LOVE AAJ KAL 2 film review in Hindi Film Reviews by Mayur Patel books and stories PDF | ‘लव आज कल 2’ फिल्म रिव्यू - वेलेन्टाइन का मूड बनाएगी या बिगाडेगी..?

Featured Books
  • The Devil (2025) - Comprehensive Explanation Analysis

     The Devil 11 दिसंबर 2025 को रिलीज़ हुई एक कन्नड़-भाषा की पॉ...

  • बेमिसाल यारी

    बेमिसाल यारी लेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००१गाँव...

  • दिल का रिश्ता - 2

    (Raj & Anushka)बारिश थम चुकी थी,लेकिन उनके दिलों की कशिश अभी...

  • Shadows Of Love - 15

    माँ ने दोनों को देखा और मुस्कुरा कर कहा—“करन बेटा, सच्ची मोह...

  • उड़ान (1)

    तीस साल की दिव्या, श्वेत साड़ी में लिपटी एक ऐसी लड़की, जिसके क...

Categories
Share

‘लव आज कल 2’ फिल्म रिव्यू - वेलेन्टाइन का मूड बनाएगी या बिगाडेगी..?

‘लव आज कल 2’ की कहानी दो कालखंड में आकार लेती है. ‘कल’ यानी के 1990 में और ‘आज’ यानी के 2020 में. प्लोट वो ही है जो 2009 की ‘लव आज कल’ में था. वहां मोडर्न कपल थे सैफ-दिपीका, यहां मोडर्न कपल है कार्तिक-सारा. वहां रिशि कपूर अपनी पुरानी प्रेमकहानी सैफ को सुनाते थे, यहां रणदीप हूडा अपनी प्रेमकहानी सारा को सुनाते है. वहां रिशि कपूर के जवानी का रोल भी सैफ ने किया था, यहां रणदीप का यंगर वर्जन भी बने है कार्तिक आर्यन. स्क्रिप्ट में थोडा-बहोत बदलाव है, लेकिन मूल कथा सेम सेम ही है. लेकिन ये ‘लव आज कल 2’ का प्रोब्लेम नहीं है, असली प्रोब्लेम है निर्देशक इम्तियाज अली का निर्देशन, जो दर्शकों की धीरज की कसौटी करता है.

इम्तियाज अली की आदत है की वो सीधी-सादी लवस्टोरी बनाने के बजाय उसमें बेकार की सायकोलोजी घुसाकर कहानी को कोम्प्लिकेटेड कर देते है, जिससे दर्शक समज ही नहीं पाते है के आखिर फिल्म में क्या हो रहा है, क्यूं हो रहा है. ‘रोकस्टार’ और ‘तमाशा’ में भी यही हुआ था और अब ‘लव आज कल 2’ में भी यही हुआ है. कार्तिक और सारा दोनों चंगे-भले होने के बावजूद कई बार एसी एसी हरकतें कर देते है की जैसे वो पागल हो, एबनोर्मल हो. उनकी सायकोलोजी उनके जीवन पर इतनी ज्यादा हावी होती दिखाई गई है की वो दोनों आम इन्सान नहीं बलकी सायको लगते है. दोनों प्यार को लेकर जिस कन्फ्युजन से जूजते है, वो बडा ही बेतूका लगता है. दुनिया में करोडों लोग प्यार करते है, और ये चीज सच में इतनी कोम्प्लिकेटेड है ही नहीं. लेकिन निर्देशक को तो यही दिखाना है की प्यार करोगे तो मरोगे, सायको बन जाओगे, करियर की वाट लग जाएगी, बरबाद हो जाओगे… कुछ भी, यार..!

सारा-कार्तिक 22-23 साल की उमर के है, लेकिन ये बडी बडी फिलोसोफिकल बाते झाडते रहेते है. साफ पता चलता है की उनसे जो बुलवाया गया है वो विचार उनके पात्रों के नहीं बलकी निर्देशक की खुद सोच ही है, एसी सोच जो कई सारी ठोकरें खाने के पश्चात, एक मेच्योर उम्र के बाद ही आती है. डायलोग एसे बोले गए है जैसे बडे ही गहेराई वाले हो, पर एसा कुछ भी नहीं है. पूरी फिल्म बहोत ही मामूली से डायलोग से भरी पडी है. फर्स्ट हाफ फिर भी ठीक है, लेकिन सेकन्ड हाफ में तो फिल्म इतनी सुस्त हो जाती है की पूछो मत. वैसे भी फिल्म में स्क्रिप्ट के नाम पर कुछ खास नहीं है. जो थोडा-कुछ है वो 1990 वाले हिस्से में ही है. बाकी 2020 के पार्ट में तो केरेक्टर बस बातें करते रहेते है. बैठ के बातें करते है, दारू पीकर बाते करते है, सेक्स करते हुए बातें करते है… और वो सारी बातें इतनी हेवी, इतनी बोरिंग है की दर्शक पक जाए. कई सीन बेकार में खींचे गए है. सवा दो घंटे की फिल्म को आराम से 20-25 मिनट कम किया जा सकता था. जितना खराब निर्देशन उतना ही खराब एडिटिंग.

