अकेलेपन की गूंज और अधूरी चाहतों की शुरुआत शहर के सबसे शांत और प्रतिष्ठित इलाके में, सफ़ेद दीवारों वाला एक बंगला हर सुबह की तरह आज भी बेहद सलीके से सजा था। सामने की लॉन में माली रोज़ की तरह फव्वारे चालू कर चुका था, फूलों की क्यारियाँ हल्की धूप में मुस्कुरा रही थीं, लेकिन उस घर की खिड़कियों से आती हवा में एक ठहराव था… जैसे वहाँ कोई आवाज़ बहुत दिनों से गुम हो चुकी हो।

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तन्हाई - 1

एपिसोड 1 –तन्हाईअकेलेपन की गूंज और अधूरी चाहतों की शुरुआतशहर के सबसे शांत और प्रतिष्ठित इलाके में, सफ़ेद दीवारों एक बंगला हर सुबह की तरह आज भी बेहद सलीके से सजा था। सामने की लॉन में माली रोज़ की तरह फव्वारे चालू कर चुका था, फूलों की क्यारियाँ हल्की धूप में मुस्कुरा रही थीं, लेकिन उस घर की खिड़कियों से आती हवा में एक ठहराव था… जैसे वहाँ कोई आवाज़ बहुत दिनों से गुम हो चुकी हो।यह बंगला संध्या राठौर का हैं उम्र लगभग पैंतालीस। चेहरा अब भी उतना ही निखरा हुआ, जितना कभी शादी के शुरुआती दिनों में ...Read More

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तन्हाई - 2

एपिसोड 2तन्हाईउम्र का अंतर भूलकर मन का कंपनसुबह की ठंडी हवा ऑफिस की इमारत के लॉन में हल्के-हल्के बह थी। सरकारी दफ्तर की दीवारें हर रोज़ की तरह फाइलों की गंध से भरी थीं- लेकिन आज उस गंध में कुछ नया घुला था। शायद किसी नई शुरुआत की आहट…वही आज दफ्तर में सबके बीच चर्चा थी- "नए अधिकारी का ट्रांसफर यहीं हुआ है, हमने सुना हैं बड़ा ही तेज़ लड़का है।"संध्या ने अपनी मेज़ पर रखी फाइलों के ढेर के बीच से नज़र उठाई। दरवाज़े पर खड़ा था एक नौजवान- लंबा-चौड़ा, आत्मविश्वास से भरा चेहरा, आँखों में ईमानदारी और ...Read More

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तन्हाई - 4

एपिसोड 4तन्हाईशरीर और आत्मा का एक होनाशाम ढल चुकी थी बाहर आसमान में काले बादलों की परतें किसी अनकहे की आहट दे रही थीं बंगले में रखी गयी मीटिंग लंबी खिंच गई थी बिजली बार-बार जा रही थी, और बाहर मूसलाधार बारिश ने सड़कों को जैसे समुंदर में बदल दिया था.संध्या ने खिड़की से बाहर झाँका कारों की कतारें थमी हुई थीं, पानी छत से धार की तरह गिर रहा था। तभी उसने पीछे मुड़कर देखा अमर फ़ाइलें समेट रहा था, उसका चेहरा थकान से भीगा हुआ था।"अमर, इस मौसम में निकलना ठीक नहीं होगा,”संध्या ने धीमी, मगर दृढ़ ...Read More

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तन्हाई - 3

एपिसोड 3तन्हाईभावनाओं की सीमाएँ और समाज का भयसंध्या के ऑफिस में अब हर दिन कुछ अलग महसूस होता था, की उपस्थिति एक तरह की ऊर्जा लेकर आती थी जैसे किसी पुराने कमरे की बंद खिड़की अचानक खुल जाए और हवा अंदर आ जाए, अब दोनों के बीच कोई औपचारिक झिझक नहीं रही थी, पर एक अनकही दूरी अब भी थी वह दूरी जो समाज, उम्र और मर्यादा की दीवारों से बनी थी।ऑफिस के गलियारों में, फाइलों के बीच, बैठकों के दौरान अमर और संध्या की नज़रें अब अक्सर टकरातीं, हर बार संध्या आँखें चुराने की कोशिश करती, पर देर-सबेर ...Read More