biki hui ladkiya - 2 in Hindi Moral Stories by Neela Prasad books and stories PDF | बिकी हुई लड़कियां - 2

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बिकी हुई लड़कियां - 2

बिकी हुई लड़कियां

  • नीला प्रसाद
  • (2)
  • मुझ पर इतना भरोसा है- मैं खुश हुई. पर एक क्षण के गर्व के बाद संकोच से गड़ने लगी. शुचि को तो जैसे अंदाजा ही नहीं है कि अब मैं पहले वाली नहीं रही. अब मेरी दुनिया दूसरी है.

    ‘आप देख रही हैं न, कि यह कितनी छोटी-सी लगती है. तभी तो हुई सारी समस्या. यह सिद्ध करने में कि यह अठारह से ऊपर है, पसीने आ गए. कोई मानता ही नहीं था- न पुलिस, न डॉक्टर, न महिला संस्था वाले कि यह बालिग है. डॉक्टर तक कह रही थीं कि इसकी जांच की क्या जरुरत, साफ लगता है कि माइनर है. वो तो हमलोगों ने जोर डाला कि जैसे करती रही हैं, वैसे करके देखिए न कि जैसे हड्डी की उम्र, अंदरूनी अंगों का विकास और जाने क्या-क्या, जिससे उमर तय होती है. तब जाकर..’ शुचि ने बोलना शुरु किया तो बेटी ने टोक दिया.

    ‘पहले यह तो बताओ कि यह सब क्यों जरूरी हुआ. माने कि कैसे यह बेच दी गई, कैसे इसकी मां ने ही..’, तरु अधीर हो रही थी.

    ‘बताती हूं न! थोड़ा तो फोन पर बता ही दिया था.. बताया था न मैम?’

    ‘हां’.मैंने सिर हिलाया.

    ‘पर आंटी, यह तो जानना जरूरी है न कि इसे इसकी मां ने ही क्यों बेचा. है कि नहीं?’ तरु बीच में टपक पड़ी.

    ‘चलो, तुम्हीं बताओ’. शुचि ने हथियार डाल दिए.

    ‘अरे, क्यों बेचा माने क्या? गरीब हैं हमलोग. मां को लॉगा कि एकदम से टाका (रुपया) मिल जाएगा तो एकठो छप्पर डाल लेगी, जमीन ले लेगी और सुख से रहेगी. फिर भाजी उगा के बेचेगी और मॉजा कॉरेगी

    ( मजा करेगी). वहां मैं बाप के उमर के बूढ़े के साथ..’, वह लड़की आक्रोश से बोली

    ‘इसका नाम क्या है?’ मैंने पूछा

    ‘बानी’. तरु बोली

    ‘पर बानी, तुम क्यों राजी हो गई कि एक बूढ़े के साथ शादी कर लोगी, जो तुम्हारे बाप की उमर से भी ज्यादा था?’, मैंने पूछा.

    ‘एल्लो. मेरे को बॉताया थोड़े था कि इसको तुमको बेच दिया बोलके. मेरे को मेरा मां बोला कि इ तुमको ले जा रहा है किसी को सादी( शादी) के लिए देखा कॉराने(दिखलाने). देखा कॉरा के ले आएगा. जिससे देखा कॉराने ले के जा रहा है, तुमको भी वो पसंद आए, तो बोलना. सादी दे देंगे(शादी कर देंगे)’. बानी टूटी- फूटी हिंदी में बोली.

    ‘वही तो. इसको थोड़े पता था कि झूठ बोल रही है मां. मुझसे भी तो यही बोली कि बानी को थोड़े दिनों के लिए छुट्टी दे दो क्योंकि अब इसका उमर हो गया सादी देने का. बहुत बड़ा करके हमरे जात में सादी नहीं दे सकते. फिर गांव में सब बोलने लगते हैं कि बेटी का कमाया खा रही है और इसका तो सर पर बाबा भी नहीं है.. तो मैंने ‘हां’ कर दी कि ठीक है पहले शादी तय तो हो जाए किसी अच्छे लड़के से, फिर हम भी मदद कर देंगे. आखिर इतने सालों से हमारे साथ रह रही है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि इसे अच्छी तरह सेटल करा दें. इतनी कोशिश की कि किसी तरह स्कूल पास कर ले पर पढ़ने में तो यह मन लगाती ही नहीं. बस किसी तरह अटक-अटककर हिंदी पढ़ना सीख गई है. बाजार कर लेने लायक रुपयों का जोड़- घटाव भी कर लेती है.’

    ‘तो, फिर क्या हुआ? इसकी मां आई और इसे लेके चली गई?’ अब मैं अधीर हो रही थी.

    ‘गांव लेजाके मां मेरे को एकठो नूतॉन जामा(नया कपड़ा) दिया, हाथ में पांच सौ टाका( रुपया) भी दिया. फिन जॉब( फिर जब) एक दिन वो आया, मां का पॉग लागा( पांव छुआ) और मेरे को लेके चॉल(चल) दिया’ .

    ‘कहां?’, मैंने पूछा.

