Dekho Bharat ki Tasveer - 4 in Hindi Poems by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" books and stories PDF | देखो भारत की तस्वीर - 4

Featured Books
  • 99 का धर्म — 1 का भ्रम

    ९९ का धर्म — १ का भ्रमविज्ञान और वेदांत का संगम — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎...

  • Whispers In The Dark - 2

    शहर में दिन का उजाला था, लेकिन अजीब-सी खामोशी फैली हुई थी। अ...

  • Last Benchers - 3

    कुछ साल बीत चुके थे। राहुल अब अपने ऑफिस के काम में व्यस्त था...

  • सपनों का सौदा

    --- सपनों का सौदा (लेखक – विजय शर्मा एरी)रात का सन्नाटा पूरे...

  • The Risky Love - 25

    ... विवेक , मुझे बचाओ...."आखिर में इतना कहकर अदिति की आंखें...

Categories
Share

देखो भारत की तस्वीर - 4

देखो भारत की तस्वीर 4

(पंचमहल गौरव)

काव्य संकलन

समर्पण-

परम पूज्य उभय चाचा श्री लालजी प्रसाद तथा श्री कलियान सिंह जी एवं

उभय चाची श्री जानकी देवी एवं श्री जैवा बाई जी

के श्री चरणों में श्रद्धाभाव के साथ सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

भाव सुमन-

पावन धरती की सौंधी-सौंधी गंध में,अपनी विराटता को लिए यह पंचमहली गौरव का काव्य संकलन-देखो भारत की तस्वीर के साथ महान विराट भारत को अपने आप में समाहित किए हुए भगवान राम और भगवान कृष्ण के मुखार बिन्द में जैसे-विराट स्वरुप का दर्शन हुआ था उसी प्रकार इस पंचमहल गौरव में भी विशाल भारत के दर्शन हो रहे हैं भलां ही वे संक्षिप्त रुप में ही क्यों न हों।

उक्त भाव और भावना का आनंद इस काव्य संकलन में आप सभी मनीषियों को अवश्य प्राप्त होंगे इन्हीं आशाओं के साथ संकलन ‘‘देखो भारत की तस्वीर’’ आपके कर कमलों में सादर समर्पित हैं।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गायत्री शक्ति पीठ रोड़ डबरा

जिला ग्वालियर (म.प्र)

