Come on, let's go for a walk... 4 in Hindi Travel stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | चलो, कहीं सैर हो जाए... 4

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चलो, कहीं सैर हो जाए... 4



___गर्भजून के दर्शन हेतु जिस खिड़की से हमने अपना ग्रुप नंबर प्राप्त किया था उसी खिड़की से बायीं तरफ एक सुरंग नुमा मार्ग दिखाई दिया जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था “भवन की और जाने का मार्ग ”
इसी सुरंगनुमा मार्ग से होकर हम आगे बढे । सुरंग में एक तरफ गर्भजुन के दर्शन हेतु इंतजार करते लोग कम्बल बिछाकर बेतरतीब इधर उधर पड़े थे । सुरंग छोटी ही थी । सुरंग से बाहर चौड़ा रास्ता और उसके ऊपर बने टिन के शेड दृष्टिगोचर हो रहे थे ।

आगे बड़ा ही सुन्दर नजारा दिखाई पड़ रहा था । दूर जहाँ तक नजर पहुँच रही थी झील मिल सितारों सा रोशन कटरा शहर दिखाई पड़ रहा था । अमावस की काली रातों में सितारों से सजे आसमान की मानिंद दिख रहा था कटरा शहर । भरपूर नज़रों से इस सुन्दर नज़ारे का रसपान करते हम लोग आगे बढे ।

यहाँ से मार्ग थोड़ी ढलान लिए हुए था अतः हम लोग तेजी से आगे बढे । कुछ ही देर में हम नीचे बायीं तरफ से आ रहे एक अन्य मार्ग से जा मिले । यह वही मार्ग था जो पिछले दोराहे पर हम लोगों ने छोड़ दिया था ।
यह मार्ग वाकई अपेक्षाकृत चौड़ा और साफसुथरा था ।इस मार्ग से घोड़ों का जाना वर्जित था सो गन्दगी की संभावना कम ही थी । मार्ग बड़ा होने की वजह से भीड़ भी अधिक महसूस नहीं हो रही थी । कुछ लोग कहीं बैठे आराम करते भी दिख रहे थे । एक्का दुक्का लोग कम ही दिख रहे थे । अधिकांश लोग अपने अपने समूह के साथ ही चल रहे थे ।

कुछ उत्साही भक्तों की टोली ढोल नगाड़ों की थाप के साथ माता के गीत गाते और बड़े उत्साह से जयकारे लगाते बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही थी। सामने से आने वाले यात्रियों का झुण्ड देखकर इनका उत्साह दुगुना हो जाता और बड़े जोश से जयकारे लगाये जाते । आनेवाली टोली द्वारा भी जवाबी जयकारे लगाने से वातावरण में भक्ति का माहौल द्विगुणित हो जाता ।

हम लोगों ने भी इस टोली के पीछे पीछे चलते रहने का प्रयास किया और जयकारे लगाये लेकिन ज्यादा देर तक साथ चल पाने में असफल रहे। टोली के लोग अपेक्षाकृत तेजी से चल रहे थे । हम लोग ज्यादा चलने के अभ्यस्त नहीं थे और थकान महसूस कर रहे थे लिहाजा धीरे धीरे पिछड़ते गए। रास्ते के एक किनारे बैठ कर हम सभी मित्र आराम करने लगे। बैठे बैठे ही हम लोगों ने थोड़ी देर के लिए आँखें बंद कर लीं । लगभग आधा घंटा हम लोग बैठे रहे ।

आँखें बंद करने से हमें काफी राहत महसूस हो रही थी । थकान के गायब होने के साथ ही बोझिल पलकें भी अब बेहतर महसूस हो रही थीं । तरोताजा होकर हम लोग यात्रा शुरू करने ही वाले थे की तभी कुछ देहाती सा दिखनेवाले लोगों का एक समूह आता दिखा ।

