UJALE KI OR ---SANSMRAN in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर ----संस्मरण

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उजाले की ओर ----संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण

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नमस्कार स्नेही साथियों

चार रास्ते पर खड़े हुल्लड़ मचाते लड़कों से एक बुज़ुर्ग ने पूछा ;

"बेटा ! ये एड्रेस बता पाओगे ?"

कुछ अधिक ही सुसंस्कृत ,सभ्य थे वे शायद ,चुपचाप सिगरेट का धुआँ उड़ाते रहे |

बुज़ुर्ग ओटोरिक्षा में थे ,रिक्षा वाला भाई भी खासी उम्र का ,बेचारा जगह -जगह अपनी सवारी को घुमा रहा था |

मालूम ही नहीं चल रहा था रास्ता ,वह कई स्थानों पर रुककर पूछ रहा था |

एक फल बेचने वाला वहाँ से गुज़र रहा था ,वह रुका और पते का कागज़ हाथ में लेकर देख ही रहा था कि सिगरेट के छल्ले उड़ाते लड़के ज़ोर से हँसे |

"हाँ,ये बताएगा ,इससे पूछो ,अरे ! कागज़ में क्या झाँक रहा है ?पढ़ना आता है क्या ? या अभी पढ़ाई करने जाएगा ,तब बताएगा |"

और वे मूर्खों की भाँति दाँत फाड़ने लगे |

फलों की लारी वाले ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया और अंग्रेज़ी में लिखे हुए पते को पढ़कर बताया कि वो जिस पते को वे तलाश कर रहे थे ,वह तो उनके सामने ही था |

बुज़ुर्ग ने फल वाले का शुक्रिया अदा किया और वे उसके बताए हुए घर की ओर बढ़ गए |

चार रास्ते पर खड़े होने वाले लड़कों ने यह सब देखा ,उन्हें बड़ा धक्का लगा |

ऐसा कैसे कि एक फल बेचने वाला गरीब ,साधारण सा दिखने वाला आदमी इतना तहज़ीबदार और शिक्षित है !

सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुए वे उसके पास आए |

"क्यों बे ! तू अपने आपको क्या समझता है ?" उनमें से एक ने अकड़कर कहा |

"तू जानता भी है ,हम कौन हैं ?" दूसरे ने उसे घुड़का |

फल बेचने वाला भी अपनी फलों की लारी वहीं रोककर खड़ा हो गया |

"बेटा ! होगे तो तुम अपने माँ-बाप के ही बच्चे न ? तुम्हें उनका नाम पता होगा ,मैं कैसे बताऊँ ?"

"ज़बान चलाता है ---" शायद पीए हुए था | सिगरेट के छ्ल्ले उसके नथुनों में से हवा में बिखेर रहे थे |

"आपकी बात का जवाब दिया बेटा ! ज़बान तो चलानी पड़ेगी न !" फल वाला भी वहीं अड़ा रहा |

लड़के परेशान हो गए | सड़क पर चलते राहगीर भी उनकी बातें सुनकर ठिठक गए थे जिन पर वे चिल्ला रहे थे कि वहाँ तमाशा नहीं है ,वे भागें |

"बच्चों मैं तो चला ही जाऊँगा लेकिन तुम्हारी पीढ़ी को देखकर मुझे अफ़सोस होता है | मैं भी एक स्कूल में टीचर हूँ ,मन में समाज के लिए कुछ करने का विचार है | अध्यापन से जो मिलता है ,उसमें से मैं कुछ अधिक नहीं कर पाता क्योंकि मेरे भी तुम्हारे जैसे बच्चे हैं | इसीलिए मैं कुछ समय फलों को बेचकर उससे जो मिलता है ,वह समाज के उस तबके को देता हूँ जो सच में जरूरतमंद हैं | "

लड़कों को लगा फल वाला झूठ बोल रहा था ,वे उसकी हँसी उड़ाते रहे |

"बेटा ! जितना इस सबमें उड़ाते हो उतना यदि किसी जरूरतमंद को दोगे तो उसे सहारा मिलेगा और तुम्हें आशीर्वाद !"

अब एक-दो लड़कों को शर्म महसूस होने लगी थी |वे अपने अन्य दोस्तों को छोडकर फल के ठेले के पास पहुँच गए |

"बच्चों !मनुष्य के मन में दो घोड़े दौड़ते हैं ,एक नकारात्मक ,एक सकारात्मक !एक अच्छा,एक खराब ! सवाल यह है कि तुम्हें किस घोड़े पर सवारी करनी है ?"

"सॉरी अंकल " एक लड़के ने कहा |

"मुझे लगता है निर्णय आपका अपना है ,आपको किस घोड़े पर बैठना है ? कौन तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य तक ले जा पाएगा ?"

अब लड़कों के हाथ से सिगरेट छूट गई थी और वे अपने बारे में सोचने के लिए शायद बाध्य हो गए थे |

कई बार हम अपनी नई पीढ़ी को समझा नहीं पाते ,उसे समय नहीं दे पाते जो कि बहुत आवश्यक है |

यदि हम मित्रतापूर्वक अपनी अगली पीढ़ी को सही प्रकार से चैतन्य कर सकें तब शायद हंसमाज के लिए कुछ करके जीवन में जीने का वास्तविक आनंद प्राप्त कर सकें |

गौर फरमाएँ

स्नेहपूर्ण नमस्कार

फिर मिलते हैं ,एक नए विचार के साथ |

डॉ. प्रणव भारती