Ab lout chale - 7 in Hindi Classic Stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | अब लौट चले - 7

Featured Books
  • दिल ने जिसे चाहा - 27

    Dr. Kunal तो उस दिन Mayur sir को ये बता कर चले गए थे कि—“शाद...

  • अदाकारा - 62

    *अदाकारा 62*     शर्मिलाने अपने दिमाग पर ज़ोर लगा...

  • Tere Ishq Mein - Explanation - Movie Review

    फिल्म की शुरुआत – एक intense Romanceफिल्म की शुरुआत एक छोटे...

  • Between Feelings - 1

    Author note :hiiiii dosto यह एक नोवल जैसे ही लिखी गई मेरे खु...

  • Mafiya Boss - 3

    in mannat गीता माँ- नेहा, रेशमा !!ये  तुमने क्या किया बेटा?...

Categories
Share

अब लौट चले - 7


कुछ देर हम दोनों यूही बैठे रहे.... मै दोषी थी वो निर्दोष था मै सिर झुकाये बैठी थी अभिषेक मुझें देख रहा था... बिलकुल मनु के गुण वही मिज़ाज़ वही शक्ल सूरत संस्कार मनु ने अभिषेक को काफ़ी अच्छे दिये हैं उसके हर लफ्ज़ो में कितनी मर्यादा हैं... कितना धैर्य हैं इतना तो अमन और शिखा में नहीं... मुझे परवरिश का अंतर साफ दिखाई दें रहा था उन दोनों से कितना अलग हैं अभिषेक...
क्या सोच रहीं हैं संध्या जी...? यही ना आप जिससे मिलने आयी वही नहीं दिखाई नहीं दें रहें हैं... यही ना...?
इस बात पर मैने उसे उत्सुकता वस देखा
क्यों आज जब आपको ज़रूरत पढ़ी तो आप इतने सालों बाद उनके पास चली आयी... इन सालों में कभी नहीं सोचा आपने मनु और उसके बच्चे के बारे.... ओ हा कैसे सोचती आप आपको तो आज़ादी चाहिए थी मेरे पिता उस समय किसी प्राइवेट फार्म मै 6000/-रुपए कमाने वाले मुलाज़िम जो थे... आपके सपनों की उड़ान के लिए यहां की ज़िन्दगी बेड़ियों मै जो जकड़ी थी... खैर कहते हैं ना जो होता हैं अच्छे के लिए होता हैं... अब रहीं बात ये संध्या जी कि आप जानना चाहती हैं कि आपके यहां आने की खबर कैसे लगी तो आप इतना जान लें कि हम भी आपके उस घर की पल पल की खबर रखते हैं.... भले ही आप इतने सालों बाद यहां की अब खबर लेने आई हो...
तभी दरबाजे पर दस्तक हुई थी...
चलो खाना आ गया हैं...
और वो उठ कर खाने का पार्सल लेने चला गया था... मेरे मन में फिर एक नई बात घर करने लगी थी... ये कैसे हो सकता हैं कि उधर की सारी खबर इन तक कौन पहुँचता रहा होगा... कहीं अभिषेक यूं ही तो नहीं बोल रहा....
लीजिए खाना आ गया... चलिए खाना खा लीजिए कल शाम से आपने कुछ नहीं खाया...
और वो मेरे पास खाने का पार्सल रख कर बैठ गया था...
बर्तन काफ़ी दिनों से यूज नहीं हुए हैं यहां के इसीलिए आपको खाना इसी में खाना पड़ेगा...
और वो पार्सल खलता गया पैक खाने की सिर्फ एक ही प्लेट थी... उसने रोटी का एक नीवाला मेरे मुँह की और बढ़ा दिया... में सिर्फ उसे ही देखें जा रहीं थी... जब मै कभी मनु से रूठा करती थी तो वो भी इसी तरह मुझें खिलाया करते थे... आज मेरा बेटा मुझें खिला रहा है शायद ये दूरियां इसी रिवाज़ से ख़त्म हो और मैने अभिषेक के हाँथो से खाने का नीवाला खा लिया....मैने भी एक निवाला जब उसे खिलाना चाहा तो उसने मुँह फेर लिया और गंभीर मुस्कुराहट बिखेरते हुए बोला
जब मै छोटा था स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग हुआ करती थी हर बच्चे के मम्मी पापा आया करते थे सिर्फ मुझें छोड़ कर मीटिंग में काफी देर हो जाया करती थी सभी बच्चों की मां ऐ बच्चों को अपने हाथों से जबर जस्ती खाना खिलाया करती थी... लेकिन मै अपने पिता के साथ दूर बैठा समोसे खाया करता था और चुप चाप रोया करता था.. पापा मुझें समझाते बेटा तुम्हारी किस्मत में मां नहीं हैं तुम्हे ऐसे ही रहना होगा... मै तो तभी से ऐसा ही हूं...
मेरे अश्रुओ की धार निकलती ही जा रहीं थी...
आप तो खाना खाइये आप क्यों रुक गयी... ये लीजिए.. और वो मुझें अपने हाथों से खाना खिलता रहा मै रोती रहीं और खाती रहीं... यहीं सोचती रही कि मेरी गलतियों के परिणाम इतने तीखे होंगे जिसकी मै कल्पना भी नहीं कर सकती... सही ही कहा हैं परिणाम यही भोगने पड़ते हैं... जो मुझें भोगना भी था और देखना भी था...
पिताजी हमेशा मुझें समझते हैं ये जिंदगी हैं जो कभी खुद व खुद आसान नहीं होती हैं उससे लड़ना पढता हैं... कभी कभी कुछ लोग हमें जिंदगी में बहुत कुछ सीखा जाते हैं...

