Laal Palaash in Hindi Poems by Yasho Vardhan Ojha books and stories PDF | लाल पलाश

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लाल पलाश




(भोजपुरी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बड़े भूभाग में बोली
जाने वाली भाषा है। तीन कविताओं के बाद एक पटनहिया और अंत में भोजपुरी की एक कविता सुधी पाठकों के लिए नीचे संकलित हैं।)

१. लाल पलाश

कितने वर्षों के बाद आज

फिर धवल दिखा आकाश,

साफ हवा में दिखा,

दूर वह फूला लाल पलाश।


बिना धुएं में लिपटी- सिमटी,

आम - बौर की महक आ रही,

वाहन गायब, शोर थमा है,

वीरां सड़कें, अजब समां है,

गौरइया की चिर-चिर, चिर-चिर,

कोयल खुश हो खूब गा रही।

मौसम ने भी करवट ले ली,

सूर्य फेंकते प्रखर प्रकाश।

दूर वह फूला लाल पलाश…


दिन भर तो कमरों में काटा,

गजब रात का है सन्नाटा,

आसमान बदला-बदला है,

चांद खेलने को मचला है,

सारे तारे साथ हो लिये,

जाने कौन खेल अगला है,

कुछ तो बात हुई है जग में,

प्रकृति का यह रूप भला है।

सब कुछ है निस्तब्ध मगर,बस

मनुज है नहीं मनुज के पास।

दूर वह फूला लाल पलाश…

सब कुछ खा लें, सब कुछ पा लें

बहुत जमा है, और जमा लें,

लालसा ऐसी हुई अदम्य,

पाप सब करने लगे अक्षम्य,

तो, प्रकृति से नहीं हुआ बर्दाश्त,

जननी से बोली सुनिए मात,

मानवों का करिये कुछ उपचार,

नहीं तो अब डूबा संसार।

एक अदृश्य विषाणु ने,

मां से पाया आदेश,

कांपते दीख रहे सब देश।

अब भी अगर नहीं सुधरे,

तो निश्चय ही है महाविनाश।

कहां फूलेगा लाल पलाश!!

-- यशो वर्धन ओझा।

२. शुरुआत

(बच्चों के पहली बार दो पैरों पर चलने पर कुछ पंक्तियां)

आज,

खास इक बात हुई है,

अलट-पलट औ',

सरक-सरक कर,

आगे बढ़ना,

पीछे छोड़,

सहम-सहम कर,

दो पैरों पर,

चलने की,

शरुआत हुई है।

आज,

खास इक बात हुई है....


कदम काँपते

मगर नापते,

बस माता तक की दूरी

परम लक्ष्य है वही

उसे पाना है

उनकी मजबूरी

मृग-शावक सी

सहज चपलता

भला उसे कैसे आती,

नन्हे पैरौं की पिंडलियाँ,

शीघ्र शक्ति कैसे पातीं।

डगमग चरणों के,

नूपुर से मीठी सी,

आवाज़ हुई है।

आज खास इक....

