Kuchh chitra mann ke kainvas se - 9 in Hindi Travel stories by Sudha Adesh books and stories PDF | कुछ चित्र मन के कैनवास से - 9 - एलिस आइसलैंड

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कुछ चित्र मन के कैनवास से - 9 - एलिस आइसलैंड

एलिस आइसलैंड

अब हमारा अगला गंतव्य स्थान एलिस आइसलैंड था जो स्टैचू ऑफ लिबर्टी के साउथ में स्थित है जिसका नाम इसके मालिक सैमुअल एलिस के नाम पर रखा गया है । मैंने जहाज में बैठे- बैठे टूरिस्ट बुकलेट पढ़नी प्रारंभ कर दी... दरअसल पहले से उस स्थान, जहां हम घूमने जा रहे हैं ,के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान हो तो देखने का मजा दुगना हो जाता है । इसलिए मेरी सदा यही कोशिश रहती है जहां जाए वहां के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी एकत्रित कर लूँ ।

एलिस आइसलैंड न्यूयॉर्क हारबर का प्रवेश द्वार है । 100 लाख से अधिक लोगों ने एलिस आइसलैंड के जरिए अमेरिका में प्रवेश किया । प्रेसिडेंट जॉन. एफ. कैनेडी ने अपनी पुस्तक 'रिलेशन ऑफ़ इमिग्रेंट्स ' में लिखा है कि बाहरी देशों से लोगों के अमेरिका आने के कई कारण थे... धार्मिक उत्पीड़न, राजनीतिक कलह, बेरोजगारी, परिवार के किसी व्यक्ति का यहां पहले से रहना या फिर एडवेंचर की खोज ।

यहां उपस्थित रिकॉर्ड के अनुसार सन 1892 के आरंभ में 12 लाख से अधिक लोगों ने एलिस आइसलैंड में अपना कदम रखा । अमेरिकी क्रांति के दशकों तक 5,000 लोग प्रतिवर्ष अमेरिका आते थे पर 1900 वीं शताब्दी के प्रारंभ में प्रत्येक दिन ही इतने लोग आने लगे । 17 अप्रैल 1907 को 11,747 लोगों ने प्रवेश किया... सच तो यह है इन वर्षों में लगभग 12लाख लोगों ने एलिस आइसलैंड के जरिए अमेरिका में प्रवेश किया ।

1 जनवरी 1892 को एलिस आइसलैंड में इमीग्रेशन स्टेशन खोला गया था । 5 वर्ष पश्चात इमीग्रेशन स्टेशन जो लकड़ी का बना था, जल गया जिससे वहां स्थित सारे रिकॉर्ड जल गए । सन 17 दिसंबर 1900 को एक नई अग्निरोधी फ्रांसीसी कला संयुक्त इमारत... नए इमीग्रेशन स्टेशन का लोकार्पण हुआ । उस दिन लगभग 2,251 लोगों ने अमेरिका में प्रवेश किया । इसके साथ ही अमेरिका में प्रवेश करने वाले हर यात्री के स्वास्थ्य की जांच होने लगी तथा उनके आने का प्रयोजन जानने तथा रिकॉर्ड रखने के लिए उनसे इस स्टेशन पर नियुक्त इंस्पेक्टर तरह-तरह के प्रश्न पुचनेबलगे अर्थात नाम, कार्य, कहां जाना है तथा उनके पास कितना धन है इत्यादि इत्यादि ।

एक ज्यूइश अप्रवासी जो रूस से आया था, को इमीग्रेशन स्टेशन पर उपस्थित ऑफिसर की ड्रेस , उस ड्रेस की याद दिला गई जिसके डर से वह अपना देश छोड़ कर आया था । इसका विवरण भी यहां मौजूद रिकॉर्ड में दर्ज है । नियमानुसार केवल 3% लोगों को न्यूयॉर्क में रोका जाता था तथा अन्य को देश के विभिन्न हिस्सों में जाने के लिए कहा जाता था । केवल 1 या 2% को ही प्रवेश की अनुमति नहीं मिल पाती थी ।

1920 में इस आइसलैंड के कार्यभार की जिम्मेदारी यू.एस. कॉन्सुलेट ने ले ली। अब बहुत कम लोग ही आइसलैंड में से प्रवेश करते थे । सन 1954 नवंबर में यह बंद हो गया । 1965 में एलिस आइसलैंड को लिबर्टी नेशनल मॉन्यूमेंट बना दिया गया । इसकी इमारत का पुनःनिर्माण सन 1980 में किया गया तथा 10 सितंबर 1990 को इससे इमीग्रेशन म्यूजियम बना दिया गया । अब एलिस आइसलैंड उन लोगों का यादगार स्थल है जिन्होंने अमेरिका को अपनी कार्य स्थली बनाया ।

