Do balti pani - 12 in Hindi Comedy stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | दो बाल्टी पानी - 12

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दो बाल्टी पानी - 12

" अरे जीजी.. ओ जीजी.. " वर्माइन ने मिश्राइन को पुकारा |
मिश्राइन दरवाजा खोलते हुए - "हां.. वर्माइन कहो"?
वर्माइन - "अरे जीजी… कहें का, पानी भरने जा रहे हैं तो सोचा तुम्हें भी बुला ले थोड़ी बातें ही कर लेंगे, वरना हम जनानियो की किस्मत में कहां बातें करना लिखा"|
मिश्राइन -" सही कह रही हो बहन, हमारी किस्मत में तो बस हाथ पैर चलाना लिखा है और मर्दों की किस्मत में मुंह चलाना, ऐसा करो, वैसा करो, तुमने सही किया बुला लिया, रुको अभी आते हैं"|

मिश्राइन ने सर पर पल्लू किया और बाल्टी उठाकर वर्माइन के साथ चल दी |

ठकुराइन का घर आते ही मिश्राइन ने सोचा कि ठकुराइन को भी बुला लेते हैं, इस पर वर्माइन ने नाक सिकोड़ते हुए कहा," अरे जीजी… का जरूरत है, ठकुराइन जीजी तो आकर मुहँ बनाएंगी"|
मिश्राइन -" अरे कोई बात नहीं, गांव की सारी खबर भी तो उन्हीं के पास रहती है, चलो बुलाते हैं" | ये कहकर दोनों ने ठकुराइन को आवाज लगाई "ठकुराइन जीजी… जीजी…" |

ठकुराइन ने दरवाजा खोला तो लाली लिपस्टिक लगाए वर्तमान को देख कर थोड़ा मुंह बनाने लगी और मन ही मन बोली कोई दुकान खुले ना खुले इनकी लाली लिपस्टिक की दुकान सूरज उगने से पहले खुल जाती है |

वर्माइन - "जीजी चलो… जीजी क्या सोच रही हो, पानी भरो चलके, देरी हो गई तो पूरा गाँव वहीँ डेरा जमा लेगा" |

ठकुराइन - "हमें पानी भरने की कोई जरूरत नहीं, हमारी बिटिया पानी भरने गई है, अरे हम ठकुराइन हैं समझी.. तुम लोग जाओ और भरो पानी" |
स्वीटी को आता देख ठकुराइन बोली, "अरे आ गई बिटिया.. आओ.. लाओ बाल्टी रखवा देते हैं "|

मिश्राइन और वर्माइन मुँह बनाकर वहां से चली गई और स्वीटी जाकर बिस्तर पर लेट गई |

ठकुराइन की तो जैसे नाक ऊंची हो गई हो और वर्माइन मिश्राइन करेले की तरह जल भुन गई थी और पैर पटकते हुए नल की तरफ चल दीं |

मिश्राइन - " देखो भला ठकुराइन जीजी को.. बड़े भाव खा रही थी, इनकी बिटिया पानी भर लाए तो…" |

मिश्राइन को टोकते हुए वर्माइन बोली, "अरे हां.. जाने दो जिजी, जाने किस धुन में रहती है, जब देखो आग उगलती है.. बड़ी आई…" |

दोनों औरतें ठकुराइन को कोसती नल पर पहुंच गईं, वहां पहुंच कर उन्होंने देखा जैसे आधा गांव नल पर ही था, दोनों औरतों का सर चकरा गया इतनी लंबी लाइन देखकर, पानी भरने वालों के अलावा न जाने कितने लोग वहां घूम रहे थे | वर्माइन और मिश्राइन लाइन में लग गई |
कुछ ग्रामीण पुरुष बातें कर रहे थे |

किसन - "अरे लल्लू भईया.. जय राम" |
लल्लू -" अरे जय राम भैया किसन.. कईसे हो"?

किसन - "अरे हमें का होगा, सब चकाचक है राम जी की किरपा है, अपनी सुनाओ…" |

लल्लू - "अरे भईया.. का सुनाएं, बस सवेरे सवेरे लोटा लेकर खेत पर गए थे, सोचा घर का जाएं, यही जरा हाथ मुंह धो ले, अरे लो दातुन करो अभी थोड़े हैं नरम नर्म नीम का दातुन "|

किशन -" अरे वाह… बहुतै अव्वल काम किए तुम, हम तो बाल्टी लोटा साबुन गमछा सब ले आए हैं, अरे जब बाल्टी भरनी ही है, तो यही भर के यही नहा लो बार-बार का इधर से उधर नाचो, यहीं बाल्टी भर के हर हर गंगे कर लेंगे… हा हा हा हा.. "|

दोनों ग्रामीण बातें करते-करते हंस पड़े |


आगे की कहानी अगले भाग में...