भारी मन से तृप्ति रिक्शे से उतरी, रेलवे स्टेशन सामने ही था। रिक्शे वाले को पैसे चुकाकर उसने अपना सामान उठाया और स्टेशन की और चल पड़ी। अभी वो दस कदम भी नहीं चल पायी थी की अनायास उसकी निगाहे सड़क की बायीं और एक पान की दुकान पर पड़ी। आसपास की तक़रीबन सारी दुकाने बंद थी बस यही एक पान की दुकान चालू थी। उस ने देखा वहा कुछ मनचले खड़े खड़े उसे ही घूर रहे थे। उनकी और ना देखते हुए तृप्ति ने निगाहे नीची रखकर पहले साड़ी के पल्लू को व्यवस्थित किया फिर तुरंत सामान उठाकर बगैर उनकी और देखे तेज़ कदमो से प्लेटफॉर्म की और बढ़ी। उनके पास से गुजरते वक़्त तृप्ति ने उनकी कुछ खुसुर-पुसुर सुनी, मगर वो आवाज़ इतनी धीमी थी की वो ढंग से सुन नहीं पायी, मगर इतना जरूर वो समझ गई थी की वो मनचले उसी को लेकर बाते कर रहे थे। " नालायक ... लोफर कही के ....जहा कही खूबसूरत लड़की देखी नहीं की लगे घूरने ... हर समय दिमाग पर एक यही खुमारी चढ़ी रहती है ... ये मर्द जात ना .. " धीमी आवाज़ में बड़बड़ाती तृप्ति जल्दी से प्लेटफार्म की सीढ़िया चढ़ने लगी।
Trupti - 1
भारी मन से तृप्ति रिक्शे से उतरी, रेलवे स्टेशन सामने ही था। रिक्शे वाले को पैसे चुकाकर उसने अपना उठाया और स्टेशन की और चल पड़ी। अभी वो दस कदम भी नहीं चल पायी थी की अनायास उसकी निगाहे सड़क की बायीं और एक पान की दुकान पर पड़ी। आसपास की तक़रीबन सारी दुकाने बंद थी बस यही एक पान की दुकान चालू थी। उस ने देखा वहा कुछ मनचले खड़े खड़े उसे ही घूर रहे थे। उनकी और ना देखते हुए तृप्ति ने निगाहे नीची रखकर पहले साड़ी के पल्लू को व्यवस्थित किया फिर तुरंत सामान उठाकर बगैर ...Read More