इस म्यूजियम में स्थित ट्रेजर फ्रॉम होम में अप्रवासियों के द्वारा अपने देश से लाया सामान उनकी यादगार के रूप में स्थित है... उनमें टेडी बेयर, पासपोर्ट, बैग, सूटकेस, होलडोल, फोटो इत्यादि स्वयं अपनी कहानी बयां करते प्रतीत होते हैं ।

30 मिनट की फिल्म आइसलैंड ऑफ होप एन्ड टियर के द्वारा इस आइसलैंड के बारे में सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं आप अगर चाहे तो इस स्थान पर स्थित इनफॉरमेशन सेंटर सूचना केंद्र द्वारा ऑडियो तथा गाइडेड टूर भी ले सकते हैं ।

यहां स्थित अमेरिकन फैमिली इमीग्रेशन हिस्ट्री सेंटर में नया शोध संस्थान स्थित है जो यहां के सारे रिकॉर्ड रखता है इसी के अनुसार 1892-1929 तक 22 लाख व्यक्ति न्यूयॉर्क पोर्ट से एलिस आइसलैंड में आए । इसके अतिरिक्त यहाँ कंप्यूटराइज्ड जैनोलॉजी सेंटर है जिसमें 1892 -1924 तक आये प्रवासियों के नाम और पते सुरक्षित हैं ।

'अमेरिकन इमीग्रेशन वॉल ऑफ आनर' जो मुख्य मार्ग के बाहर स्थित है, में मॉनिटरी कंट्रीब्यूशन 'आर्थिक भागीदारी' के द्वारा लगभग 6 लाख लोगों के नाम इसमें खुदे हैं । इसके आसपास अस्पताल, संक्रामक रोग वार्ड, डॉक्टरों के घर, मेंटेनेंस तथा अन्य ऑफिस, फेरी टर्मिनल( जहाज के आवागमन का स्थान) स्थित है ।

एलिस आइसलैंड सुबह 9:30 से शाम 5.00 बजे तक खुला रहता है । अगर आप इसको अच्छी तरह देखना चाहते हैं तो कम से कम 3 घंटे का समय लेकर जाइये । यहां स्थित 30 गैलरियों के द्वारा आप अमेरिका में आए इमीग्रेंटस के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । मैं अभी पढ़ ही रही थी कि हमारा पड़ाव आ गया ।

यहां उतरते ही हमने सबसे पहले एक बड़े से हॉल में प्रवेश किया । हॉल में प्रवेश करते ही हमें कुछ सामान...जैसे कुछ बक्से, होलडोल नुमा चीजें रखीं नजर आईं । पूछने पर पता चला यह सामान उन लोगों का है जो पहले पहल अमेरिका में आये थे । दरअसल 1600 वीं शताब्दी में लोग नई बसने योग्य भूमि की खोज करते -करते यहां आए तथा यहां आकर बस गए । इस आइसलैंड में स्थित अमेरिकन वाल ऑफ ऑनर में 1892-1924 तक आये लोगों लगभग 600,000 से अधिक इमिग्रेंट्स (एक देश से दूसरे देश में बसने वालों ) के नाम यहां खुदे हुए हैं। यहां तक कि यहां एक गैलरी में कुछ लोगों के चित्र भी मौजूद हैं । साथ ही कुछ स्टेचूज के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है किस अनुपात में स्त्री और पुरुष इस आइसलैंड में आए थे ।

यहां स्थित कंप्यूटराइज जिओलॉजी सेंटर में 1892-1924 में आये लोगों के नाम दर्ज हैं । 28 मिनट की फिल्म आइसलैंड ऑफ होप तथा आइसलैंड ऑफ टियर के द्वारा उन प्रवासियों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है जो जहाज के द्वारा अमेरिका आए थे । इन प्रवासियों का न्यूयॉर्क के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है । इनमें अधिकतर कुशल कामगार थे जो कम से कम दैनिक भत्ते में भी काम करने को तैयार थे । उन्होंने सड़कें, पुल इत्यादि बनाएं जिससे ट्रांसपोर्ट सिस्टम में सुधार हुआ, जिसके कारण न्यूयॉर्क सिटी मेट्रोपोलिस में परिवर्तित हो गया ।

