Tamacha - 9 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 9 (पागलपन)

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तमाचा - 9 (पागलपन)

"दिव्या भाभी! कमीने अभी तुम्हें ठिकाने लगाती हूँ।" दिव्या ने गुस्से भरे स्वर में राकेश को बोला। राकेश ने इसकी उम्मीद नहीं थी कि दिव्या उसकी सारी बाते सुन लेगी। उसकी सांस अधर में ही अटक गई। उसके शब्द गले से बाहर उतर ही नहीं पा रहे थे। परिस्थिति को देखते हुए मनोज बोला " सॉरी, सॉरी , सॉरी प्लीज इसकी तरफ से मैं माफी मांगता हूं।"
पर दिव्या का पूरा ध्यान राकेश पर ही था और उसने मनोज की बात को जैसे सुना ही नहीं।
"मैं अभी कॉल करती हूं पापा को और तुम्हारी खबर लेती हूँ।" दिव्या ने पर्स से अपना फ़ोन निकालते हुए बोला।
"हा बुला लो! पर गलती आपकी ही है । एक तो आप हो ही इतनी खूबसूरत ,ऊपर से आप मेरे पास आकर बैठ गयी।
फिर मुझ जैसे आदमी की नीयत खराब नहीं होगी तो क्या होगा ?" राकेश ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा।
कोई भी महिला हो अपनी तारीफ सुनकर कुछ इतरा अवश्य ही जाती है। दिव्या ने अपनी आवाज में क्रोध के साथ ही कुछ नरम पन लाते हुए कहा " तुम क्या सोचते हो यूं बाते बनाकर बच जाओगे? तुम्हें एक बार सबक तो सिखाना ही पड़ेगा ताकि कॉलेज में और कोई ऐसी हिम्मत न करें।"
"हाँ हाँ! सिखाओ न सबक ,तुम बड़े लोग हो, कुछ भी कर सकते हो । हम गरीब बेचारे किसी की खूबसूरती पर फ़िदा भी नहीं हो सकते। क्या करें ये मन है ही ऐसा । " राकेश अब अपने आपको को किसी मजनू की तरह समझकर बोल रहा था और मनोज कोहनी मारकर उसको चुप रहने की प्रार्थना कर रहा था। पर राकेश को रोकना अब ऐसा था जैसा फुल स्पीड से चल रही मोटरसाइकिल को पैरों से रोकना।
" पर फ़िदा होने से पहले पता होना चाहिए कि किस पर फ़िदा हो रहे हो। अपनी औकात से बाहर पैर नहीं फैलाने चाहिए । क्या तुमको ये बात पता नहीं है?"
"प्रेम कोई पैसा और पद देखकर थोड़ी होता है। बस हो जाता है।" राकेश ने फिर दिव्या को जवाब देते हुए कहा।
"अच्छा! अब बात प्रेम तक आ गई। तुम्हे होश भी है कि तुम क्या बोल रहे हो? या तुम्हें मरने का शौक है।"
" शौक तो मरने का किसे होता है , पर आप वैसे भी मारने वाले हो ही तो फिर कुछ तो नाम करके मरे।" राकेश अब अपने को पूरी तरह से हीरो समझते हुए बोला।
"अच्छा ! फिर तुम्हे आज का दिन देती हूं । हिम्मत हो तो कल कॉलेज आ के बताना। कल पहले पीरियड में क्लास में मिलते है । आ जाना । " दिव्या राकेश को डरा के गई या उसकी और आकर्षित हुयी। राकेश तो इसी कंफ्यूजन में उलझ गया। और मनोज तो बुरी तरह से डर ही गया था । अभी तक उसके रोंये कंपन कर रहे थे।
"ओके , जरूर कल मिलते है। " राकेश ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा।
तभी दिव्या तो वहाँ से चली गयी पर मनोज राकेश से कहने लगा " तू क्या पागल है पूरा ? तुझे भला पता भी है तूने क्या कहा है?"
"तू टेंशन मत ले यार! कुछ नहीं होगा। देखना वो तेरे भाई की फैन हो जाएगी।"
वो तुम्हारी फैन होगी या पता नहीं पर अगर तुम कल उससे मिले तो वो तुम्हें छत पर लगे फैन से लटका जरूर देगी।" मनोज ने फिर उसे डराने के उद्देश्य से कहा।
"देखेंगे फिर क्या होता है? कल की चिंता आज क्यों करें?" राकेश ने बेफिक्र होकर कहा।
" तुम्ही देखना फिर। मैं तुम्हारे इस झमेले में नहीं पड़ने वाला। आज से ही तुम्हारी राह अलग और मेरी अलग।" राकेश ने इस उम्मीद से ये कहा कि क्या पता दोस्ती की खातिर ये अपना आत्मघाती निर्णय बदल लें।
" अरे यार तू क्यों टेंशन ले रहा है। जो होगा देखा जाएगा। " फिर तुम ही देखना। मैं चलता हूँ।" यह कहकर मनोज वहाँ से चला गया।

क्रमशः.....