    ‘कानपुर लेखा आछे, एतो तो बूझते पारलाम..माने कि कानपुर लिखा है, इतना तो समझ गई थी किन्तु ताल पोरे ( उसके बाद) एकठो टैक्सी लेके कहां जो ले के गया, बुझते पारलाम ना.( समझ नहीं पाई). कहीं कुछ लिखा नहीं था और फिर एक छोटा बाड़ी (छोटे घर) में मेरे को ढुका( घुसा) के वो चाला गया. आने के बाद ऐसा करने लगा जैसे मेरा स्वामी (पति) है.. ताल पोरे तो..’ उसकी आंखों से बहते आंसुओं का खयाल करके मैंने कहा, ’जाओ पानी पी लो और एक ग्लास पानी मुझे भी दे दो .’

    उसके जाते ही शुचि बोली- ‘इसे तो वह खुद से और अपने दोस्तों से सेक्सुअल रिलेशन बनाने को जबर्दस्ती करने लगा. यह मना करती थी तो मारने-पीटने लगता था. यह रोती रहती थी, वह पसीजता ही नहीं था. पर इसने उसे खुद को हाथ लगाने तक नहीं दिया. इसे गए हुए अभी चार दिन ही हुए थे कि एक दिन, जब मैं ऑफिस में थी, इसने मेरे मोबाइल पर फोन किया कि मां ने इसे उस बूढे को बेच दिया है और यह भागना चाहती है. ‘कहां हो तुम?’, मैने पूछा तो कुछ बोल ही नहीं पाई. फोन भी घबराकर काट दिया. मैंने थोड़ी देर इंतजार किया कि फिर से फोन करेगी पर इसने किया ही नहीं. मैने उसी नंबर पर कॉल बैक किया तो पता चला कि यह तो टेलीफोन बूथ का नंबर है. ‘कहां का?’ मैने पूछा तो जाने क्या कहा बूथ वाले ने कि कुछ पता ही नहीं चला. मैंने फिर से नंबर मिलाया तो उसने उठाया ही नहीं. लगातार कोशिश करती रही. फिर दूसरे नंबर से मिलाया तो उसने उठा लिया और थोड़ी धमकी देने पर बताया कि मुजफ्फरनगर के पास हसनपुर गांव का है. जाने कैसे वहां का एक बूढ़ा इसकी मां ढूंढ लाई, बेटी बेचने को... मैंने कहा कि ’एक छोटी-सी लड़की ने दो घंटे पहले इसी नंबर से फोन किया था, कहां रहती है जानते हो?’ ‘नहीं जानता’ बोलकर उसने फोन रख दिया. मैं परेशान. रातों को सो तक नहीं पाती थी. फिर तीसरे दिन जाके सपना दीदी को बोला. उन्होंने सुना तो एकदम से बोलीं कि मैं बानी को उस आदमी के चंगुल से छुड़ा के रहूंगी. पुलिस के पास गए तो किसी भी तरह की मदद को तैयार ही नहीं. पहले तो कहने लगे मुझसे कि आप सालों से उसे रखे थीं, तब तो वह माइनर रही होगी. आप माइनर लड़की से सालों- साल काम करवाती रहीं, पहले तो आप पर ही ऐक्शन होना चाहिए. मैंने कहा कि काम नहीं करवाती थी, मेरी बेटी के साथ खेलने को लाई थी और उसे पढ़ाती भी थी. वह पढ़ती नहीं थी तो मैं क्या कर सकती थी! अच्छा खाना, अच्छा पहनना.. मेरे यहां रहना तो वह इतना पसंद करती थी कि यहां से जाने को राजी ही नहीं थी. बड़ी मुश्किल से तो उसे शादी के लिए राजी किया कि वह जिंदगी भर ऐसे मेरे घर थोड़े रह सकती है! उसका भी अपना घर- संसार होना चाहिए. खैर, पुलिस से तो सपना दीदी ने निबट लिया. उन्होंने रिपोर्ट भी लिख ली. मैं पूरे समय यही सोचती रहती थी कि जिद्दी लड़की है, देह को हाथ न लगाने देने पर, कहीं उसे मार- मरा न दिया हो उस बूढ़े ने. पर जब पुलिस हरकत में आई, फिर तो.. इस बीच सपना दीदी ने कानपुर में महिलाओं के लिए काम करने वाली अपनी दोस्त को फोन कर ही दिया था. बस एक फोन नंबर था हमारे पास और उसी से बानी को खोज निकालना था. उन दीदी ने भी उस नंबर पर फोन किया. अपने साथी को वहां भेजा और पता लगाने की कोशिश की. पर कुछ पता ही नहीं चलता था.