यह आईसलैंड प्रवासी यात्रियों के लिए अमेरिका में प्रवेश का गेट वे था । इस बात को ऑडियो तथा वीडियो के द्वारा भी दर्शाया तथा जानकारी दी जा रही थी । तभी हमारी नजर रिसेप्शन काउंटर पर पड़ी । न्यूयॉर्क में हमें और कहां-कहां घूमना चाहिए, इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए हम रिसेप्शन काउंटर पर गए । काउंटर पर बैठे रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराकर हमारा स्वागत किया । जब हमने उसे बताया कि हम इंडिया से हैं तथा पहली बार यहां घूमने आए हैं । तब उसने मुख्य स्थल बताने के साथ हमें 'न्यूयॉर्क टूर बुक' देते हुए एक बार मुस्कुराहट के साथ कहा,' इंजॉय योर जर्नी...।'

उसकी बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा । यही सद्भावना मुस्कुराहट से सजे बोल हमें अनजान जगह में भी अपनों जैसा साथ और सुकून दे गए । जैसा मैंने एलिस आइसलैंड के बारे में पढ़ा था वैसा ही पाया ।

लौटते हुए हम सोच रहे थे कि कल की प्लानिंग कैसे की जाए !! न्यूयॉर्क टूर का पास खरीदा जाए या जो जगह अच्छी लगे वह अपने आप ही घूम ली जाए । खैर आज तो कहीं घूमना नहीं था अतः वहीं समय समुंदर के किनारे बैठ कर डूबते सूरज का नजारा देखने लगे । डूबता सूरज तथा उसकी समझ में अठखेलियां करती किरणें अलग ही नजारा पेश कर रही थीं । इस दृश्य को आंखों में समेटे हमने टैक्सी से अपने होटल की ओर प्रस्थान किया ।

रास्ते में हमने टैक्सी वाले से वहां की प्रसिद्ध एंपायर स्टेट बिल्डिंग के बारे में पूछा तो उसने चलती टैक्सी से एक बिल्डिंग की ओर इशारा किया । मुझे उसकी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि वह इमारत बहुत ही घनी आबादी वाले स्थान में स्थित थी । मुझे लग रहा था कि ऐसी इतिहास प्रसिद्ध इमारतें आबादी से थोड़ा दूर होतीं हैं । अंततः उसने हमें होटल से थोड़ा पहले यह कह कर छोड़ दिया कि यहां वन वे है । आपको, आपके होटल तक छोड़ने के लिए काफी घूमकर जाना होगा । आपका होटल पास ही है अतः आपके लिए यही अच्छा है कि आप यहां से पैदल ही चले जाएं वरना किराया काफी बढ़ जायेगा ।

हम उसकी बात मान कर उतर गए पर उसकी साफगोई ने हमारा मन मोह लिया था वरना वह भारत के कुछ टैक्सी ड्राइवर की तरह इधर-उधर घुमाते हुए हमें हमारे होटल तक लाता । मीटर बढ़ रहा है या नहीं, उसकी उन्हें चिंता नहीं होती है । उन्हें तो सिर्फ पैसों से मतलब होता है । होटल पास में ही था । होटल के रिसेप्शनिस्ट से न्यूयॉर्क घूमने के लिए पास लेने की बात की पर उसने कहा आप सुबह 8:00 बजे टूर ऑपरेटिंग कार्यालय पर पहुंच जाइएगा । आपको पास मिल जाएगा यह स्थान मैडम तुसाद वैक्स म्यूजियम के पास है पर वाशिंगटन में हुए अनुभव के आधार पर मैं टूर बुक नहीं कराना चाहती थी । मुझे लगता था जो भी दर्शनीय स्थल है वहां जाकर अपनी पसंद के अनुसार समय बिताएं । आदेश जी ने कहा होटल में बैठे रहने से तो अच्छा है कि रिसेप्शनिस्ट द्वारा बताई टूर बुक करने वाली एजेंसी के पास चलें, शायद कुछ और जानकारी मिल जाए ।