इस समूह में पुरुष महिलायें और बच्चे भी शामिल थे ।उन्हीं के बीच एक वृद्ध माताजी जिनकी आयु 80 से अधिक अवश्य रही होगी कमर पूरी तरह से झुकी हुयी एक छोटी सी छड़ी के सहारे तेजी से बढ़ी जा रही थीं। मन ही मन उनकी हिम्मत लगन और जज्बे को सलाम करते हुए हम लोग उनके पीछे पीछे हो लिए । हमारे लिए तो वो माताजी एक प्रेरणा ही बन कर आई थीं । हमारे भी हौसले बुलंद हो गए थे । लगभग तीन बजने वाले थे और भवन अभी दो किलोमीटर और दूर था । अब यहाँ रास्ते पर शेड बने हुए दिख रहे थे । घुमावदार रास्ते के हर मोड़ पर हम उम्मीद करते की बस इस मोड़ के बाद भवन के दर्शन हो जायेंगे जो हमने अभी तक सिर्फ तस्वीरों में ही देखी थी । लेकिन मोड़ पर आते ही निराश होना पड़ता ।

रास्ते पर ही अब इक्का दुक्का बन्दर भी नजर आने लगे थे । भीड़ में एक बच्चा रो रहा था । पता चला एक बन्दर उसके हाथ से बिस्किट का पैकेट ही छीन ले गया था । कुछ लोग बंदरों को खाने की चीजें दिखाकर नजदीक बुलाने का प्रयत्न कर रहे थे । एक जगह टिन की छत के निचे एक बन्दर बड़े आराम से पेप्सी की बोतल हाथों में लिए उसे पीने का प्रयत्न कर रहा था तो यात्रियों में से कुछ अपने अपने मोबाइल से उसकी तस्वीर उतारने की कोशिश कर रहे थे । कुछ लोग मार्ग में एक किनारे बैठे भी नजर आ रहे थे । इन्हीं सब दृश्यों का अवलोकन करते हम लोग धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे । हमारी पथ प्रदर्शक टोली जिसमें हमारी प्रेरणास्त्रोत वृद्धा माताजी थीं अब कहीं नजर नहीं आ रही थी । शायद आगे निकल चुके हों ।

भवन एक किलोमीटर दूर ही है दर्शाने वाले मील के पत्थर को देखकर हमें मंजिल के और करीब आ जाने की ख़ुशी हुयी । तभी हमें ध्यान आया अभी तक तो हमें भवन का कहीं नामोनिशान भी नहीं दिखा । कहीं यह मील का पत्थर गलत दूरी तो नहीं बता रहा? संदेह होना स्वाभाविक ही था क्योंकि जैसा विशाल भवन हमने तस्वीरों में देखा था हमारे मुताबिक उसे तो दो किलोमीटर पहले से ही दिखना चाहिए था। हम धीरे धीरे अपने पथ पर अग्रसर थे । अब यात्रियों की भीड़ कुछ बढ़ी हुयी सी महसूस हो रही थी । मार्ग के दोनों तरफ लोग बैठे हुए भी दिख रहे थे ।

लगभग एक किलोमीटर की दूरी हम लोग तय कर चुके थे । भवन का कहीं कोई नामोनिशान नहीं दिखाई पड रहा था। एक जगह कई बैटरी चालित वाहन खड़े दिखाई पडे । पूछताछ करने पर पता चला ये सभी वाहन वृद्ध और बीमार यात्रियों की सुविधा के लिए यहाँ से अर्धक्वारी से पहले मिलने वाले दोराहे तक चलाये जाते हैं । इस सेवा के लिए एक निश्चित किराया देना होता है ।रात्रि में यह सेवा बंद रहती है इसीलिए हमें रास्ते में कोई वाहन आता जाता नहीं दिखा था ।

बायीं तरफ मंदिर प्रशासन द्वारा अधिकृत सस्ते दर पर प्रसाद उपलब्ध कराने की दुकान थी । लोग कतार में प्रसाद सामग्री लेने के लिए खड़े थे । हम भी प्रसाद सामग्री लेने के लिए कतार में खडे हो गए। कतार में खड़े खड़े ही हमने सामने की तरफ देखा । सामने ही भवन का अदभुत नजारा दृष्टिगोचर हो रहा था । सफ़ेद दुधिया रंग में रंगी कई इमारतों का समूह वास्तव में तस्वीरों से भी सुन्दर दिखाई दे रहे थे । इन्हीं इमारतों के पीछे की तरफ ऊंचाई पर माताजी की प्राकृतिक गुफा है जिसे भवन कहा जाता है । हमने उत्साह से जयकारे लगाये और प्रसाद हाथों में संभाले भवन की तरफ बढे ।

क्रमशः …………..