Acid Attack - 2 in Hindi Thriller by dilip kumar books and stories PDF | एसिड अटैक - 2

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एसिड अटैक - 2

एसिड अटैक

(2)

यो अपनी तरफ से डॉ0 शीला ने पहल करके कभी भी प्रोफेसर साहब से संपर्क बनाने की कोशिशें नहीं की थी। मगर प्रोफेसर साहब के ई-मेल अलबŸा उन्हें इस बाबत मिलते रहते थे कि, अपनी कुशल क्षेम मनायें, हालात की मजबूरियों को समझें और गर मुमकिन हो तो शांत को लेकर आयें और कनाडा घूम जायें। वैसे डॉ0 शीला अतीत को भूली नहीं थी, मगर वर्तमान का सत्य भी भयावाह ही था। ये बात उन्हें खासी नागवार गुजरती थी कि उस क्रिस्तानी महिला से कानूनन आज तक प्रोफेसर साहब के संबंध-विच्छेद नहीं हुये थे और जिन्दगी के ढलान के मोड़ पर एक गैर मुल्क में ‘‘दूसरी औरत’’ बनकर रहना उन्हें कतई मंजूर न था। प्रोफेसर साहब ये सब जानते थे मगर पता नहीं किन मजबूरियों के कारण या जान बूझ कर ही सही, वे अपनी क्रिस्तानी बीवी से कानूनन तलाक नहीं ले पाये थे। इसीलिए डॉ0 शीला ने शांत को ऐसी परवरिश दी थी कि वो भोग-विलास की वस्तुओं और सुविधाओं का गुलाम बना रहे। वो ये बात जानती थीं कि गुलाम हमेशा मोहताज भी होता है। अपने मोहताज से उन्होंने बस दो उम्मीदें पाली थी कि, अव्वल तो वो उनकी जिन्दगी के अतीत के पन्नों को ज्यादा न उलटे-पलटे, और दूसरे वो इन सुविधाओं के बिना जिन्दगी की भयावहता से डरा रहे और उनका ही बना रहे। शांत ने कभी भी, अपनी किसी इच्छा को शायद ही दबाया होगा। उसे हर वो चीज जिन्दगी में आसानी से मिली थी, जिसकी उसने कभी भी चाहत की थी। इसीलिए उसे हर चाही गयी चीज को हासिल कर लेने की आदत पड़ चुकी थी। हालांकि डॉ0 शीला ने शांत को काफी ऊँची तालीम दिलायी थी। उसे कान्वेन्ट कल्चर और फास्टफूड जेनरेशन के सारे तौर तरीके आते थे, मगर दया, क्षमा और हालात से समझौता करके जिन्दगी बिताना उसी नहीं आया था। मगर शर्मीलापन शायद उसकी इकलौती अच्छी आदत थी। एक मध्यस्थ मित्र के मार्फत शांत ने सेलेना तक अपने दिल का हाल और प्रणय-निवेदन कहलवाया था। छः माह बीत जाने के बावजूद, सेलेना ने प्रकट रूप से शांत के प्रस्ताव में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी थी। यों उसका दिल शांत के प्रणय निवेदन से बल्ले-बल्ले था। इरादे पता नहीं क्या रहे होंगे, मगर जेहन में इस बात की तसल्ली भी थी कि वो खिलाड़ी पंतनगर की सबसे हसीन जहीन युवती को छोड़कर जायेगा कहाँ। हुस्न अपने पे उतर आया था, उसने सोचा इश्क को थोड़ा और जलने दो, तड़पने दो, गिड़गिड़ाने दो, तब ये जलवा उसे एहसान जताकर ही मिलेगा। इसीलिए शांत के प्रस्ताव पर सेलेना ने ‘‘नो कमेंट’’ जैसी प्रतिक्रिया दी थी।

नियमित इŸोफाकों से अनियमित होती हुई उनकी मुलाकातें अनिश्चितकालीन हो चली थीं। फारवर्ड लाइन में खेलने वाला आक्रामक खिलाड़ी की धैर्य, जिन्दगी के मैदान में जवाब दे गया। वो अपने से काफी छोटी हैसियत की लड़की की उपेक्षा बर्दाश्त न कर सका।