हम निकल पड़े तथा पूछताछ करते हुए काफी आगे बढ़ गए रात भी होने लगी थी । अनजान जगह, मन में बेचैनी होने लगी थी । ऊंची ऊंची इमारतों वाले इस शहर में कहीं हम रास्ता भूल गए तो...तब मैंने अपने मन का डर बताते हुए आदेश जी से कहा कि अब लौट चलते हैं, सुबह जल्दी उठकर पता लगा लेंगे । पहले तो आदेश जी को मेरी कमजोरी पर थोड़ा क्रोध आया पर फिर मेरी बात मानकर लौट लिए । भूख लग रही थी । आस- पास और कोई का रेस्टोरेंट नजर नहीं आ रहा था । हम होटल के नीचे स्थित रेस्टोरेंट में चले गए । खाने के लिए कोई विशेष चीज नजर नहीं आ रही थी । जितनी भी चीजें थीं , वह ब्रेड से बनी थीं अंततः हमने दो कप कॉफी और ब्रेड सैंडविच का ऑर्डर दे दिया । टेस्ट थोड़ा अलग था । बेमन से खाकर अपने कमरे में जाने के लिए रेस्टोरेंट्स निकले ही थे कि एक 10- 12 वर्ष का बच्चा हमारे पास आया । उसने किसी जगह के बारे में हमसे पूछा । हमें उस जगह के बारे में पता नहीं था । हम उसे उत्तर देने ही जा रहे थे कि उसकी मां ने उसे आवाज देते हुए बुलाया तथा कहा,' विक्की नई जगह में इधर-उधर मत भागो मत वह भी हमारी तरह टूरिस्ट हैं । उन्हें भी पता नहीं होगा ।'

वह भी हमें अनदेखा कर वहीं खड़ी होकर किसी का इंतजार करने लगी । हमने की बात करना उचित नहीं समझा पर हिंदी में प्रश्न उत्तर सुनकर हमें आभार हो गया था कि वह भी हमारी तरह नॉर्थ इंडियन है । उनकी चिंता छोड़ हम अपने कमरे में आ गए । कल का पूरा दिन हमारे पास था । हम दोनों ने न्यूयार्क टूर बुक किताब पढ़नी प्रारंभ की तो पता चला 5th एवेन्यू यानि जहां हम रुके हैं उसी के पास संसार प्रसिद्ध अंपायर स्टेट बिल्डिंग है । टैक्सी वाले ने ठीक ही बताया था और उसने हमें इसी बिल्डिंग के पीछे ही उतारा था । तब मैंने यह सोच कर विश्वास नहीं किया था की विश्व प्रसिद्ध इमारत भला इतनी भीड़ भाड़ वाले इलाके में कैसे हो सकती है पर यहां पर भी मैं ही गलत थी !!

नक्शे के अनुसार टाइम स्क्वायर और मैडम तुसाद वैक्स म्यूजियम पास ही पास थे पर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर मेमोरियल अवश्य दूसरे डायरेक्शन में लग रहा था। वास्तव में यह स्थान उसी तरफ था जिधर हम 'स्टैचू ऑफ लिबर्टी 'देखने गए थे । अगर हम पहले से सर्च कर लेते हैं तो इसे आज ही देख सकते थे पर अब पिछला समय तो लौट आया नहीं जा सकता था अतः सोचा पहले अन्य जगह देख लें बाद में टैक्सी द्वारा वहां चले जाएंगे । मन ही मन घूमने का एक खाका खींचा तथा सुबह 6:00 बजे का अलार्म लगा कर सोने की कोशिश करने लगे ।

सुबह 6:00 बजे अलार्म बजते ही हम उठ गए । लगभग 8:00 बजे तैयार होकर हम होटल के नीचे स्थित काफी हाउस में गए । ब्रेकफास्ट करके हम अपने होटल की बिल्डिंग से एक ब्लॉक दूर स्थित एंपायर स्टेट बिल्डिंग गए । वहां काउंटर पर बैठी महिला ने बताया कि मौसम क्लाउडी होने के कारण इस समय ऑब्जर्वेटरी देख से बाहर के दृश्य क्लियर नहीं दिखाई देंगे । आप टिकट ले लीजिए । टिकट आज पूरे दिन के लिए वैलिड (मान्य ) है । शाम को आकर आप देखिए तब तक मौसम साफ हो सकता है । उसकी सत्यवादिता हमें अच्छी लगी ।

हम टिकट लेकर दूसरे दर्शनीय स्थल की ओर चल दिए । हमारे हाथ में मेप था । उसके आधार से जो निकटतम दर्शनीय स्थल था वह था रॉकफेलर सेंटर ...जो 5th और 6th एवेन्यू के बीच में 43 वेस्ट था । यहां हर चौराहे पर बहुत ही क्लियरिटी की से स्ट्रीट नंबर दिए हुए हैं । 1 ,2 ,3, 4 ,5, 6, 7 एवेन्यू पेरेलल बने हुए हैं तथा थोड़ी थोड़ी दूर बने चौराहों पर लगे खंभों पर 35, 36, 37, 38... ईस्ट और वेस्ट लिखे हुए हैं । हमारा होटल 5th एवेन्यू के 35 ईस्ट में था तथा एंपायर स्टेट बिल्डिंग 36 वेस्ट में तथा रॉकफेलर सेंटर 5th और 6th एवेन्यू के मध्य 43 वेस्ट में था । हमारे हाथ में मैप था उसी के दिशा निर्देशों के आधार पर हम यहां स्थित दर्शनीय स्थलों को देखने की योजना बना रहे थे ।

