Becheni ko chain mile in Hindi Moral Stories by Satish Sardana Kumar books and stories PDF | बेचैनी को चैन मिले तो

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बेचैनी को चैन मिले तो

बेचैनी को चैन मिले तो मैं कुछ सोचूँ,
बेख्याली को ध्यान में रखूँ तो मैं कुछ पाऊं।
जीवन इतना सरल कहाँ,
अमृत में ही गरल पड़ा,
नीरव हो गए स्वपन भी अपने,
आँखों से भी तरल चुका।
बेदिली को दिल में धरूं तो धैर्य कहाँ से लाऊं।
उसका सपना था एक नर्स बनने का।गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए राजरानी बहनजी की छोटी बहन गाँव के ही नजदीक बड़े अस्पताल में नर्स लगी थी।वह अपनी यूनिफॉर्म में ही अपनी बहन से मिलने आई थी
उनकी नई यूनिफार्म जो चकाचक प्रेस करी गई थी,उनके गोरी त्वचा पर खूब फब रही थी।उसके मुकाबले रीठे से धुला बगैर प्रेस किया उसका सूट सलवार उसको शर्मिंदा कर रहा था।बाउजी को कई बार कहा है मुझे लाला की दुकान से एक निरोल साबुन का पूड़ा ला दो,लेकिन बाउजी सुनते कहाँ हैं।कहते हैं कहीं से कास्टिक मिले तो मैं तुझे पाँच किलो देसी साबुन बना कर दे दूँगा।तब देखना कपड़े कैसे निखरते हैं।गाँव के जोहड़ का पानी भी तो मैला है।जाने कब नहर आएगी।रोज सुनते हैं,नहर आ रही।
गाँव के एक दो पैसे वाले घरों में नलके लगे हुये हैं।लेकिन मजाल है कि एक बाल्टी पानी भी भर लेने दें।कहते हैं कि हत्थी की कील घिस जाएगी।स्कूल में एक नलका लगा था,लेकिन अब तो बंद पड़ा है
बच्चों ने गेड़ गेड़ कर तोड़ दिया।बड़ी बहनजी ने ठीक नहीं करवाया।बोलती है बजट नहीं आया।क्या ख़बर बजट कब आए।गाँव के सरदार मिस्त्री से ठीक करवा लेती।जरूरी है कि बजट से ही करवाना है।
नर्स बनने के लिए विज्ञान में होशियार होना जरूरी होता है।विज्ञान मुझे कभी समझ आया नहीं।ऊपर से गणित के कठिन सवालों से मेरी जान सूखती थी।बड़ी मेहनत करती जब पास भर होती।आठवीं में पक्के पेपरों से पहले जो बुखार चढ़ा,मियादी बुखार बन गया।गाँव का बैद बोला,सफ़रा हो गया है पिलाओ कड़वी दवा दो महीने,जूड़ बांधो।
बड़ी मुश्किल पेपर दिए ,सर घूमता था।पर फैल हो गयी।
बड़ी बहनजी ने बहुत समझाया बाउजी को।
लड़की को पढ़ने का शौंक है।फेल हो गयी तो क्या।अगले साल पेपर दे लेगी।
लेकिन बाउजी बोले,चार वीरों की एक एक बहन है।कमजोर हो गयी है।निगाह लगाती है तो चक्कर आते हैं।सेहत्याब हो जाएगी तो पढ़ाई कहीं भागी न जा रही।
सेहत तो उभर आई।लेकिन पढ़ाई से हट गयी तो हट गई।दो साल छोटे बच्चों के साथ बैठने में शर्म आती थी।माँ ने सिलाई कटाई वाली बहनजी के पास बैठा दिया।भाईयों के कमीज पाजामे सीले।बाउजी का मैले लट्ठे का कॉलर वाला कुर्ता।खालसों के कशहरे सील कर गाँव भर में प्रसिद्ध हो गई।
इस बीच कब उसकी उम्र सत्रह साल की हो गई।उसे पता ही न चला।एक दिन आठवीं फ़ेल का सर्टिफिकेट कुछ ढूंढते हुए उसके हाथ पड़ गया।जन्मतिथि देख हिसाब लगाया।उसे सत्रहवां लगे एक महीना हो गया था।
गाँव के छीपी मोहल्ले में दुकान से रील मिलाने गई थी।वापिसी में एक लड़के ने हाथ पकड़ लिया।कोई देख लेगा,इस डर से उसकी धड़कन बढ़ गई।उसका चेहरा भी ठीक से देख न पाई।कुछ गोरा गोरा सा हल्की दाढ़ी वाला लड़का था।बड़ी मुश्किल से हाथ छुड़ा कर भाग आई।लेकिन सीना उत्तेजना के मारे बहुत देर तक ऊपर नीचे होता रहा।
उस दिन की घटना के बाद उसके मन में असंख्य कविताएं फूटने लगी।अपने चेहरे और शरीर को दर्पण में निहारने का अक्सर मन होने लगा।जब वह पढ़ती थी,उसे कविताएं कॉपी पर उतारना बड़ा पसंद था।अब वह कॉपी जाने कहाँ धरी होगी।उसे हरिऔध 'एक बूंद'कविता बड़ी पसंद थी।
उसने उसे कॉपी में उतारते हुए कई बार गुनगुनाया था,
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी,
सोचने फिर यही जी में लगी