मो.9981284867

चरखा, गड़ाजर, नया गांव

हो जाई जीवन सुफल, करना है साकार।

स्‍वाबलम्‍ब घर घर मिलै, चरखा का व्‍यापार।

चरखा का व्‍यापार, हमें जीवन सुख देता।

जीवन-दैन्‍य विकार, सभी के सब हर लेता।

सोच लेउ मनमस्‍त जिंदगी जीना भाई।

चरखा से कर प्‍यार, सुखी जीवन हो जाई।। 106।

सुख पाया सुख मूल है, यहीं गड़ाजर देख।

जिसकी करनी की कथा, दिखा रहे अभिलेख।

दिखा रहे अभिलेख, लेख इसका पहिचानो।

जीवन का उत्‍थान जभी कुछ कर्म बखानो।

सूखा निर्मल नीर बहै, जहां शीतल छाया।

कुछ करलो विश्राम, गड़ाजर सब सुख पाया।। 107।

इसकी कविताई करो, छोड़ पुराने गांव।

जामुन-आमों की जहां, शीतल पावो छांव।

शीतल पावो छांव, सुघर भवनों की काया।

लगता ऐसे यहां, बसी हो आकर माया।

मन होता मनमस्‍त, गांव सब घूमो जाई।

नया गांव है नया, नई इसकी कविताई।। 108।

किठौंदा, पचौरा, सिंघारन

यहां का पानी जटिल, धर लीजे कुछ ध्‍यान।

क्षेत्र गा रहा आज भी, इसके गौरव गान।

इसके गौरव गान, इसकी शान पहिचानो।

निकट बह रही मघई, धरित्री का सुख जानो।

बहुत पुराना गांव, गांव की अकथ कहानी।

हो जाता मनमस्‍त, पियो जब यहां का पानी।। 109।

इसकी अरूणामयी अधिक, धन्‍य पचौरा ग्राम।

जिसकी पावन भूमि ने, घनद बनाया नाम।

घनद बनाया नाम, कुशल यहां के नर नारी।

पावन मंदिर-कूप, बाबरी न्‍यारी-न्‍यारी।

सब सुख समृद्धिवान, पचौरा देखो भाई।

मन होबै मनमस्‍त, देख इसकी अरूणाई।। 110।

बरनी जाई नहीं जो, चलो सिंघारन ग्राम।

सूखा की पा झलक को, कमा रहा है नाम।

कमा रहा है नाम, जनकपुर-सा मन भाया।

घर घर सीता मिलैं, राम मन मानव पाया।

रहो यहां सुख चैन, मिलै सुख कितना भाई।

मन होता मनमस्‍त, कीर्ति नहीं बरनी जाई।। 111।

मार्गपुर, ईटमा

सारे-ससुर सब यहां, भूल न पाया बाम।

सुख की सरिता यहां मिली, मन पाता विश्राम।

मन पाता विश्राम, सिंघारन मन को भाया।

जिधर देखता तिधर दिखै तेरी ही माया।

बैठ आम की छांह, रहो मनमस्‍त पियारे।

कितने अच्‍छे स्‍वजन, हमारे सारे-सारे।। 112।

रखबारी करते मिलै, सुख शीतल सी छांव।

सूखा के पा तीर को, मिटैं पीर के पांब।

मिटै पीर के पांब, गांव जो देखो भाई।

सब सुख की है खान, इसी में करो कमाई।

धन्‍य-धन्‍य सब लोग, यहां के जन हितकारी।

मन में हो मनमस्‍त, करैं सबकी रखबारी।। 113।

सही ठिकानों ईटमा प्‍यारा, सुन्‍दर गांव।

विद्यालय है मिृडिल तक, शिक्षा में है नाम।

शिक्षा में है नाम, बना शिव आलय भाई।

ब्राज रहे बजरंग, ध्‍वजा जिनकी फहराई।

कुशल कला के धनी, ग्राम के जन-जन जानो।

होता मन मनमस्‍त ईटमा जमी ठिकानों।। 114।

बेला, मसूदपुर, रही

तिहांरे भाग्‍य खुले हैं, ले लो वेला हाथ।

कोई कभी न बिछुड़ है, सभी तुम्‍हारे साथ।

सभी तुम्‍हारे साथ, धन्‍य जीवन हो जाई।

मेहनतवान किशान, करै चहु हाथ कमाई।