ऊंची ऊंची इमारते हैं जहां हमें शहर की भव्यता का दर्शन करा रही थीं वहीं सड़कों पर चलता व्यवस्थित ट्रैफिक हमें आश्चर्य में डाल रहा था । हमें कहीं भी सड़क पार करने में परेशानी नहीं हुई । हर चौराहे पर जेबरा क्रॉसिंग बनी हुई है । पैदल चलने वालों के लिए साइन हैं । जब साइन डिस्प्ले होता है तभी लोग सड़क पार करते हैं । यहां तक कि गाड़ियां भी जब तक एक भी पेडेस्टेरियन (पैदल यात्री ) रहता है , पास नहीं होती हैं चाहे साइन हो या ना हो । गजब का ट्रैफिक सेंस है यहां के लोगों में । पैदल चलने वाले लोगों के लिए सड़क के किनारे बने फुटपाथ पर थोड़ी थोड़ी दूर पर बेंच भी बनी हुई हैं । जहां थक जाने पर या आस-पास के दृश्य निहारने हेतु लोग बैठ जाया करते हैं । फुटपाथ के एक और सड़क तथा दूसरी ओर बड़ी बड़ी दुकानें हैं ... लगभग वैसी ही जैसे हमारे देश के बड़े-बड़े योजनाबद्ध बने शहरों के अच्छे मार्केट एरिया में होती हैं ।

बीच में बिरिएंट पार्क पड़ा । थोड़ी देर वहां बैठकर हम आगे बढ़े । मैप (नक्शे ) के अनुसार आगे बढ़ते हुए हम रॉकफेलर सेंटर पहुंच गए । यह 5th एवं 6th एवेन्यू के बीच में 43 वेस्ट स्ट्रीट पर स्थित है । यह काफी ऊंची इमारत है । इसकी ऑब्जर्वेटरी डेक 70 मंजिल पर है । न्यूयार्क की सबसे ऊंची इमारत एंपायर स्टेट बिल्डिंग की टिकट हम खरीद चुके थे अतः इसकी टिकट खरीदना आवश्यक नहीं समझा । वहां जो जो देखने लायक जगह थीं वह हमने देखीं । इस इमारत के सामने एक सुंदर सी प्रतिमा है जिसके ऊपर फब्बारों से होती है पानी की बौछार इसकी सुंदरता को दुगणित कर रही थी ।

कुछ समय वहां बिताने के पश्चात हम सेंट पेटरिक चर्च गए जो रॉकफेलर सेंटर के पास ही स्थित है । चर्च तो हमने कई देखे हैं पर इस जैसा नहीं... यह चर्च बहुत ही खूबसूरत तथा विशाल है । इसके मध्य में एक विशाल प्रतिमा के साथ अगल बगल अन्य कई प्रतिमाएं बनी है जो शायद संतों की होंगी । हमने वहां 1 कैंडल जलाई तथा कुछ देर बैठकर प्रार्थना की । हमें बताया गया कि इस चर्च में 2500 लोग एक साथ बैठकर प्रार्थना कर सकते हैं ।

हमारा अगला पड़ाव टाइम स्क्वायर था । यहां जगह-जगह लेड और नियॉन लाइट से झिलमिलाते बड़े-बड़े पोस्टरों द्वारा बड़ी-बड़ी कंपनियों का प्रचार किया जा रहा था । हर जगह जगमगाती रोशनी देखकर ऐसा लग रहा था कि सचमुच यह कथन बिल्कुल सत्य है कि न्यूयॉर्क कभी नहीं सोता । मन ही मन यह अवश्य महसूस हुआ कि अगर यहां रात्रि में आते तो बहुत ही अच्छा लगता । अभी हम नजर भर कर देख भी नहीं पाए थे कि धीरे-धीरे बूंदाबांदी प्रारंभ हो गई । इस बूंदाबांदी से बचने के लिए हम टाइम स्क्वायर के पास में ही स्थित मैडम तुसाद म्यूजियम में चले गए ।

सुधा आदेश
क्रमशः