Ek tha Thunthuniya - 25 in Hindi Children Stories by Prakash Manu books and stories PDF | एक था ठुनठुनिया - 25

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एक था ठुनठुनिया - 25

25

स्कूल का वार्षिक उत्सव

धीरे-धीरे समय आगे बढ़ा। ठुनठुनिया अब बारहवीं कक्षा में था और बड़ी तेजी से बोर्ड की परीक्षा की तैयारी में जुटा था। अब वह पहले वाला ठुनठुनिया नहीं रह गया था। उसमें गजब का आत्मविश्वास आ गया था। उसने तय कर लिया था कि ‘मंजिल पाकर दिखानी है। तभी मेरी माँ को सुख-शांति मिलेगी। जीवन-भर इसने इतने कष्ट झेले, कम-से-कम अब तो कुछ सुख के दिन देख ले।’

इसी बीच एक दिन हैडमास्टर साहब ने ठुनठुनिया को बुलाया। कहा, “ठुनठुनिया, अगले महीने स्कूल का सालाना फंक्शन होना है। मुख्य अतिथि होंगे कुमार साहब! वे यहाँ की बहुत बड़ी कपड़ा मिल ‘कुमार डिजाइनर्स’ के मैनेजर हैं। वे बहुत पढ़े-लिखे और समझदार आदमी हें। बढ़िया कला और कलाकारों की बड़ी इज्जत करते हैं। हमारे स्कूल को भी खुले हाथों से मदद देते हैं। मैं चाहता हूँ, इस फंक्शन में तुम भी कोई अच्छा-सा कार्यक्रम पेश करो, जिसे लोग हमेशा याद करें!”

ठुनठुनिया इस समय पूरी तरह अपनी पढ़ाई में डूबा हुआ था! रात-दिन बस पढ़ना, पढ़ना। खाने-पीने तक का होश नहीं। यहाँ तक कि सपने भी उसे इसी तरह के आते...कि वह परीक्षा हॉल में बैठा तेजी से लिखता जा रहा है। तभी समय खत्म होने का घंटा बजा, मगर...उसका आखिरी सवाल अभी अधूरा है और वह पसीने-पसीने! फौरन नींद खुल जाती और वह हक्का-बक्का सा रह जाता।

पर हैडमास्टर साहब के कहने पर उसने एक बिल्कुल नए ढंग के, खासे जोरदार नाटक की तैयारी शुरू की। वह नाटक एक नटखट शरारती बच्चे के जीवन पर था, जो दुनिया-जहान की न जाने कैसी-कैसी चक्करदार गलियों और अजीबोगरीब रास्तों पर यहाँ-वहाँ भटकने के बाद आखिर घर लौटता है। और तब घर उसे ‘आओ मेरे बिछुड़े हुए दोस्त...!’ कहकर बाँहों में भर लेता है। नाटक का नाम था, ‘घर वापसी’। इस नाटक में ठुनठुनिया ने बेशक अपनी शरारतों की पूरी कहानी कह दी थी।

सालाना फंक्शन में ठुनठुनिया ने गीत-संगीत और अपनी सुरीली बाँसुरी बजाने का कार्यक्रम भी पेश किया था। पर सबसे ज्यादा जमा उसका नाटक ही। ठुनठुनिया का यह नाटक इतना मर्मस्पर्शी और दिल को छू लेने वाला था कि देखने वालों की आँखें भीग गईं। कुमार साहब भी इस कदर प्रभावित हुए कि कार्यक्रम खत्म होने के बाद उन्होंने ठुनठुनिया को एक सुंदर-सी घड़ी और पेन का सेट भेंट किया। फिर कहा, “ठुनठुनिया, जैसे ही तुम्हारे बारहवीं के इम्तिहान खत्म हों, अगले दिन मेरे पास आ जाना। मुझे फैक्टरी में तुम्हारे जैसे एक मेहनती और बुद्धिमान लड़के की जरूरत है।”

उस समारोह के लिए मंच-सज्जा और परदों के कपड़ों की रंगाई आदि का काम ठुनठुनिया ने इतने कलात्मक रूप से किया था कि आने वाले मेहमानों की आँखें बार-बार उन्हीं पर टिक जाती थीं। कुमार साहब ने भी उनकी खूब तारीफ की थी।...खूब! और उनकी पारखी निगाहों ने तभी ठुनठुनिया की ‘छिपी हुई कला’ को पहचान लिया था।