लक्ष्‍मी लालन करै, अरे मनमस्‍त पियारे।

करलो इनके दर्श, भाग्‍य खुल जांय तिहारे।। 115।

गौरव गाओ हमेशा, चलो मसूदपुर आज।

चिडी झपट्टा खेल है, सजा सजा के साज।

सजा सजा के साज, यहां के जीवन जानो।

मन में करो विचार, अभी कुछ मेरी मानो।

सीखो जीवन गीत, मीत मेरे बनजाओ।

होबै मन मनमस्‍त, गांव के गौरव गाओ।। 116।

काया-माया जो रही, रई रही किस काम।

रही गांव की कहानी, जानत है हर गांव।

जानत है हर गांव, क्षेत्र का गौरव जानो।

कृषक यहां के धनी, ताल का करो ठिकानो।

विद्यालय का भवन और पंचायत साया।

कर देती मनमस्‍त, सभी की काया काया।। 117।

मस्‍तूरा खेड़ा टांका, करहिया

आओ भाई देख लो, मस्‍तूरा को आज।

रोड़ गया है गांव तक, उन्‍नति शाली काज।

उन्‍नति शाली काज, करै यहां के नर-नारी।

शस्‍य–श्‍यामलम भूमि लहलहीं क्‍यारीं – क्‍यारी।

मन रमता मनमस्‍त, इसी नगरी में जाई।

मस्‍तूरा को छोड़ कहीं नहीं जाओ भाई।। 118।

ज्‍यौं भाई-भाई रहें, खेड़ाटांका खास।

उन्‍नत शिर पर्वत खड़ा, जैसे हो विश्‍वास।

जैसे हो विश्‍वास, नहर से इसका नाता।

गौरवशाली गांव देख सबका मन भाता।

यहां के सब नार-नारि करैं मिल कुशल कमाई।

मन मनमस्‍त दिखाय, मिलैं भाई ज्‍यौं भाई।। 119।

आलय विद्यालय सुघर, पदम करहिया जान।

यहां मिनिस्‍टर घूमते, बड़ी अनूठी शान।

बड़ी अनूठी शान, तान इसकी पहिचानो।

व्‍यापारिक परिक्षेत्र, हाठ में सबको आनो।

विजली, वाटर पम्‍प, रोड़, बंगला विद्यालय।

थाना भी मनमस्‍त, डांक घर का भी आलय।। 120।

दुबहा, मेंहगांव, रिठौंदन

हरिनामा रट‍ता दुबहा, मकरध्‍वज के पास।

आश्रम इतना सुखद है, ज्‍यौं मन में विश्‍वास।

ज्‍यौं मन में विश्‍वास, आस पूरी हो जाती।

तपैं तपस्‍वी ताप, बनें भगवन के साथी।

धन्‍य दुबहा जो भया, पाय मकरध्‍वज धामा।

जीवन है मनमस्‍त, रटें निशिदिन हरिनामा।। 121।

आत्‍मा गाती प्रेम से, यही गांव मेंहगांव।

देख करहिया पास में, शीतल बट की छांव।

जैसे बट की छांव, नहर भी निकट बहाई।

खूब करो स्‍नान, बांध हरसी से आई।

शिव देवी के भवन, ध्‍वजा जिन पर फहराती।

मन होता मनमस्‍त, आरती आत्‍मा गाती।। 122।

भारी प्‍यारा मनोहर रचा रिठौंदन बोल।

बट आमों की डाल पर, बोल रहे हैं मोर।

बोल रहे हैं मोर, रिठोंदन ग्राम कहाया।

रोड़ बीच से गया, बाजने तक जो जाता।

सच मानो मनमस्‍त प्रेम मूरति नर-नारी।

हंस मुख, बोली मधुर, लगैं प्‍यारी भी गारीं।। 123।

सिआऊ, बाजना, ईंटों

ठेलम ठेला दिख रहा, वृक्षन बोलत मोर।

स्‍याऊ-स्‍याऊ रट रहे, स्‍यार, पपीहा, मोर।

स्‍यार, पपीहा, मोर- बहुत सुन्‍दर है ग्रामा।

झरना बहता पास-जहां शीतल विश्रामा।

स्‍वर्णलता सीं लिपट बेल वृक्षों की काया।

मन होता मनमस्‍त- धन्‍य प्रभु तेरी माया।। 124।

रोजयी जाई विचरलो, पंख फुला कल्‍लोल।

