ने उन्हें आज्ञा दी थी कि “अब केवल अपने लिए साधना मत करो, भक्ति का अमृत सबमें बाँटो।”यह वचन उनके जीवन का मूल मंत्र बन गया।अब प्रेमानंद जी जिस गाँव, जिस शहर या जिस मेला-समारोह में पहुँचते, वहाँ भक्ति का वातावरण स्वतः जाग्रत हो जाता। उनके मुख से जब “राधे-राधे” की ध्वनि निकलती, तो मानो पूरा वातावरण पुलकित हो उठता।---1. प्रवचन की अनोखी शैलीप्रेमानंद जी का प्रवचन किसी साधारण व्याख्यान जैसा नहीं ...Read More
प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 4
भाग 4 : जीवन की घटनाएँ और भक्तों के संवाद1. पहला बड़ा कीर्तन उत्सवप्रेमानंद जी का पहला बड़ा कीर्तन वृंदावन की पावन धरा पर हुआ।कहते हैं कि जब वे पहली बार यमुना किनारे भक्तों के साथ “राधे… राधे…” का संकीर्तन करने लगे, तो वहाँ का वातावरण बदल गया।गर्मी का मौसम था, सूरज सिर पर था, लेकिन जैसे ही उनके स्वर फूटे—“श्री राधे, श्री राधे…”तो एक ठंडी लहर-सी चली। भक्त कहते हैं कि पेड़ों की डालियाँ तक झूम उठीं, और यमुना की लहरें ताल देने लगीं।कई लोग कहते हैं कि उस दिन उन्होंने सच में अनुभव किया कि भगवान का ...Read More
प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 5 (अंतिम भाग)
भाग 5-प्रेमानंद जी महाराज और उनके पाँच पांडव शिष्य : समर्पण की अद्भुत गाथा”वृन्दावन की पावन धरा पर जब किसी संत का नाम लिया जाता है, तो उनके साथ जुड़े शिष्यों की भी चर्चा स्वतः ही होने लगती है। जैसे श्रीकृष्ण के साथ सदा ग्वालबालों और गोपियों का नाम लिया जाता है, जैसे मीरा के साथ उनकी तानपुरे की झंकार की स्मृति रहती है, वैसे ही प्रेमानंद जी महाराज के साथ उनके पाँच अद्भुत शिष्य भी निरंतर जुड़ जाते हैं। इन्हें ही लोग प्रेमपूर्वक “पाँच पांडव” कहते हैं।यह पाँचों शिष्य जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों से आए, किसी ने नौकरी ...Read More