जहरीला घुंगरू

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राज्य की शाम हमेशा शांत हुआ करती थी, लेकिन आज हवा में अजीब-सी घबराहट थी। सूरज की लाल किरणें पहाड़ों के पीछे डूब रही थीं, और किले की ऊँची दीवारों पर जली मशालों की रोशनी लहरों की तरह चमक रही थी। अचानक— धड़ाम! धड़ाम! धड़ाम! राज्य के हर कोने में नगाड़ों की आवाज़ गूंज उठी। सिपाही, दूत, प्रचारक—सब एक ही बात पुकारते हुए दौड़ रहे थे— “सुनो! सुनो! सुनो! राजा वज्रप्राण के आदेश से आज रात्रि भव्य नृत्य-सभा होगी!”

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जहरीला घुंगरू - भाग 1

जहरीला घुंगरू भाग 1“दवंडी की गूँज और पहला तूफ़ान”राज्य की शाम हमेशा शांत हुआ करती थी,लेकिन आज हवा में घबराहट थी।सूरज की लाल किरणें पहाड़ों के पीछे डूब रही थीं, और किले की ऊँची दीवारों पर जली मशालों की रोशनी लहरों की तरह चमक रही थी।अचानक—धड़ाम! धड़ाम! धड़ाम!राज्य के हर कोने में नगाड़ों की आवाज़ गूंज उठी।सिपाही, दूत, प्रचारक—सब एक ही बात पुकारते हुए दौड़ रहे थे—“सुनो! सुनो! सुनो!राजा वज्रप्राण के आदेश से आज रात्रि भव्य नृत्य-सभा होगी!”“प्रसिद्ध नृत्यांगना तालिका पहली बार हमारे राज्य में अपने नृत्य की कला प्रस्तुत करेगी!”“प्रत्येक नागरिक, प्रत्येक गाँववाला महल में उपस्थित हो!”दवंडी की ...Read More

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जहरीला घुंगरू - भाग 2

जहरीला घुंगरू भाग 2लेखक- राज फुलवरेअध्याय–7अतीत की धधकती राख**महल के लंबे गलियारों में सन्नाटा पसरा था।राजा वज्रप्राण अपने कक्ष बाहर निकलकर बरामदे की ओर चल पड़े।रात गहरी थी, बादल आकाश में बिजली की पतली रेखाओं की तरह चमक रहे थे।वज्रप्राण ने खिड़की से ऊपर देखा—“क्यों… क्यों यह सब यहीं आकर टूट जाता है?”उनके भीतर उबलता हुआ गुस्सा था—पर वह गुस्सा किसी दासी पर नहीं, किसी दुश्मन पर नहीं…वह गुस्सा रानी रुद्रिका पर था।मगर विडंबना यह कि वह उस गुस्से को व्यक्त भी नहीं कर पा रहे थे।क्योंकि रुद्रिका केवल उनकी रानी नहीं—उनके बचपन की साथी, राजकुल की प्रतिष्ठा, उनका ...Read More