जहां बाजना क्‍या फिकर, मुक्‍त मुक्‍त हों बोल।

मुक्‍त मुक्‍त हों बोल, निकट है रानी घाटी।

तपसी सरयूदास पुकारैं, यहां की मांटी।

पावन तीर्थ धाम गौमुखी- गंगा भाई।

धन्‍य बाजना हुआ-बसा जो चरनों जाई।। 125।

अवतारी धरनी धबल, ईटों की पहिचान।

गृह-गृह उज्‍जवल देखिये, ज्‍यौं जीवन के दान।

ज्‍यों जीवन के दान, जन्‍म को धन्‍य बनाओ।

इस माटी को अंगलगा-पावन हो जाओ।

सच कहता मनमस्‍त परिश्रम कर नरनारी।

बना रहे हैं स्‍वर्ग, धारित्री को अवतारी।। 126।

मरउआ, छोटी-बड़ी रिछारी, डोंगरपुर

आते जाते मन रमें, फसलों की मनुहार।

मोर पपीहा बोलते, ज्‍यों जीवन में प्‍यार।

ज्‍यों जीवन में प्‍यार, मरउआ को पहिचानो।

धरती के ये लोग-देवता से अनुमानो।

सब में अद्भुत प्‍यार, सदां मनमस्‍त दिखाते।

कभी न लड़ते दिखें, सदां ही आते जाते।। 127।

डेरा डाले उभय ही, छोटी-बड़ी रिछारी।

सदां सदां हिलमिल रहें, कर्म कला बलिहारिं।

कर्म कला बलिहारी, निकट लाखेश्‍वरि माई।

पर्वत ब्राजीं, ध्‍वजा गगन, जिनकी फहराई।

अति सुन्‍दर स्‍थान, प्रकृति मनमस्‍त बसेरा।

सब कुछ सुन्‍दर बनै, जहां मईया का डेरा।। 128।

जीवन बलिहारी बना, डोंगरपुर में मीत।

रोड़ किनारे पर बनीं, मिट्टी लीपीं भीतिं।

मिट्टी लीपीं भीत, लालिमा जिनमें छाई।

चलतीं चाकीं, कहीं, गीत ज्‍योनार सुनाईं।

मधुर-मधुर मुस्‍कान, बाल-बाला की प्‍यारी।

मन होता मनमसत अहो! जीवन बलिहारी।। 129।

चिटौली, देवरी, माउठा

हाट लगाई प्रेम की, ऊंची-ऊंची टोर।

चन्‍द्र पांव फैला यहां, नाच रहा है मोर।

नाच रहा है मोर, ग्राम शोभा पहिचानो।

ताल, ताल दे रहा, मोरिया सरगम मानो।

चित भगवन की गोद, चिटोली मेरे भाई।

मन होता मनमस्‍त प्रेम की हाट लगाई।। 130।

सुहाई मंदिर देखिये, यहां देवरी देख।

कैसा जीवन यहां का, लिखे प्रकृति के लेख।

लिखे प्रकृति के लेख, रोड़ का लिया सहारा।

पहाड़ी ऊपर लखो- बना मंदिर है प्‍यारा।

कुअला की पनिहार- भक्ति-मूरति उर भायी।

कलशाओं की झलक, सदां मनमस्‍त सुहाई।। 131।

भूले नहीं जाई कभी, प्‍यार सजन रहे सोय।

घर घर से यह सुन परत, उठा मा उठा मोय।

उठा मा उठा मूोय, गोद तेरी मैं आया।

मंदिर के भगवान-गीत तेरे मैं गाया।

देख पुराना गांव-पड़ा ऊजर है भाई।

सोच लेउ मनमस्‍त-यहां भूलैं नहिं जाई।। 132।

मतबारे बोहरे-सुजान, देखो बनियां तोर।

प्‍यार मिला हर मेंढ़ पर, नहीं धान्‍य को ठोर।

नहीं धान्‍य को ठोर, नगर रचना अनुसारी।

पीपल नीम पलाश, लगै बट छाया प्‍यारी।

पा-शीतल स्‍थान, अरे मनमस्‍त पियारे।

कुछ तो सुस्‍तालेउ, पंच महली मतबारे।। 133।

मानो या मानो नहीं, जौरा पाबन भूमि।

ज्‍यौं नारें गातीं मिलैं- जहां की नारी झूम।

जहां की नारी झूम, गांव का गौरव गाती।

जन्‍म लेंय चाहे कहीं, बनैं जौरा के साथी।

