koi to nahi dekh raha in Hindi Magazine by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | कोई तो नहीं देख रहा

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कोई तो नहीं देख रहा

५ जून ,'विश्व पर्यावरण दिवस 'पर विशेष लघुकथा

कोई तो नहीं देख रहा

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

सेमीनार बहुत अच्छी रही, यूनिवर्सिटी के सीनेट भवन से लौटते हुये वे दोनों सोच रहीं थीं। ये सेमीनार पर्यावरण सरंक्षण पर थी। ओज़ोन लेयर में बढ़ते जा रहे छेद के लिये सभी चिंतित थे। इन दोनों के शोध पत्र सबने बहुत चाव से सुने थे। प्रोफ़ेसर्स व सीनियर्स की तारीफ़ से ख़ुश वे बाहर ऑटो का इंतज़ार कर रहीं थीं। पास में खड़ी लारी में ताज़े केले देखकर एक के मुंह में पानी आ गया,''यार !केले खाने का मन हो रहा है। ''

दूसरी लारी की तरफ़ लपक ली ,''ले मैं अभी ख़रीद लेतीं हूँ। ''

पहली ने दूसरी के हाथ से केला लेकर छीला व लापरवाही से केले का छिलका सड़क पर ही डाल दिया। पहली की ऑंखें आश्चर्य से फ़ैल गईं ,''अभी अभी तू पृथ्वी का पर्यावरण स्वच्छ रखने का शोध पत्र पढ़कर आ रही है और ये हरकत ?पता है कितनी मक्खियाँ इस पर बैठकर वातावरण को प्रादूशित करेंगी। ''

पहली ने हाथ के इशारे से सड़क पर खाली जा रहे ऑटो को रोका व दूसरी का हाथ पकड़कर खींचकर उसमें बिठा लिया।

दूसरी झुंझलाई ,''पीछे सड़क पर केले का छिलका पड़ा है। ''

''तू क्यों दुनियां की चिंता में घुली जा रही है ?वहां कोई आदमी दिखाई दे रहा था ? किसी ने भी मुझे केले का छिलका फेंकते हुये नहीं देखा।''

वह ऑटो पेट्रोल की बदबू छोड़ता, धुंआ छोड़ता आगे निकल गया और वह केले का छिलका सूक्ष्मजीवी व छोटे जीवाणुओं के साथ पर्यावरण प्रदूषित करने वाली किसी गम्भीर योजना में व्यस्त हो गया। केला फेंकने वाली को ऑटो में बैठे बैठे एक महान विचार सूझा क्यों न पर्यावरण सरंक्षण के लिये कोई संस्था बनाई जाये।

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail.com