    ‘ की कोरे केऊ किछू कोरबे. आमा के तो निए पालाए गैच्छिलो ओ . आमी तो जानलाम ना कि एखॉने कोथाए निए जाच्छे..’( कैसे कोई कुछ करेगा. मुझे लेकर तो वह भाग गया.. मैं तो जान भी नहीं पाई कि अब कहां ले जा रहा है)

    ‘उसे जैसे ही भनक लगी कि पुलिस खोज रही है, इसे लेकर कहीं और, किसी और रिश्तेदार के यहां रख आया. जब हसनपुर पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि वहां से तो वह जा चुकी है. इसे जहां ठहराया था, वहां तक पुलिस पहुंच गई पर उनलोगों ने कहा कि यहां से यह कहकर चला गया कि अपनी पत्नी को, अपने किसी रिश्तेदार से मिलाने ले जा रहा है.’

    ‘ पत्नी, ना फुट’, तरु घृणा से बोली.

    ‘फिर?’, अब मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी.

    ‘जब पुलिस ने जोर देकर पूछा तो बोला कि कसमपुर भूमा या क्या जो अजीब-सा नाम है, वहां लेकर गया है. उसके बाद पुलिस ने देर नहीं की. छोटा-सा तो गांव है. तुरंत पता चल गया. वह बूढ़ा तो भाग गया पर इसे लेकर पुलिस वापस आई तो पुलिस वाले ने कहा कि इसे इसकी मां को ही वापस कर सकते हैं. यह रोने लगी कि अब फिर से मां के पास नहीं जाना. वह मुझे किसी और को बेच देगी. मैं तो अठारह साल की हो चुकी. तरु दीदी ने तो कहा था कि अब मैं अपनी मरजी से कहीं भी, किसी के भी साथ रह सकती हूं. मैं तरु दीदी के घर जाना चाहती हूं. और कहीं नहीं जाऊंगी. अब फिर से पुलिस का लफड़ा शुरु हो गया कि यह माइनर है तो इसके गार्जियन को ही इसे सौंपा जा सकता है और यह तो इतनी छोटी है कि इसे अठारह का मान ही नहीं सकते. फिर इसकी कोई मर्जी नहीं चलेगी. मैंने कहा कि मेडिकल करा लो. फिर से सपना दीदी को बोलना पड़ा. उनकी मदद से ही पुलिस का ऑर्डर हुआ कि सरकारी डॉक्टर मेडिकल चेकअप करके एज एसेस करें. किसी तरह एज एसेसमेंट हो गया, तो इसकी उमर बीस साल निकली. फिर इससे पूछा गया कि कहां जाना चाहती है तो इसका तो एक ही जवाब- ‘तरु दीदी और कहीं नहीं.’ तरु को बुलाया गया, मुझे बुलाया गया, तरु के पापा को बुलाया- सबों ने हां कर दी कि हम इसे रखना चाहते हैं. हमें कोई आपत्ति नहीं कि यह हमारे साथ रहे.’

    एकाएक सब चुप हो गए. ड्राइंग रुम और डाइनिंग रुम के बीच के दरवाजे पर खड़ी बानी, सोफे पर बैठी तरु और शुचि, अलग कुर्सी पर बैठे तरु के पापा..

    ‘तो अब क्या समस्या है?’, मैंने पूछा. एक कठिन परिस्थिति का अंत हो गया लगता था. ‘अब क्या समस्या हो सकती है?’, मैं सोच ही रही थी कि तरु बोल पड़ी-

    ‘अब इसकी मां हमें तंग कर रही है कि उसने इसे चालीस हजार में उस बूढ़े को बेचा था. यह भाग आई तो वह अपने पैसे वापस मांग रहा है. हम उसे चालीस हजार रुपये दें, तभी वो बानी को यहां रहने देगी. वह रोज- रोज दबाव डाल रहा है कि जब बानी चली गई तो पैसे उसे वापस किए जाएं या बानी वापस भेज दी जाए’.

    ‘तो जो पैसे लिए थे, वो लौटा दे इसकी मां’, मैंने कहा

    ‘उससे तो छप्पर डाल लिया. खेत का टुकड़ा खरीद लिया और बीज भी बो लिए. कहती है कि पैसे खतम हो चुके.’

    ‘हम भी कहां से पैसा लाएं? अब इसकी मां को पैसे दें, फिर इसका ब्याह करें फिर से’. पहली बार तरु के पापा बोले.

    ‘और फिर यहां इससे शादी को भी तो कोई तैयार नहीं. सब कहते हैं कि इतने दिन रह आई है उस बूढ़े के साथ. फिर पुलिस के साथ अकेले सफर किया है तो..’

    मैं समझ गई. वही पारंपरिक सोच, शारीरिक शुचिता का मामला.. वही आर्थिक दिक्कतें..

    ‘तो इसे काम के बदले तुम पैसे नहीं देती? इतने सालों की इसकी कमाई जो भी बनती है..’, मैंने संकोच से पूछा.

    ‘ओह, वो तो इसकी मां जब-तब आकर ले जाती रही. कभी पैसे थोड़े छोड़े. लड़की को शुरु से ही कमाई का जरिया बनाए रही. अंत में इसे बेचकर घर बना लिया, खेत खरीद लिए.. लड़की का भविष्य जाए भाड़ में..’, शुचि गुस्से से बोली.

    ‘यानी कि पैसे जुगाड़ने की समस्या है’, मैं सोच में पड़ गई

    क्रमश...