Ek tha Thunthuniya - 14 in Hindi Children Stories by Prakash Manu books and stories PDF | एक था ठुनठुनिया - 14

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एक था ठुनठुनिया - 14

14

आह, वे फुँदने!

सर्दियाँ आईं तो ठुनठुनिया ने माँ से कहा, “माँ...माँ, मेरे लिए एक बढ़िया-सी टोपी बुन दे। सुंदर-सुंदर फुँदनों वाली टोपी। स्कूल जाता हूँ तो रास्ते में बड़ी सर्दी लगती है। टोपी पहनकर अच्छा लगेगा।”

गोमती ने बेटे के लिए सुंदर-सी टोपी बुन दी, चार फुँदनों वाली। ठुनठुनिया ने पहनकर शीशे में देखा तो उछल पड़ा, सचमुच अनोखी थी टोपी।

टोपी पहनकर ठुनठुनिया सारे दिन नाचता फिरा। अगले दिन टोपी पहनकर स्कूल गया, तो सोच रहा था, सब इसकी खूब तारीफ करेंगे। पर ठुनठुनिया की टोपी देखकर मनमोहन और सुबोध को बड़ी जलन हुई।

हमेशा वे ही क्लास में एक से एक सुंदर कपड़े पहनकर आते थे। ‘भला ठुनठुनिया की क्या मजाल जो हमसे मुकाबला करे!’ उन्होंने सोचा।

फिर ठुनठुनिया से पुराना बदला भी लेना था। ‘ऐसा मौका क्या बार-बार आता है?’ मनमोहन और सुबोध ने एक-दूसरे से फुस-फुस करके कहा, फिर अपने काम में जुट गए।...मनमोहन ने झट क्लास के आठ-दस बच्चों को टॉफी का लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया। वे ताली बजा-बजाकर चिढ़ाने लगे, “देखो-देखो, ठुनठुनिया की अजीब-सी टोपी—चार फुँदनों वाली टोपी!...देखो-देखो, चार फुँदनों वाली अजीब टोपी!”

ठुनठुनिया ने सुना तो घबराया। यह क्या चक्कर? कहाँ तो वह नई टोपी पहनकर बेहद खुश था और कहाँ अब मुँह छिपाए फिरता था।

अब तो मजाक उड़ाने वालों में क्लास के और भी बच्चे शामिल हो गए थे। उन्हें भी मनमोहन ने टॉफियाँ खरीदकर दे दी थीं।

“देखो-देखो, अजीब-सी टोपी!...चार फुँदनों वाली अजीब-सी टोपी!” सब चिल्ला रहे थे। उन्हें यह मजेदार खेल मिल गया था, तो फिर भला पीछे क्यों रहते?

उस दिन ठुनठुनिया घर आया तो उसका चेहरा उतरा हुआ था। आते ही माँ से बोला, “माँ-माँ, तुम मेरी टोपी का एक फुँदना काट दो। सब क्लास में मेरा मजाक उड़ा रहे थे कि देखो-देखो, चार फुँदनों वाली अजीब टोपी!”

गोमती ने बहुत समझाया कि बेटा रहने दो। एक-दो दिन में सब अपने आप शांत हो जाएँगे। पर ठुनठुनिया पर जिद सवार थी। बोला, “नहीं माँ, तुम एक फुँदना तो काट ही दो।...आज तो मेरा बड़ा मजाक उड़ा, बड़ा!”

अगले दिन ठुनठुनिया टोपी पहनकर गया, तो एक फुँदना कम देखकर बच्चों को और भी मजा आया। वे उसी तरह ताली बजा-बजाकर चिल्लाने लगे, “देखो-देखो, ठुनठुनिया की अजीब-सी टोपी—तीन फुँदनों वाली टोपी!”

अब तो ठुनठुनिया और भी परेशान हो गया। उसे बुरी तरह रोना आ रहा था। यह पता नहीं, कैसा चक्कर शुरू हो गया कि क्लास के सारे ही बच्चे तालियाँ पीट-पीटकर मजाक उड़ाते हैं।

घर आकर उसने माँ से जिद करके एक फुँदना और कटवाया। सोच रहा था, अब सब ठीक हो जाएगा। पर अब तो क्लास में और भी जोर से मजाक बना, “देखो-देखो, ठुनठुनिया की दो फुँदनों वाली अजीब-सी टोपी!...ओहो-ओहो, दो फुँदनों वाली टोपी!!”

“कभी देखी न सुनी दो फुँदनों वाली टोपी!...”

ठुनठुनिया का मन हुआ कि कानों पर हाथ रखकर घर भाग जाए। और घर आते ही उसने अम्माँ से कहकर एक फुँदने की और छुट्टी कराई। सोच रहा था, शायद अब इस आफत से छुटकारा मिलेगा! अब तो सिर्फ एक ही फुँदना...!!

मगर आफत इतनी जल्दी कैसे जाती? यहाँ तक कि जब एक फुँदना रह गया, तब भी ठुनठुनिया का खूब मजाक बना। हारकर उसने जिद करके माँ से वह भी कटवा लिया। सोचने लगा, ‘देखूँ भला, अब कोई मेरा कैसे मजाक उड़ाएगा?’

पर मनमोहन और सुबोध तो साथ बच्चों के लगातार शह दे रहे थे। उन्हें भी मजेदार खेल मिल गया था। जब ठुनठुनिया बगैर फुँदने वाली टोपी पहनकर आया तो सब बड़े जोर से खिलखिलाए। ताली पीट-पीटकर चिल्लाने लगे, “देखो-देखो, ठुनठुनिया की अजीब-सी टोपी—बिना फुँदनों वाली टोपी!”

“हैं-हैं!...अच्छा! बिना फुँदने की टोपी!” कहकर सब बच्चों ने मिलकर ताली बजा दी।

ठुनठुनिया रोने-रोने को हो आया। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सँभाला। घर आकर माँ से बोला, “माँ-माँ, बच्चे तो आज भी मेरा मजाक उड़ा रहे थे। कह रहे थे, देखो-देखो, ठुनठुनिया की अजीब-सी टोपी—बिना फुँदने की टोपी!”

ठुनठुनिया को परेशान देख, गोमती ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, तू चिंता ही क्यों करता है? लोगों को तो कुछ न कुछ बहाना चाहिए हँसने का। तू भी उनके साथ-साथ हँसना शुरू कर दे। वे अपने आप चुप हो जाएँगे।”

“अच्छा माँ...सच्ची? तू ठीक कह रही है न!” ठुनठुनिया को जैसे यकीन नहीं हुआ। माँ कुछ बोली नहीं। बस, चुपचाप ठुनठुनिया के माथे को चूम लिया।

और सचमुच बच्चे दो-चार दिन में ही शांत हो गए। जैसे टोपी वाला किस्सा एकदम खत्म हो गया हो। ठुनठुनिया अब खुश था। लेकिन कभी-कभी वह मन-ही-मन सोचता, ‘कितने अच्छे थे वे चार फुँदने, बेकार ही माँ से कहकर कटवाए।’