Antim yatra in Hindi Moral Stories by Satish Sardana Kumar books and stories PDF | अंतिम यात्रा

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अंतिम यात्रा


जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर तहबाजारी लगाते हुए इतने साल गुजर गए।कितने राजा आए और चले गए।नेहरू जैसा दयानतदार शख्स न कभी आया न आएगा।उसकी लड़की इंदिरा गांधी एक अहंकारी शासक से ज्यादा कुछ न बन सकी।अब वालों की बात मत पूछो,अब वालों का नाम लेना तो अपनी जुबान खराब करना है।कैसे कैसे लोग तो कुर्सी पर काबिज हैं।कभी मसखरे तो कभी दुर्दांत हत्यारे!जनता कोल्हू के बैल में जुती सिर उठाकर भी न देखती कि उनके सिर पर डंडा लेकर खड़ा शख्स कौन है?उन्हें इस जीवन में कोल्हू से कैसे भी छुटकारा नहीं।
कभी जोश और जवानी दोनों थे तो सीढियां फर्लांग कर कहां से कहां पहुंच जाता था।अब तो दो सीढ़ी चढ़ते ही कड़ कड़ कर उठती हैं हड्डियां।
पहलौठी का बालक दंपति की गृहस्थी की नींव होता है।उसका स्थान हमेशा बना रहता है।पहलौठी का बालक चला जाए तो समझ नहीं आता कि जिया जाए या मरा जाए।
यह शहर जिसका नाम दिल्ली है पहले कभी इतना उदास नहीं करता था जितना बेटी के जाने के बाद करता है।मेरी बेटी निर्मला मेरे प्राणों का आधार थी।उसके नन्हें पैरों में बड़े चाव से मैंने पाजेब पहनाई थी।छोटे से घर के दो कमरों में जब वह इधर उधर दौड़ती थी तो उसकी पाजेब छन छन करती थी।उस खुशी की बाबत आज सोचता हूं तो आंखें भर आती हैं।इन आँखों के अश्रुओं का न ओर है न छोर न स्रोत है न सागर!
वही निर्मला जिसका निर्मल रंग रूप और कोमल मन उसके माता पिता की जीवन भर की थाती था।वह थाती पल भर में रीत गई थी।निर्मला की मौत की खबर सुनकर कैसे बदहवास होकर दोनों पति पत्नी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे थे।बड़ी मुश्किल से वेटिंग टिकट लेकर रिज़र्वेशन वाले कोच में चढ़ पाए थे।टी टी के हाथ पैर जोड़कर बड़ी कठिनाई से हासिल हुई इकलौती सीट पर बैठते ही अब तक ज़ज्ब करती आई उसकी मां यानि मेरी पत्नी कुंतो बेतहाशा रोने लगी थी।उसका रुदन इतना तीव्र और बाढ़ भरा था कि कोच में सवार महिलाओं के दिल हिल गए थे।एक राधास्वामी औरत ने पत्नी को पानी पिलाकर गोदी में खींचकर चुप कराने की भरसक कोशिश की थी।मैं सीट के किनारे कांपती टांगों से खड़ा हुआ गले में कहीं गहरे फंसे थूक को निगलने की कोशिश कर रहा था।
सुबह के पांच बजे कहीं जाकर लेट शेट होती ट्रैन लखनऊ प्लेटफार्म पर लगी।हम मियां बीवी के शरीर में मानो सत ही न था।यही स्टेशन था जिसके आने की उत्सुकता रहती थी।कोई आदमी दिल्ली में भी इधर का मिल जाता था तो उसे खुशी खुशी बताते कि हमारी बिटिया भी लखनऊ में रहती है।उस दिन वही लखनऊ था जिसे देख देह पत्थर की और पैर मन मन के हो रहे थे।
बेटी के घर जब भी आए दामाद स्टेशन पर लेने आया।यह पहला मौका था जब हमें अपने दम पर पहुंचना था।ऑटो रिक्शा वाले को कॉलोनी का एड्रेस समझा कर टूटे बदन रिक्शा में आकर बैठा तो मुंह से अपने आप आह निकली,"हे राम!क्या दिन दिखाया तूने आज!!"