शांत को इस बात का कतई गुमान ना था। वो निश्चिंत था कि हल्दी सरीखे गांव जैसी छोटी जगह के एक मामूली स्टोर कीपर की लड़की उसे प्यार तो अवश्य करती होगी, तथा उससे ब्याहकर तो वो धन्य हो उठेगी। अपने अनुकूल परिस्थितियां न पाकर, तथा सेलेना की हैसियत के मद्देनजर और फिर उसकी उदासीनता को शान्त ने खुद का तिरस्कार माना। सिर्फ शब्दों से ही तो इकरार नहीं हुआ था, बाकी उस अप्रकट प्रेम ने प्रचलित इश्क की कई मंजिले तय कर ली थीं। यूं शुरूआती प्रेम की पींगे बढ़ाने के बाद, सेलेना के अचानक कन्नी काट लेने जैसी स्थिति के कारण शान्त स्वयं को छला हुआ महसूस करने लगा था। अपमान, तिरस्कार और बदले की भावना ने प्रेम की कोमल भावनाओं को मथ डाला। जिस नूरे-नजर को कभी वो सारे जहान की बलाओं से बचाना चाहता था, जिस नेमत को वो हर बुरी नजर से छिपाना चाहता था। जिसको उसने प्रेम का औलोकिक रूप माना था, उसी प्रेम के प्रतीक यानी सेलेना को उस आक्रामक खिलाड़ी ने आक्रमण करके तहस-नहस कर डालने का निर्णय कर डाला। खार खाये प्रेमी का पहला ध्यान बलात्कार पर गया था। मगर सेलेना के लिए उसने, बलात्कार को निहायत ही छोटी और क्षणिक सजा माना था। वैसे भी सेलेना जैसी पढ़ी-लिखी, तेज तर्रार युवती का बलात्कार करने के बाद उसे चुप करा पाना, कम से कम आज के दौर में नामुमकिन था। फिर एक बलात्कारी की सामाजिक निन्दा और सार्वजनिक घृणा की कल्पना मात्र से ही शांत सिहर उठा। लोकप्रिय खिलाड़ी से घृणित बलात्कारी होने की सोच मात्र से ही उसकी रूह काँप गयी। काफी सारी संभावनाओं और उनके संभावित परिणामों को ठोंक-बजाकर, फिर फुलप्रूफ तरीके से योजना बनाकर शांत ने वो अकल्पनीय कृत्य कर डाला। होम साइंस का प्रैक्टिकल करके लौट रही सेलेना, टेरेसा कैन्टीन के तिराहे पर काफी दूर-दूर तक अकेली ही नजर आ रही थी। वो जगह अक्सर निर्जन और सुनसान होती थी, क्योंकि सवारियां कम होने के कारण रिक्शे वाले यहाँ-वहाँ पडे़ सुस्ताया करते थे। शीतलहरी से ठिठुर रही हल्के धुंधलके वाली वो मनहूस शाम सेलेना की जिन्दगी में तमाम जानी-अंजानी मुसीबतों का बायस बनकर आयी थी। सर्दी की शाम तो थी ही, कोहरे ने अपनी चादर फैलानी शुरू कर दी थी। काफी दिनों से बन्द पडे़ शुभम वार्ता केन्द्र के पीछे छिपे शांत ने, कम रोशनी और कोहरे के धुंधलके का फायदा उठाते हुये एसिड का पूरा बीकर ही सेलेना के चेहरे पर दे मारा था। अपने टारगेट को धराशायी होते ही सिर्फ देख पाया था शांत, और फारवर्ड प्लेयर नीम अँधेरे का फायदा उठाकर बेतहाशा वहां से भागा था। खुद को योद्धा समझने वाले फारवर्ड खिलाड़ी ने जिन्दगी के मैदान में तो अपने लक्ष्य पर फतेह पा ही ली थी। अब उसे डिफेन्डर का रोल भी निभाना था, यानी खुद को भी बचाना था। शांत ने संभावित अनिष्ट की आशंका से खुद को पंतनगर से अस्थायी तौर पर हटा लेना ही उचित समझा था। हालांकि कहीं दूर वो नहीं गया था, ताकि किसी को शक न हो। सिर्फ बीस-पच्चीस किलोमीटर दूर नैनीताल में रहकर वो इस मामले के बाद की घटनाओं में हुई प्रगति की टोह लेता रहा था। यूं नैनीताल में उसके प्रवास का बहाना ट्रेकिंग था। बसेरा स्थायी न था वहां पर, सम्पर्क का जरिया सिर्फ मोबाइल था। दूसरी तरफ हल्दी की किसी लड़की