Apathy in Hindi Poems by Hemlata Yadav books and stories PDF | वैराग

Featured Books
  • 99 का धर्म — 1 का भ्रम

    ९९ का धर्म — १ का भ्रमविज्ञान और वेदांत का संगम — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎...

  • Whispers In The Dark - 2

    शहर में दिन का उजाला था, लेकिन अजीब-सी खामोशी फैली हुई थी। अ...

  • Last Benchers - 3

    कुछ साल बीत चुके थे। राहुल अब अपने ऑफिस के काम में व्यस्त था...

  • सपनों का सौदा

    --- सपनों का सौदा (लेखक – विजय शर्मा एरी)रात का सन्नाटा पूरे...

  • The Risky Love - 25

    ... विवेक , मुझे बचाओ...."आखिर में इतना कहकर अदिति की आंखें...

Categories
Share

वैराग

 

वैराग

 

क्षणभंगुर नश्वर संसार

उत्पन्न करता मन में वैराग

मोह से मुक्ति का मोह

क्या नहीं यह प्रेम का ही राग?

 

अपेक्षाओं के प्रलोभनों में

यथार्थ के कोलाहल से

क्या संघर्ष समापन है वैराग?

सुख दुख के अनुपात में

अनुरागी मन का अध्यात्म से

क्या आत्म-आलिगंन है वैराग?

 

सुख यदि बढ़ाता फैलाव

होती उसमें भी   

वैराग की अनुभुति

दुख यदि बढ़ाता परिधि

गहराती इच्छा

मिले जीवन मुक्ति

पीड़ित, प्रताड़ित, तिरस्कृत

जीवन की विडंम्बनाओं से

क्या पूर्ण-निर्वासन है वैराग?

अथवा प्रफुल्ताओं के असीम आनंद

को कैद करना है वैराग?

 

क्या भ्रम है यह आकाश में

विधुत रेखा सा पल भर का?

क्या नहीं यह स्थाई सुर्यकिरण

करती प्रकाशित सकल संसार?

 

है वैरागी मन

व्याकुलता के सागर की

खारी, उफनती, सुरमयी लहर

लिए असंभव संभावना

चन्द्र स्पर्श को उठती गिरती

प्रत्येक चन्द्रोदय पहर,

प्राप्ति की तृप्ति है

जिज्ञासाओं का शमन

जीवन की गतिशीलता है

अतृप्त तृषित मन

 

वैराग तो है

आत्मा के एकांत से प्रेमराग

पूर्ण वैराग है छल

नहीं मानव के लिए शाश्वत

संभवतः है यह

ईश्वरीय शक्ति अटल   ( हेमलता यादव )

 

 

 

उधौ

 

अरे उधौ

जो इस बार जाओ गोकुल

कोई संदेशा लेकर

मूझे भी साथ ले चलना

लालचवश चली आई थी

मथुरा नगरी में

सखा कान्हा के पदचाप

नापते हुए

 

लेकिन जो नगर में मिले

वो गोकुल के सखा ना थे

महाराज कृष्ण थे महाभारत की

राजनीती में उलझे हुए

 

मुझे ले चलो उधौ

इस भावना रहित नगरी से दूर  

ले चलो गोकुल धाम

संयोग इतना आत्मीय न था

जितना वियोग में कान्हा से

मिलन की कल्पना 

 

ले चलो उधौ

वियोग के आनंद की ओर

जहाँ कम से कम

उम्मीद मिले

सखा कान्हा के

लौटने की

 

 ( हेमलता यादव ) 

 

 

 

          अधुरा इतिहास

 

पीढ़ी दर पीढ़ी का इतिहास

राजमहलो, हवेलियो में

भटकता रहा

नहीं दर्ज करा पाया

गाँव के रोजमर्रा की जिजीविषा

चुल्हो की अंगार,

नगरों में घुटनो के बल झुके

आमजन का प्रशस्तिगान

नहीं मिला पत्थरों पर उकेरा हुआ,

 

असंख्य भावपूर्ण मधुर या

हृदय विदारक प्रेम गाथायें

मिल गई धूल में जबतक

के लिखी गई मुट्टीभर

शासको की रास लीलाएँ

कितने जुगनू रोशन हो बुझ

गये अनाम अतीत के पन्नो में

बिना दर्ज हुए 

कौन कहता है हमारा इतिहास

बहुत विस्तृत है

यह मुट्टी भर दस्तानों से अधिक नहीं

 

          शहर की साँझ

 

            थकी हारी उदास साँझ

पेड़ो की कोमल फुनगी का  

खोज रही शीतल स्पर्श

कि साँझ के तलवे चटक गये

ऊँची बिल्डिंगो की गर्म मुंडेरो पर

 

थकी हारी उदास साँझ

अटक गई दूर तक खिंचे

बिजली के कंपित तारों में

कि साँझ परस्त हो खो गई

शहर की चकाचोंध रौशनी में

 

थकी हारी उदास साँझ

राह देखती, राह भूले पंछियों का

अरसा हुआ नहीं लौटे इस शहर में

कि साँझ का बोझिल मन अब

भूले बिसरो से बतियाने का हुआ है

 ( हेमलता यादव )

 

 

  कागज की नाव

 

बाहर आओ देखो

कितनी बारिश हुई  

ख़ुशी से पुकारा उसने

अपने बच्चे को

 

उफ्फ   .... पापा

गेम के फोर्थ लेवल पर हूँ

स्कोर बढ़ रहा है  

 

बच्चा मोबाइल में गुम,

पिता कागज की नाव लिए

पानी में खड़ा है

 ( हेमलता यादव )