मेरी आह की आवाज सुनकर पत्नी फिर से रोने लगी।
मेरी बेटी,हमारी बेटी,जो हमारा प्राण थी जीवन का आधार थी,वह हमारी प्रिय निर्मला इस संसार को छोड़ कर जा चुकी थी।एक निर्मम पुलिस वाले की लाठी ने उसे मृत देह में बदल दिया था।उसका कुसूर क्या था?अपनी एड हॉक नौकरी को पक्की नौकरी में बदलने की मांग करने गई थी।आखिर इतना पढ़ने लिखने का फायदा क्या जब कोई मुस्तक़िल रोजी रोजगार ही न मिले।यह रोजगार ही था जिसके अभाव में हमें अपनी बेटी एक छोटे कपड़ा दुकानदार को ब्याहनी पड़ी थी।वह दुकानदार उसे सम्मानजनक जीवन तो क्या देता एक अदद टॉयलेट बाथरूम भी न दे पाया।उसकी जिद की बलिवेदी पर हमारी बेटी निर्मला मुंह पर पट्टी बांधे खामोशी से पड़ोसियों के टॉयलेट बाथरूम में जाने की अपमानजनक प्रक्रिया से दिवस रात्रि गुजरती रही।
"हे भगवान!"मेरे मुंह से निश्वास के साथ निकला।पत्नी ने मुझे निगाह उठाकर देखा।उसकी आंखें सूजी हुई थी।वह रो रोकर थक चुकी थी।
उस गली का मोड़ आ गया था जहां कभी हमारी बेटी रहा करती थी अब उसकी मृतक देह अंतिम संस्कार की बाट जोहती हमारा इंतजार कर रही थी।यह सोचकर मेरे कदम लड़खड़ा गए।आगे बढ़ने की शक्ति जाती रही और मुझे चक्कर आ गया।
"देखो!क्या करते हो?संभालो अपने आप को!"पत्नी की चिल्लाती हुई आवाज दूर कहीं से आती हुई सुनाई दी।
किसी ने मुझे पास पड़ी हुई लकड़ी की बेंच पर बैठाया।
"चाचा!हौंसला रखिये।"कोई कह रहा था।दिल्ली में कोई अंजान आदमी को चाचा नहीं कहता है।यह रिवाज इधर यू पी में है।
मैंने आंखों पर जोर डालकर चाचा कहने वाले आदमी को देखा।अरे!यह तो स्कूटर रिपेयर वाला है।दामाद जी इससे ही स्कूटर रिपेयर करवाते हैं।
"बेटा!मेरी बेटी मर गई!"मैं रोते रोते उससे लिपट जाता हूं।एक अनजान आदमी से जिससे थोड़ी सी पहचान का धागा जुड़ा है।मुझे अपने रिश्तेदार से भी ज्यादा अपना लगा था।मेरा दुख का बांध टूट गया और आंसुओं की बाढ़ बह निकली।
कुछ लोग हमारा अटेची-बैग उठाये हुए हमें बेटी के घर छोड़ गए।शुरू के एकाध साल को छोड़ दें तो हम कभी भी इस घर के मुख्य द्वार से नहीं आये।
हमारी एंट्री घर के पीछे एक निर्जन गली में से लाल पत्थर की संकरी सीढ़ियों से हुई जिनके खत्म होने के बाद हमारी बेटी का डेढ़ कमरे का सादा सा मकान आता था।
दामाद जी और उनके भाई के बीच की तनातनी ने हमारी बेटी को इस निर्जन गली की उम्मीदरहित सीढ़ियों के दहाने पर ला पटका था।यह डेढ़ कमरे का मकान जिसमें रसोई तो थी जहां खाया -पकाया जा सकता था लेकिन टॉयलेट बाथरूम नहीं था।जहां शौच स्नान से निवृत हुआ जा सका।संयुक्त परिवार पिता के मरने के
बाद बिखर गया था।इस विभाजन में मेरी बेटी के हिस्से में टॉयलेट- बाथरूम नहीं आया था।दामाद जी अपना टॉयलेट बाथरूम नहीं बनवाना चाहते थे क्योंकि उनके मुताबिक नीचे स्थित टॉयलेट-बाथरूम असल में उनका ही था जिसे छोटे भाई ने धींगामुश्ती से कब्जा रखा था।हमारी दोहती बाबू उस टॉयलेट -बाथरूम को धड़ल्ले से इस्तेमाल करती थी क्योंकि बाबू पूरे घर की लाड़ली बेटी थी।दामाद तो मर्द हैं कहीं भी चले जाते थे।पूरा दिन उनका दुकानदारी के सिलसिले में बाहर ही निकलता था।हमारी बेटी ही इस अभाव को अपनी छाती पर झेलकर चुपचाप इस आशा में जीवन गुजार रही थी कि कभी तो इस अमानवीय परिस्थिति से छुटकारा होगा।
अब वह इस दुनिया से ही छुटकारा पा गई थी।
छोटे से बरामदे के मारबल चिप्स के डिजाइन वाले फर्श पर मेरी बेटी की सफेद खून निचुड़ी देह रखी थी।माथे पर खून सनी पट्टी थी।यह चिप्स वाला फर्श बेटी के जिंदा रहते कई बार मेरे सपने में आया था।यह सपना हमेशा सुख और संतुष्टि देता था।अब शायद कभी नहीं देगा।
हम लुटे पिटे बिछी दरी पर जा बैठे हैं।निर्मला की देवरानी बिट्टो आकर मेरे पैर छू रही है।मेरा हाथ आदतन आशीर्वाद के लिए उठता है लेकिन बीच में ही रुक जाता है।इन लोगों की वजह से मेरी बेटी को शौचालय जैसी बेसिक सुविधा भी उपलब्ध नहीं हुई।एक शापित वंचिता की तरह वह घुट घुटकर अपना जीवन गुजार गई।
"पापा!निर्मला दीदी गुजर गई।हमारे साथ बहुत बुरा हुआ।'बिट्टो रोकर गले लग गई।'बिट्टो हमेशा से हमें पापा मम्मी ही कहती है।
जब भी हम आये हैं हमें लाल पत्थर की सीढ़ियों के दहाने पर खड़ी मिलती रही है।इससे ज्यादा रिश्ता हमारा उससे कभी रहा नहीं।
बिट्टो मेरे बाद पत्नी के गले लगकर रो रही है।
"फ़फेकुटनी!फरेबन!!"कोई पड़ोसन मुंह बिचकाकर कहती है।मैं उसे थोड़ा पहचानता हूं।
लेकिन अब दिमाग ठिकाने नहीं है।
बाबू आकर उदास सी मेरे पास बैठ गई है।उसकी नानी उसे पास बुलाकर चूमती है और चूमते चूमते रोती जाती है।
मेरा बेटा और बहू फ्लाइट से आये हैं।वे मुझसे मिलकर थोड़ा परे आकर बैठ गए हैं।
अब शव को अंतिम यात्रा के लिए तैयार किया जा रहा है।