EXPRESSION in Hindi Poems by ADRIL books and stories PDF | अभिव्यक्ति.. - 7

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अभिव्यक्ति.. - 7

 

उसकी आवाज़

 

 प्यार चाहना उसके लिए ख्वाब बन कर रहे जाता था  

इज्जत की दुहाई दे वो अरमान मनमे ही रहे जाता था  

दुल्हन बनने का सपना उसका मिट्टी में मिल जाता था  

जिस्म बेचना ही उसके लिए रोजगार बन जाता था 

  

कोई अपने ही रिश्तेदारों का शिकार हो जाती थी 

कोई घर से भाग आती थी - तो कोई अगवा हो जाती थी 

कोई खरीदी जाती थी - तो कोई खुद बिक जाती थी 

शरीफों की बस्तीमे वो निलाम हो जाती थी 

 

बदनाम हो कर वो इस कदर खो जाती थी 

की - रातोको संवरना उसकी किस्मत हो जाती थी 

उसकी आवाज हजारो आवाजों में दबकर रहे जाती थी  

घर का रास्ता भूल कर वो बाजार में बस जाती थी    

 

हर रात उस औरत के किस्से बदल जाते थे

उसूल जो बनाये थे सारे खोखले हो जाते थे 

उसके जिस्म को लोग भेड़िये बनकर खा जाते थे 

उसके तेवर परवानो को हर रात काम आते थे 

 

उसका बदन उसके पेट की भूख को मिटाता था 

रूह को कूचलकर उसे जिस्म दिखाना पड़ता था 

सरका हुआ दुपट्टा उसका दामन पर दाग लगाता था  

और इज्जतदार इंसान उसको वेश्या कहकर बुलाता था   

 

नए नए परवाने उसकी जगह हर रोज बदलते थे 

कभी फार्महाउस तो कभी हॉटल के कमरों में ले जाते थे 

हुस्न की नुमाइश करके लोग बोली उसकी लगाते थे 

उसके जिस्म को बेचकर दलाल पैसे कमाते थे 

 

कभी नेता, कभी गुंडे कभी दोस्तों को बुलाते थे   

और उसी की खोली में सबकी महफिले सजाते थे  

जिस्म की कब्र में उसके जज्बात दफन हो जाते थे  

केमेरे में कैद करके उसके हूनर को दिखाते थे 

 

आंखोके अश्कों से वो सिंगार किये जाती थी 

जो उसको बिखेरता था वो उसीको जुनून दिखाती थी  

हर घंटे के हिसाब से वो बदनका दाम लगाती थी  

और अपनी आधी कमाई घर के बेटोको दे आती थी 

 

बेटों को पढ़ाने वो खुद फना हो जाती थी 

फिर भी घरवालों से वो बेटोंसा दुलार नहीं पाती थी  

घर के बेटे का करियर वो बनाती थी

अपने करियर में वो धंधेवाली कहलाती थी 

 

इज्जत के बाजार में वो खुदको बेचे जाती थी  

रूह तक जलाकर अपनी वो औरत मिट जाती थी  

हंसकर अपने आंसुओं से वो घर का चिराग जलाती थी  

अपने आपको सौगात बनाकर कुछ और ही बन जाती थी 

 

छत कहा होती है उसकी ? - मर्दो के बीचमे रहती है 

रिश्ते कहा बनते है उसके ? - वो तो कहानियों में होते है 

आवाज कहा होती है उसकी ? - आँखों से चीख़ निकलती है 

पहचान कहा होती है उसकी ? - वो तो रोज नाम बदलती है   

घर कहा जा सकती है वो ? - घर को रोज तरसती है 

नाम कहाँ होता है उसका ? - हर जगह बदनामी बरसती है 

प्यार कहा किस्मतमें उसकी ? - रूह भी गिरवी होती है 

फिरभी नयी सुबह के इन्तजार में वो,..  सन्नाटो मे  जलती है

 

मर्द हो या औरत हो, संसार पर तरस करो 

साफ सुथरे समाज पर अब थोडासा रहेम करो    

इंसान बनकर इंसानोका ट्राफ़िकिंग बंध करो

मंगल तक पहोंच चुके हो अब कुछ तो शर्म करो 

मिले नहीं है जो बिछडे हुए है, दर्द उनका कम करो   

बच्चे है जो कल की पीढ़ीके, उन केलिए कोई करम करो 

अच्छे बनकर दुसरोको बुरा बताना बंध करो 

खुद की नजरो से ही गिर जाओगे अबतो शर्म करो