सच मानो मनमस्‍त, वीर भूमि पहिचानो।

ताल वृक्ष अनुरूप, खजूरों को ही मानो।। 134।

गीत जबानी गा रही, रहें श्‍यामपुर आय।

मघई किनारे देखलो, गइयां रोज चरांय।

गइयां रोज चरांय, घूमरी, पडुकन कारी।

रेशम, बंडी, श्‍याम, लगै मुंह पाटन प्‍यारी।

पाकरि, जम्‍बु रसाल, कीर, पपीहा की बानी।

मन होता मनमस्‍त, सुनैं जब गीत जबानी।। 135।

खिरिया, घाटमपुर, बरउआ

भूल न पाओ कभी भी, खिरिया ग्राम सुहाय।

खिरिया की पहिचान में, साथ श्‍यामपुर आय।

साथ श्‍याम पुर आय, अलग सी हैं रजधानी।

मन से होए न दूर, पियें मिल एकहि पानी।

सच कहते मनमस्‍त, श्‍यामपुर खिरिया जाओ।

कितनों प्‍यारो गांव, स्‍वप्‍न में भूल न पाओ।। 136।

मांस रसीला सुहाना, घाटमपुर का राज।

ताल तलइयां एक बन,हिलमिल कीजे काज।

हिलमिल कीजे काज,धन्य जीवन हो जाई

ताल पार पै बैठ, मल्‍हारें गाओ भाई।

प्‍यारी पावन भूमि, पंच महली की लीला।

मन बनता मनमस्‍त, सदां मधुमांस रसीला।। 137।

करैं किनारा सभी जन, ग्राम बरउआ जान।

कितने स्‍नेही बने, इक दूजे महिमान।

इक दूजे महिमान, मान सबका यहां पाओ।

अनजाने में कभी भूलकर भी यदि जाओ।

प्‍यारी प्‍यारी भूमि और जन मन भी प्‍यारा।

सब रहते मनमस्‍त दैन्‍य दुख करैं किनारा।। 138।

भितरबार, सहारन

विद्यालय, कॉलेज देखिये, भितरबार में जाय।

होउ तिराहे पर खड़े, नगरा जो कहलाय।

नगरा जो कहलाय, पहाड़ पर लक्ष्‍मणगढ़ है।

दक्षिण दिसि की ओर, बना पर कोटा मढ़ है।

थाना अरू तहसील, स्‍वास्‍थ्‍य घर, विकास आलय।

मन होता मनमस्‍त, देख कर के विद्यालय।। 139।

लेखिए लेखन शिखर के, तु्ंग सुबेल सुहाय।

दक्षिण-पूर्व की तरफ पार्वती नद जाय।

पार्वती नद जाय, पलोटत चरण सुहाती।

पंच महल के पंचम स्‍वर में गीत सुनाती।

गोलेश्‍वर को देख घाट प्राचीन देखिये।

सब मनमस्‍त दिखाय, हाट और बाट लेखिये।। 140।

लाली लक्षिति न देख ले, ग्राम सहारन तीन।

कल कल छल छल जल बहे शीतल मंद समीर।

शीतल मंद समीर, आत्‍मा को सुख देती।

जो नहावैं नित नैंम, उन्‍ही के दुख हर लेती।

पड़ुआ-दोमट भूमि, बहुत उपजाऊ बाली।

मन मनमस्‍त बनाय, भूमि की लाली लाली।। 141।

डढूमर, कर्णगढ़, शांसन

सदां सुहाए तीर पर, गांव बस रहा एक।

नाम डढूमर कहत हैं, लिखै अलग से लेख।

लिखै अलग से लेख, मेख इसने है गाढ़ी।

धान्‍य अधिक उपजांय, ट्रेक्‍टर संग में गाड़ी।

धर कर मोटर पम्‍प, उपज में नम्‍बर पांयें।

हंसमुख सब जन जीव, सदां मनमस्‍त सुहायें।। 142।

सारे के सारे यहां, कर्णवीर महाराज।

उनके पावन नाम पर, बसा कर्णगढ़ आज।

बसा कर्णगढ़ आज, मनोरम भूमि यहा की।

गौरव गाथा कहै, अनौखी प्रीति जहां की।

देख कर्णगढ़ आज, मस्‍त मनमस्‍त बिचारै।

गहरे हैं सम्‍बन्‍ध, यहां सारे के सारे।। 143।

आलय शांसन अदभुत, अपने में विख्‍यात।