विहग -शिशु,

जैसे तोले पंख,

किंतु मन प्रतिपल,

रहे सशंक,

गिरा तो,

धरा का आलिंगन,

उड़ा तो,

चूमा उच्च गगन।

दो नयनों से,

आज क्षितिज का,

सीधा हो दर्शन।

उसके हर पग पर,

स्वजनों की स्नेह-सिक्त,

बरसात हुई है।

आज खास इक बात हुई है।।

-- यशो वर्धन ओझा

३.अंकुराए दीप

मीत ने मीत के सामने,

खड़ी कर ली थी भीत,

भय की।

दूसरा भी मान लेता,

तो दोनों की जीत,

तय थी।

क्योंकि,कभी- कभी

डरना भी जरूरी है,

साथ रहने के लिए,

दूरी, अभी मजबूरी है।

प्रार्थना के लिए भी सभी,

साथ न जुटते तभी,

विजय थी।

...जीत तय थी।

न माने मीत, तो देखो,

बदल गया है हिसाब,

दो और दो चार न हो कर,

अब हो रहे हैं हजार।

न हम होंगे न तुम होगे,

अगर कुछ होगा तो बस,

प्रतीक्षा प्रलय की।

...जीत तय थी।

चलो, अब भी समय है,

जोड़ लें मन, पर रहे दूरी,

क्षति जो हो चुकी है,

वह अभी भी हो सके पूरी।

करें उद्यम और,
कामना,सबके,

अभय की।

...जीत तय थी।

मीत, आशा की गठरी,

जब रही थी रीत, तभी,

विष-बीजों से भी,

शुभ्रता के,

अंकुराए दीप।

धवल हो फिर धरा,

धारणा बस,

प्रत्यय की।।

...जीत तय थी।

-- यशो वर्धन ओझा।

४.-:सेयर:-

चोरा कर,
ले लियो था तुम,
जो बाबूजी के अंटी से,
बोलो, नन्ने दोगे,
ओ में से,
आधा सेयर मेरा।

अगोरे ला कह्यो,
त हम हुँआ पर,
न ठ्ठड़े थे का?
चट्टी, चट बजी त पट से,
सीटी हम बजाया ना?
साथे थे, त तोरे हम,
धराए से बचाया ना।
आ तुम तो नोट ले कर,
रोड दन्ने चल दियो तुरते,
नुकाए हम, धरा कोना,
हुँआ था धुप्प अंधेरा।
त बोलो नन्ने दोगे,
ओ में से,
आधा सेयर मेरा।।

धराते तुम,
त हम बचते?
अरे हम भी धरा जाते।
हौंकनी से ठोंकाते तुम,
त लप्पड़,
हम भी खा जाते।
बराबर रिस्क था दुन्नों का,
हम एक्को जे पकड़ाते।
तू पैसा रख लियो अपने,
आ मेरे पड़ गया फेरा।
त बोलो नन्ने दोगे,
ओ में से,
आधा सेयर मेरा।।

अकेले खा लियो कचरी,
कल्हे जा फुलौड़ी कन।
जरिक्को नन्ने सोच्यो,
भाई का भी,
होगा थोड़ा मन।
जे मेरे दे दियो धोखा,
तोरा मनवे त था खोटा,
कि मेरे देख कर भी तुम,
तुरंते चल दियो डेरा।।
त बोलो नन्ने दोगे,
ओ में से,
आधा सेयर मेरा।।

अबकी खा लिया गच्चा
तइयो मन है ई सच्चा।
जरी सुन भी दियो मेरे,
तुरत्ते मान जाएँगे,
दुन्नो दोस्त साथे मिल,
कहीं से कुछ टपाएँगे,
कचौड़ी-घुघनी साथे,
हम जलेबी भी उड़ाएँगे।
सुनो सब सोच कर के,
कीजियो कुछ फैसला मेरा,
त बोलो अब त दोगे,
ओ में से,
तनियो सेयर मेरा।।

-- यशो वर्धन ओझा


५. घरऽ हीं रहऽ
(भोजपुरी में)

जइह जिन बहिरा,

रोडे पऽ ठढ़ल बा,

लाल टोपीधारी,

लठिये से मारी,

दीहि चार गारी।


गारी तक तऽ ठीक बा,

जाने केकर छींक बा,

फइलल बा बेमारी,

छींकिए से धारी।


बाद में बोखार बा,

बथत कपार बा,

मोस्किल होखी सांस में,

जीयल परी भारी।


फोन जाई थाना,

एहिजा हऽ करौना,

छान के ले जाई,

बनबऽ भेखारी।

बचबऽ तऽ घरे अइबऽ,

ओहिजो फरके रहबऽ,

हीत-मित मिलिहें ना,

सभ के लाचारी।

बबुआ तें बात मान,

जिनगी ना कऽ जियान,

जबले बा करौना,

घरवे रहऽ ना।।

---यशो वर्धन ओझा