आह!क्यों घर छोड़ कर मैंं यों कढ़ी।
उसे भी एक दिन घर छोड़ना होगा।माँ बाउ जी का स्नेहिल आँचल त्याग कर आगे बढ़ना होगा।
देव,मेरे भाग्य में क्या है बदा!
देव,मेरे भाग्य में क्या है बदा?
यह सोच सोच कर उसे सिर में दर्द होने लगा।
दो दिन से गाँव की बिजली कटी हुई थी।ढिबरी की रोशनी में कौन कितनी देर तक जागता।वह भी आठ बजे ही सो गई थी।रात में जोर जोर से बातें करने की आवाज़ सुनकर वह जगी थी।पता चल कि भैया के दोस्त जो हमारे दूर के रिश्तेदार भी थे,उनकी गाड़ी खराब हो गई है।गाड़ी मतलब ट्रक।दस किमी इधर से टोचन करके लाना होगा।ट्रेक्टर लेकर जाना पड़ेगा।रोटी खाकर भैया उनके साथ चले गए।कब लौटे उसे पता नहीं।वह तो नींद के आगोश में चली गई थी।सुबह उठी तो एक सुदर्शन नौजवान को खुरे में कुल्ला करते पाया।उसने उसे देख नमस्ते करी।उसके गाल जाने क्यों लाल हो गए।
जिस तरह से वह अचानक आया था वैसे ही अचानक चला गया।लेकिन खुरे के पास जाती तो उसकी शक़्ल ध्यान में आ जाती।उसको याद करते करते एक कविता सी जेहन में उतर गई थी।बहुत बार वह बेख्याली में उसको गुनगुनाते रहती थी,
मैंने तो सुना था कि आएगा
गोरा गोरा एक राजकुमार,
सात समंदर करके पार,
डोली में लेके मुझे जाएगा,
जब कर लूंगी साज सिंगार।
आया तो एक ट्रक वाला
जिससे हो गया मुझे क्यों प्यार।
एक दिन यह कविता उसने कॉपी में उतार दी।उसकी मोहाली वाली ताई की लड़की ने कविता देख ली।देखकर बोली,एकदम लचर फिल्मी तुकबंदी है।ज़्यादा दूरदर्शन देखने का असर है।'और अपने सड़े दाँत दिखाकर खी खी करने लगी।
एक दिन उसी ट्रक वाले का रिश्ता हीरो भाभी ले आई।हीरो भाभी उनके पड़ोस की लड़की थी,जो इस गाँव विवाहित थी।मैं तो कहती हूँ चाची देर न करो।लड़का हमारी लड़की पर लट्टू है।इन लड़कों की नीयत बदलते देर न लगती।नई फुलझड़ी देखी नहीं इसे छोड़ दूसरी के पीछे भागने लगेगा।
'ऎसे भागेगा तो शादी के बाद भी भाग जाएगा।'
'शादी के बाद कोई मुश्किल ही भागता है।गाड़ी में जुता बैल सीधा सीधा चलता है।
पता नहीं गाड़ी में कौन जुता लेकिन उस ट्रक वाले नौजवान के संग बंध कर वह खुशी खुशी चली आयी।दो बेटों को जन्म देकर उनको पाल पोस कर बड़ा कर जब हर तरह की बीमारी से लाचार उक्त शरीर जवाब दे गया तब उसने जाना कि गाड़ी में जुतना क्या होता है।