मेरा पेट भर चुका था...मैने उससे अब और खिलाने को मना किया तो उसने कहा
ये आधी रोटी ही तो बची हैं...
नहीं नहीं बस मेरा पेट भर गया...
आपको पता हैं.... इस आधी रोटी की चाह में न जानें कितने लोग रोज़ रात को भूखे सो जाते हैं... इसे तो आपको खानी ही पड़ेगी मैने खना फेंकना नहीं सीखा... और हा सिर्फ और सिर्फ अपने पिताजी का जूठा खा सकता हूं किसी और का नहीं....
और उसने खाने की ट्रे मेरे हाँथ में पकड़ा दी... कुछ वाकये भी जिंदगी के बड़े अजीब होते हैं जो कभी ना कभी दोबारा खुद व खुद सामने आ जाते हैं... बिलकुल यहीं वाक्या कभी मेरा और अभी के साथ हुआ था... मैने खाना पूरा खत्म किया तो अभी ने ट्रे मेरे हाथों से लें ली और पानी का गिलास मुझें थमा दिया मैने दो घूट पानी पिया और वो वहां से चला गया....
मै कुछ देर चुप चाप बैठी सोचती रहीं कि कभी मै मनु को झुकाया करती थी आज अभिषेक ने मुझें झुका दिया..
आँखों में नींद की उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी और मै पश्चाताप की आग में झुलस रहीं थी... तभी अभिषेक एक चादर लेकर आया था..
रात काफ़ी हो चुकी हैं अब आप सो जाए कोई और जरुरत हो तो बता दीजियेगा... शुभरात्रि...
और वो कमरे के दरवाजे हल्के से बंद करके चला गया था... मै भी सीधे बेड पर जा कर लेट गई थी...मेरा शरीर शांत था पर दिल और दिमाग़ बेचैन थे... आखिर मनु कहा हैं... क्या वो कहीं और हैं या फिर वो मेरे सामने आने से क्यों बच रहें हैं...बचना तो मुझें चाहिए था... में सोच ही रहीं थी कि अंदर से कुछ गिरने की आवाज़ आई तो मै फ़ौरन उठ कर उस और भागी थी किचन के पास पहुंची तो देखा अभिषेक नीचे बैठ कर खाना खा रहा था... उसे मेरे आने की आहट को पहचान लिया था..
कुछ नहीं संध्या जी चूहों ने उत्पात मचा रखा हैं आप जा कर सो जाए..
मेरे खाते में फिर एक गलती जुड़ चुकी थी मै चाह कर भी अभिषेक को अपने हाँथो से खाना नहीं खिला पा रहीं थी..
आज अभिषेक मुझसे भी बहुत आगे निकल गया... यहीं सोचते सोचते मैने अपने कदम कमरे की तरफ मोड़ लिए...