पार्वती के अंक में, जैसे गणपति गात।

जैसे गणपति गात, बनी पावन है काया।

त्रिवेणी का घाट, रमण रेती सी छाया।

सुन्‍दर पावन धाम बना मंदिर विद्यालय।

मिली शान्ति मनमस्‍त, देखकर उन्‍नति आलय।। 144।

बनियानी, जराबनी, सांखनी

ठीक ठिकाने पर बसी, बनियानी को जान।

प्‍यारी प्‍यारी लग रहीं, तल छट्टी चट्टान।

तल छट्टी चट्टान, सिंचाई लिफ्ट बनाई।

मेहनतवान किशान, भाल पर है अरूणाई।

भूमि बनी भय हीन, मुक्ति के सुनो तराने।

सच मानो मनमस्‍त, अलग पहिचान ठिकाने।। 145।

आओ यहां पर पास ही, जरा जरावनी देख।

मन को भावत भूमि है, प्‍यारी पीपर रेख।

प्‍यारी पीपर रेख, प्रकृति से करती क्रीड़ा।

कौमल, रस-रसवन्ति, झूमकर मेंटे पीड़ा।

गाती अनहद गीत, मीत इसके बन जाओ।

होकर नित मनमस्‍त, दौड़कर यहां पर आओ।। 146।

साख सुहाई सांखनी, पंच महल में एक।

गढ़ी खड़ी बतिया रही, राखे न्‍यारी टेक।

राखे न्‍यारी टेक, राज मंदिर को देखो।

कितनी पावन भूमि, आपने मन में लेखो।

जीवन का इतिहास, छिपा गढ़ की गहराई।

मन में बस मनमस्‍त, सांखनी साख सुहाई।। 147।

खड़ीचा, युगल झाऊ, पद्मावती (पबाया)

माया भगवन पद्मावती, बसा खड़ीचा ग्राम।

धूमेश्‍वर के धाम में, अपना करता काम।

अपना करता काम, धान्‍य धन खूब कमाता।

पास-पड़ौसी ग्राम, रखैं भाई सा नाता।

प्‍यारे पीपल आम-नीम इमली की छाया।

सब रहते मनमस्‍त, धन्‍य भगवन की माया।। 148।

स्‍तुति गाबै झाऊ, राम कृष्‍ण सा रूप।

धूमेश्‍वर शिव धाम में, युग गौरव अनुरूप।

युग गौरव अनुरूप, सिंध पद पंकज धोबै।

पावन हो गई भूमि, प्रसूनी माला पोबै।

नित प्र‍ति दर्शन करें, अर्चना सुमन चढ़ाबै।

मन में हो मनमसत-शिबा शिब स्‍तुति गाबै।। 149।

जीवन नाते जुड़े है, पद्मावति जाय।

वीर प्रसूती भूमि यह, गौरव रही बताय।

गौरव रही बताय, नागवंशी रजधानी।

गाजर का रण खेत, अरूणिमा उमंग रवानी।

भव भूति कवि गीत, यहां का गौरव गाते।

इससे हैं मनमस्‍त हमारे जीवन नाते।। 150।

रायचौरो,

गौरब बाना धारता, पद्मावति इतिहास।

कवियों की अनुभूति में युग गहरा विश्‍वास।

युग गहरा विश्‍वास, यहां की अमर कहानी।

गौरव के स्‍तूप, कहानी कहैं जबानी।

पार्वती अरू सिंध प्रीति का यहां मुआना।

जन मन हो मनमस्‍त पहनता गौरव बाना।। 151।

मनमस्‍त सुहाए आल्‍हा, गांजर का अभिलेख।

युद्धों की भरमार थी, गांढे अपनी मेख।

गांढे अपनी मेख, भाग्‍य के लेख मिटाते।

गांजर के रण वीर मुक्ति रण भूमि पाते।

यही पवांया भूमि, किले भू-गर्भ समाये।

रत्‍न प्रसवनी भूमि, सदां मनमस्‍त सुहाये।। 152।

माया तेरी है विविध, छिपे अनूठे राज।

ग्राम रायचौरो बसा, अपनी लेकर लाज।

अपनी लेकर लाज करीलन कुंज सुहाने।

अलि गुंजारै गीत, पपीहा पी मन माने।

भारई की चींकार, दादुरों की रण मेरी।

मन होता मनमस्‍त, धन्‍य प्रभु माया तेरी।। 153।