Bhadukada - 8 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 8

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भदूकड़ा - 8


उनकी मां ने उन्हें “स्त्री सुबोधिनी” दी थी पढ़ने को, जिसमें लिखा था कि लड़की का स्वर्ग ससुराल ही है. मायके से डोली और ससुराल से अर्थी निकलती है. पति के चरणों की दासी बनने वाली औरतें सर्वश्रेष्ठ होती हैं. आदि-आदि.... और भोली भाली सुमित्रा जी ने सारी बातें जैसे आत्मसात कर ली थीं. सब मज़े से चल रहा था अगर वो घटना न होती तो..... उस घटना ने तो जैसे सुमित्रा जी का जीवन नर्क बना दिया... ! कितनी बड़ी ग़लती हुई उनसे.... लेकिन अब क्या? अब तो हो गयी.

“ मम्मी..... ये लो तुम्हारा नया मोबाइल. सबके पास स्मार्ट फोन था घर में तुम्हें छोड़ के. लो पकड़ो. अब इसमें व्हाट्स एप के ज़रिये तुम सारे रिश्तेदारों से जुड़ी रहोगी. उनके फोटो-शोटो भी देख पाओगी.”

ऑफ़िस से घर आते ही अज्जू ने सुमित्रा जी को खुशखबर दी.

“लेकिन बेटा ये टच स्क्रीन वाला फोन हम कैसे चला पायेंगे?”

“क्यों नहीं चला पाओगी? अरे जब पापा चला लेते हैं तो तुम्हें क्या दिक़्क़त है? हाथ में तो लो. पास में रहेगा तभी न चलाना सीखोगी.”

सुमित्रा जी ने मोबाइल हाथ में ले के देखा. बढ़िया सेट था. सीख लेंगीं अज्जू से लिखना, फोटो भेजना , दूसरे के फोटो देखना सब.

“मम्मी तुम्हारी फेसबुक पर भी आईडी बना दूंगा. वहां सुरेश, रमेश भैया लोगों की आईडी है, तो आप अपने गांव के सारे रिश्तेदारों की तस्वीरें तो देख ही लेंगीं कम से कम. भैया लोग बड़ी मम्मी की तस्वीरें भी पोस्ट करते रहते हैं. पूरा खानदान है फेसबुक पर हमारे ददिहाल और ननिहाल का. होना ही चाहिये था.”

“ तो तुमने अब तक क्यों नहीं दिखाईं किसी की तस्वीरें?

“येल्लो.... एक बार दिखा देता तो रोज़-रोज़ का टंटा न हो जाता? फिर तुम्हें रोज़ दिखाओ कि किसने क्या पोस्ट किया.” ठठा के हंस दिया अज्जू.

अज्जू ने आनन-फानन सुमित्रा जी की फ़ेसबुक आईडी बना दी, और घर के तमाम रिश्तेदारों के पास उनका मित्रता अनुरोध भेज दिया. कुछ लोगों ने, जो उस वक़्त ऑनलाइन रहे होंगे, दनादन अनुरोध स्वीकार कर, सुमित्रा जी की वॉल पर चमकना भी शुरु कर दिया. सुमित्रा जी ये अजूबा देख अचम्भित थीं और प्रसन्न भी. परिवार के लड़के-बच्चों को पहचान-पहचान के किलक रही थीं. मज़े की बात, पूरे खानदान का काम फ़ेसबुक पर तस्वीरें पोस्ट करना ही था, सो पल-पल की तस्वीरें अब सुमित्रा जी को मिल पा रही थीं. किशोर दादा की वॉल पर कुंती, कवर फोटो बनी चमक रही थी. तस्वीर पुरानी थी, उतनी ही पुरानी, जितनी सुमित्रा जी की यादों को फ़िर हवा दे दे.....!

तस्वीर में कुन्ती के गले में वही मोटी चेन दमक रही थी, जो सुमित्रा जी को उनकी अम्मा ने अज्जू के जन्म पर दी थी, और जो ससुराल आने के दूसरे ही दिन ग़ायब हो गयी थी....!

अब आप सोचेंगे कि सुमित्रा जी अपनी ससुराल गयीं, तो वहां चेन ग़ायब हुई. हम कुन्ती को क्यों बीच में फ़ंसा रहे? लेकिन भाईसाब, हम फ़ंसा नहीं रहे, वे तो खुद ही फ़ंसी-फ़साईं हैं. हुआ यूं, कि बड़की बिन्नू के जन्म के बाद सुमित्रा जी की अम्मा ने कुन्ती को भी सुमित्रा के साथ भेज दिया था, मदद के लिये।
(क्रमशः )