अंश, कार्तिक, आर्यन

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पुलिस स्टेशन के सामने, धूप में झुलसता हुआ एक बूढ़ा आदमी घुटनों के बल पड़ा था। उसकी आँखों के आंसू कब के सूख चुके थे, पर चेहरा अब भी रो रहा था। उसकी कांपती उंगलियाँ जमीन पर ऐसे चल रही थीं जैसे हर कण से अपने बेटे का निशान तलाश रही हों। उसके झुके कंधे… मानो पूरी दुनिया का बोझ ढो रहे हों।उसका शरीर थका हुआ था, लेकिन दिल अब भी उम्मीद से भरा हुआ—कि शायद आज… कोई तो उसकी पुकार सुन ले। दरवाज़ा अचानक चरमराया।

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 1

पुलिस स्टेशन के सामने, धूप में झुलसता हुआ एक बूढ़ा आदमी घुटनों के बल पड़ा था।उसकी आँखों के आंसू के सूख चुके थे, पर चेहरा अब भी रो रहा था।उसकी कांपती उंगलियाँ जमीन पर ऐसे चल रही थीं जैसे हर कण से अपने बेटे का निशान तलाश रही हों।उसके झुके कंधे… मानो पूरी दुनिया का बोझ ढो रहे हों।उसका शरीर थका हुआ था, लेकिन दिल अब भी उम्मीद से भरा हुआ—कि शायद आज… कोई तो उसकी पुकार सुन ले।दरवाज़ा अचानक चरमराया।एक पुलिसवाला बाहर निकला। उसकी आँखों में झुंझलाहट और आवाज़ में ज़हर टपक रहा था।“अरे बुड्ढे! फिर आ गया ...Read More

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 2

गौतम सर अपने बेटे देखकर गर्व से भर जाते।अंश में मासूमियत भी थी और जिम्मेदारी भी।उसने पिता की ईमानदारी सच्चाई का पाठ सीखा।पड़ोस के लोग उसे देखकर कहते—“काश हमारा बच्चा भी अंश जैसा होता।”वक़्त पंख लगाकर उड़ गया।अंश ने हाईस्कूल में टॉप किया।स्कॉलरशिप मिली और उसे यूनिवर्सिटी में दाख़िला मिल गया।गौतम सर खुश थे… पर उदास भी।बेटा अब उनके पास से दूर जा रहा था।उस रात जब अंश ने यूनिवर्सिटी जाने की तैयारी की, तो गौतम सर ने बस इतना कहा—“बेटा… माँ नहीं है, पर उसकी दुआएँ तुम्हारे साथ हैं।और मैं हमेशा ह तुम्हारे साथ हूं ।”अंश ने पिता ...Read More

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 3

बूढ़े का बेटा (अंश) बचपन से ही कार्तिक का सबसे क़रीबी दोस्त था।दोनों ने साथ खेला, साथ पढ़ाई की, धीरे-धीरे कार्तिक के दिल में अनकहा प्यार पनपने लगा।लेकिन जब अंश को बड़े लोगों के हाथों फँसाकर खत्म कर दिया गया,कार्तिक का प्यार और ग़म एक साथ बदले की आग में बदल गया।अब बूढ़ा अपने बेटे के लिए पुलिस स्टेशन में न्याय की भीख माँग रहा है,और दूसरी तरफ कार्तिक चुपचाप सब सुन रहा है।हर बार जब पुलिस वाला बूढ़े को धक्का देता है, कार्तिक की मुट्ठियाँऔर कस जाती हैं।वो सोचता है –"अगर समाज ने अंश को छीन लिया है… ...Read More

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 4

• उस रात यूनिवर्सिटी के कैंपस माहौल एक दम शांत था।चारों तरफ हल्की-हल्की हवा बह रही थी, लेकिन आर्यन दिल अजीब तरह से बेचैन था।वो अपने कमरे में लेटा हुआ था, पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी।उसके दिमाग में बार-बार वही पल घूम रहा था —जब उसने पहली बार कार्तिक से हाथ मिलाया था।वो झटका…वो अजीब-सी बिजली…जैसे किसी अनजानी ताक़त ने उसकी रगों को छुआ हो।आर्यन उठकर शीशे के सामने खड़ा हो गया।अपने हाथ को घूरने लगा —“ये क्या था?सिर्फ़ इत्तेफ़ाक़… या कुछ और?”उसके दोस्त कमरे में घुसे, हँसते हुए बोले,“भाई, उस नए लड़के में कुछ तो ...Read More

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 5

भीड़-भाड़ भरी कैंटीन में,कार्तिक एक कोने की खिड़की के पास बैठा था।उसकी नीली गहरी आँखें किताब के पन्नों पर हुई थीं,पर ध्यान कहीं और था।थोड़ी दूरी पर आर्यन और उसके दोस्त,ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए बातें कर रहे थे।कभी-कभी उनकी निगाहें चुपके से कार्तिक की ओर उठ जातीं…और वहीँ ठहर जातीं।कार्तिक ने पन्ना पलटा,होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई।वो सब कुछ देख रहा था,सब कुछ सुन रहा था…लेकिन उसके हावभाव में ज़रा भी बेचैनी नहीं थी।जैसे किसी शतरंज के खिलाड़ी को पता हो,कि सामने वाला कौन-सा मोहरा चलने वाला है—और उसने पहले ही उसके जवाब की योजना बना रखी हो।आर्यन की ...Read More