अंश, कार्तिक, आर्यन

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पुलिस स्टेशन के सामने, धूप में झुलसता हुआ एक बूढ़ा आदमी घुटनों के बल पड़ा था। उसकी आँखों के आंसू कब के सूख चुके थे, पर चेहरा अब भी रो रहा था। उसकी कांपती उंगलियाँ जमीन पर ऐसे चल रही थीं जैसे हर कण से अपने बेटे का निशान तलाश रही हों। उसके झुके कंधे… मानो पूरी दुनिया का बोझ ढो रहे हों।उसका शरीर थका हुआ था, लेकिन दिल अब भी उम्मीद से भरा हुआ—कि शायद आज… कोई तो उसकी पुकार सुन ले। दरवाज़ा अचानक चरमराया।

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 1

पुलिस स्टेशन के सामने, धूप में झुलसता हुआ एक बूढ़ा आदमी घुटनों के बल पड़ा था।उसकी आँखों के आंसू के सूख चुके थे, पर चेहरा अब भी रो रहा था।उसकी कांपती उंगलियाँ जमीन पर ऐसे चल रही थीं जैसे हर कण से अपने बेटे का निशान तलाश रही हों।उसके झुके कंधे… मानो पूरी दुनिया का बोझ ढो रहे हों।उसका शरीर थका हुआ था, लेकिन दिल अब भी उम्मीद से भरा हुआ—कि शायद आज… कोई तो उसकी पुकार सुन ले।दरवाज़ा अचानक चरमराया।एक पुलिसवाला बाहर निकला। उसकी आँखों में झुंझलाहट और आवाज़ में ज़हर टपक रहा था।“अरे बुड्ढे! फिर आ गया ...Read More