अभिनय में कार्तिक और सारा दोनों ने महेनत की है, दोनों अच्छे भी है, लेकिन कहीं कहीं वो बोर्डर क्रोस भी कर जाते है. सारा कई बार लाउड हो जाती है, ओवर-एक्टिंग कर जाती है. दोनों के बीच की केमेस्ट्री भी बस ठीकठाक ही है. कार्तिक वैसे ही कन्फ्युज्ड है जैसे इम्तियाज सर के रेग्युलर हीरो रणवीर कपूर होते है. दोनों का पारिवारिक बैकग्राउन्ड भी कन्फ्युज्ड ही लगा. रणदीप हूडा हेन्डसम लगे, लेकिन ‘लव आज कल’ के रिशि कपूर के किरदार में जो वजन था वो वजन रणदीप अपने केरेक्टर में नहीं ला पाए. अभिनेत्री आरुषी शर्मा की ये पहेली ही फिल्म है. वो बहोत कन्विन्सिंग लगी. उनका अभिनय बहोत ही नपातुला, बेलेन्स्ड है.

2020 के मुकाबले 1990 के समय की प्रेमकहानी ज्यादा दिलचस्प है. उस जमाने को जिंदा करने में फिल्ममेकर पूरी तरह से सफल साबित हुए है. दीवार पे चीपके श्रीदेवी के फोटो… ‘कयामत से कयामत तक’ देखने के लिए सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल के बाहर जुटी भीड… मटका कुल्फी का ठेला… पेट तक चढाकर पहेना गया बेगी पेन्ट… छाती दिखाने के लिए खुले रख्खे गए शर्ट के दो बटन… सब कुछ इतना परफेक्ट है की 40 प्लस दर्शक नोस्टाल्जिक हो जाए, इमोशनल हो जाए. लेकिन सिर्फ यही सब देखने के लिए दर्शक फिल्म क्यों देखे..? मनोरंजन नाम की चिडिया तो कहीं है ही नहीं…

म्युजिक के मामले में भी ये नई फिल्म ओरिजनल के सामने फिकी है. ‘लव आज कल’ का संगीत कमाल का था. सारे गाने हिट थे. यहां एक भी गाना याद नहीं रहेता. एन्ड क्रेडिट में मूल फिल्म के ही गाने ‘आहूं आहूं आहूं…’ को रिमेक कर दिखाया गया है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी सराहनीय है. कोस्च्युम्स और मेकअप भी उमदा है.

सारा कसूर निर्देशक इम्तियाज अली का ही है जो केवल अपने खुद के लिए फिल्में बनाते रहेते है. शायद ये उनके असली जीवन का आधा-अधूरा प्यार ही है जो उन्हें बार बार एसी, एक जैसी बोजिल रोमेन्टिक फिल्में बनाने को मजबूर करता रहेता है. लेकिन सर जी, आपकी एसी सायकोलोजिकल रोमेन्टिक फिल्में दर्शकों के सर से बाउन्स हो जाती है, उसका क्या..? इतना पकाने के बजाय आप हमें ‘जब वी मेट’ जैसी सीधी सादी आसानी से समज में आए एसी फिल्में क्यों नहीं देते..? फिल्म में सारा एक बार कार्तिक को बोलती है की, ‘अब तुम मुजे तंग करने लगे हो…’ ये डायलोग इम्तियाज अली पर बिलकुल फिट बैठता है. सरजी, अब आप दर्शकों को तंग करने लगे हो.

ओरिजिनल ‘लव आज कल’ के मुकाबले हर मामले में कमजोर (और पकाउ) इस ‘लव आज कल 2’ को दूर से ही नमस्कार किजिएगा. 5 में से 2.5 स्टार्स. वेलेन्टाइन डे का पूरा मूड खराब कर दिया, बाय गॉड…

***