जहरीला घुंगरू भाग 2
लेखक- राज फुलवरे
अध्याय–7
अतीत की धधकती राख**
महल के लंबे गलियारों में सन्नाटा पसरा था।
राजा वज्रप्राण अपने कक्ष से बाहर निकलकर बरामदे की ओर चल पड़े।
रात गहरी थी, बादल आकाश में बिजली की पतली रेखाओं की तरह चमक रहे थे।
वज्रप्राण ने खिड़की से ऊपर देखा—
“क्यों… क्यों यह सब यहीं आकर टूट जाता है?”
उनके भीतर उबलता हुआ गुस्सा था—
पर वह गुस्सा किसी दासी पर नहीं, किसी दुश्मन पर नहीं…
वह गुस्सा रानी रुद्रिका पर था।
मगर विडंबना यह कि वह उस गुस्से को व्यक्त भी नहीं कर पा रहे थे।
क्योंकि रुद्रिका केवल उनकी रानी नहीं—
उनके बचपन की साथी, राजकुल की प्रतिष्ठा, उनका पहला वचन… सब कुछ थी।
वज्रप्राण की आँखें धीरे-धीरे अतीत के धुँधले गलियारों में उतरने लगीं।
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रानी रुद्रिका — नाम जितना तेज़, मन उतना ही विचलित
जब वज्रप्राण और रुद्रिका की शादी हुई थी, पूरा राज्य जश्न में डूब गया था।
रुद्रिका सौंदर्य की मूर्ति थी—तेज, बुद्धिमान, कठोर परफेक्ट रानी।
पर शादी के बाद…
रुद्रिका के चेहरे पर एक अनकही झिझक थी।
पहली रात बीती, दूसरी बीती, महीने बीते—
पर रुद्रिका हमेशा दूर रहती।
वज्रप्राण जितना पास जाते, रुद्रिका उतना ही डर जाती।
वह अक्सर कहती—
“महाराज… कृपया… मुझे समय दीजिए।
मेरा मन… मेरा शरीर… किसी अनजाने भय में बंधा है।”
वज्रप्राण ने धैर्य रखा।
साल बीत गए।
पर रानी कभी भी उनके करीब न आ सकीं।
राजकुल पर दबाव बढ़ता गया—
उत्तराधिकारी कहाँ?
और इसी दबी चिंगारी ने एक दिन वज्रप्राण के दिल में खालीपन की दरार खोल दी।
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तालिका से पहली मुलाकात — जिसने सब बदल दिया
वज्रप्राण की यादों में उस रात की छवि बार-बार चमकने लगी।
वह एक छोटे से सामंत-राज्य में गए थे, जहाँ उत्सव चल रहा था।
वहीं उन्होंने पहली बार तालिका को मंच पर नाचते देखा।
उसकी आँखों में दर्द था, पर उसके कदमों में ऐसा तेज़ था कि धरती खुद उसके साथ धड़कती थी।
नृत्य समाप्त हुआ तो वज्रप्राण अपने आप उसके पास चले गए—
“तुम्हारा नृत्य… आत्मा को छू लेता है।”
तालिका मुस्कुराई—
पर उसकी मुस्कान में थकान और वर्षों पुरानी टूटन छिपी थी।
छोटी जागीरों में घूम-घूमकर नृत्य करने वाली यह लड़की
न जाने कितने अपमान, कितनी भूख, कितनी रातों का अभाव झेलकर यहाँ तक पहुँची थी।
वज्रप्राण को पहली बार लगा—
“इसमें कला नहीं… जीवन है।”
कुछ समय बाद उन्होंने तालिका से विवाह का प्रस्ताव रखा—
पर तालिका ने तुरंत मना कर दिया।
“महाराज, मैं नर्तकी हूँ…
रानियों की भीड़ में मेरी जगह नहीं।”
वज्रप्राण मुस्कुराए पर भीतर टूट गए।
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धीरे-धीरे… प्रेम पनपने लगा
सालों तक वज्रप्राण और तालिका मिलते रहे।
कभी राजकीय दौरे पर, कभी उत्सवों में, कभी अकेले महलों के उद्यानों में।
शुरुआत में तालिका हिचकिचाती रही—
पर एक दिन उसने कहा—
“महाराज… आप जब मुझे देखते हैं,
तो मुझे लगता है कि मैं सिर्फ नर्तकी नहीं… एक इंसान हूँ।”
यह वह पल था जिसने वज्रप्राण का दिल पूरी तरह बाँध दिया।
एक दिन उन्होंने तालिका से कहा—
“मैं तुम्हारा नृत्य केवल महलों में नहीं…
पूरे विश्व में पहुँचाना चाहता हूँ।
तुम्हें वह सम्मान दूँगा जिसकी तुम हकदार हो।”
और उन्होंने जगह-जगह बड़े-बड़े समारोह आयोजित किए।
राजा स्वयं सेनाओं की भर्ती कर रहे थे,
नए किले बनवा रहे थे,
और साथ ही तालिका का नृत्य हर राज्य में फैलाने लगे।
राज्यमंडलों में उसका नाम सूर्य की तरह फैलने लगा।
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जब तालिका बची… तो राजवज्र ने एक पग और बढ़ाया
वह रात आग की तरह उनके मन में फिर जल उठी—
घुँघरू का ज़हर तालिका के शरीर में गया था।
पर वह बच गई।
और उसी रात—
वज्रप्राण ने निर्णय लिया—
“मैं तालिका को खो नहीं सकता।”
चाहे रानी रुद्रिका को पता हो या न हो।
चाहे राज्य कुछ भी कहे।
वैद्य के कक्ष में, धुंधली दीवारों और धड़कते दीपक की लौ के बीच
वज्रप्राण ने तालिका का हाथ पकड़ा और कहा—
“मैंने तुम्हें लगभग खो दिया था।
इसलिए… आज यह रिश्ता अधूरा नहीं रहेगा।”
और उन्होंने तुरंत विवाह कर लिया।
गुप्त, पर राजकीय पद्धति से।
बिना किसी घोषणा के।
बिना रानी को बताए।
तालिका थकी थी, कमजोर थी—
पर उसकी आँखों में आँसू चमक उठे।
“क्या रुद्रिका रानी स्वीकार करेंगी?”
वज्रप्राण ने कहा—
“उन्हें मानना ही होगा।
क्योंकि यह निर्णय दिल ने नहीं—मेरी आत्मा ने लिया है।”
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तमन्ना — वह फूल जिसने सब बदल दिया
कुछ वर्ष बाद, एक प्यारी सी बच्ची ने महल में जन्म लिया।
उसकी आँखें तालिका जैसी, और माथा वज्रप्राण जैसा था।
वज्रप्राण ने उसे गोद में उठाकर कहा—
“मेरी तमन्ना…”
नाम जैसे खुद देवताओं ने चुना हो—
क्योंकि वह सच में राजा की तमन्ना थी,
वह सपना जिसे वह रानी रुद्रिका के साथ नहीं पा सके थे।
तमन्ना के आने से तालिका का जीवन पूर्ण हुआ।
और राजा का हृदय भी।
पर रानी रुद्रिका…
उनके भीतर तूफ़ान चलने लगा।