के साथ पंतनगर में कुछ हुआ भी तो, पंतनगर की हाई प्रोफाइल सोसाइटी में इसे सिर्फ एक ऐसी घटना माना गया जो पहले शायद यहां कभी कभार ही देखी, सुनी गयी हो। अव्वल तो वो लड़की हल्दी की थी, दूसरे उच्च वर्गीय नहीं थी। इसीलिए प्रायः मेलों सेमिनारों की तैयारी में रहने वाला शहर, फिर से अपने अगले सेमिनारों और मेलों की तैयारियों में व्यस्त हो गया। शांत नैनीताल से लगभग रोज ही लौट आता था। वो इस बात का खास ख्याल रखता था की, वो शहर में मौजूद तो रहे मगर कोई उस तक पहुंच न पाये। यूं दिखता तो वो रोज शहर में था, मगर होता कभी नहीं था। डाक्टर शीला की अव्वल तो हिम्मत ही नहीं होती थी कि शांत से इस तरह की अस्त-व्यस्त दिनचर्या के बारे में सवाल जवाब करने की। हकीकतन वो शांत से इस बाबत कुछ पूंछने जानने की कोशिशें अवश्य करती थी। मगर वे सीधे-सीधे निर्देश देने से हमेशा बचती रहती थीं, क्या पता लड़का कब बिफर पडे़। शांत को अब इस बात का पक्का यकीन हो चला था कि कम से कम पुलिस उसकी फिराक में कतई नहीं है। उसने इस बात की भी दरयाफ्त कर ली थी कि सेलेना की तरफ से, उसके खिलाफ किसी भी तरह की कोशिश नहीं की जा रही है। उसे लगा कि सेलेना फिलहाल शायद दुखों को समेटने में लगी है। वक्फा गुजरते-गुजरते अर्से में तब्दील हो गया। अब उस घटना को गुजरे हुए छः महीने बीत चुके थे। शांत सन्तुष्ट था कि आखिर उसने वो विजित कर ही लिया, जिससे उसे परास्त होने का खतरा था। अपनी उम्मीदों से काफी बेहतर तरीके से उसे ये विजयश्री प्राप्त हुई थी। एक ऐसी विजय जिसमें खतरे न थे। प्रतिद्वन्दी न सिर्फ चिŸा हुआ था, वरन मैदान छोड़कर भी भाग खड़ा हुआ था। इस बात की उसे गर्वानुभूति हो रही थी कि वो सही मायने में एक विजेता था। ऐसा विजेता, जिसे शाश्वत विजय न सिर्फ खेल के मैदान में मिली थी बल्कि जो जिन्दगी की बाजी भी जीता था। विजेता योद्धा अपने विजय चिन्ह को देखने हल्दी पहुँचा। हल्दी में कुल दो चार सौ घरों के ही आबादी थी। देवधर से ही उसने देवधर के घर का पता पूंछा था। उसने देवधर को देखा, बीज गोदाम के पिछवाडे़ स्थित उनके एक कमरे के, सीलन भरे गिरते-उजड़ते मकान को देखा तो, वो अजीब सी वितृष्णा से भर उठा। वो मन ही मन बुदबुदाया ‘‘छिः, ऐसे लोगों से वो कभी रिश्ता बनाने चला था’’। उसने फिर अपने मन को खुद ही तसल्ली दी ‘‘चलो अच्छा है, समय रहते चेत गया’’। पहले से ही सुबकते हुये देवधर ने शांत का परिचय जानना चाहा। मगर शांत को सुनने के बजाय देवधर बेतरतीबी से बोलते ही चले गये। शांत अपने विजय चिन्ह को देखने के लिए व्याकुल हो रहा था। शांत ने सेलेना को देखा। वो पहले चौंका, फिर घिनाया और अन्ततः सन्तुष्टि से भर उठा। मगर सेलेना का वीभत्स चेहरा देखने के थोड़ी देर बाद ही, उसे वहां बैठे रहना तक गवारा न हुआ। महराजिन और देवधर की अनुनय विनय भी उसे चाय पीने के लिए उस कमरे में रूकने को बाध्य न कर सकी थी। उसे लगा कि अभी उसे कै हो जायेगी। एसिड अटैक बहुत घातक तरीके से हुआ था। मगर शिष्टाचारवश उसने सिगरेट की तलब का बहाना पेश किया, और साथ में यह नुक्ता भी जोड़ा कि सिगरेट के धुंए से सेलेना की सेहत को नुकसान पहुंच सकता है।

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