Atit ke panne - 32 in Hindi Fiction Stories by RACHNA ROY books and stories PDF | अतीत के पन्ने - भाग 32

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अतीत के पन्ने - भाग 32

आज एक महीने बीत गए पर पिया अभी तक खुद को सम्हाल नहीं पाईं और आलेख भी कहां हिम्मत हारने वाला था उसको तो पिया को वो सब खुशी लौटाना चाहता था जिसे पिया सब कुछ गंवा चुकी थी।
आलेख हर रोज कालेज जाने से पहले पिया से मिलने आता और फिर साथ ही पीले गुलाब की गुलदस्ता देकर उसे अपने प्यार का इजहार करता।
पिया ने कहा हर रोज तुम ये फुल क्यों लाते हो? अगले दिन तो मुरझा जाते हैं ये।।
आलेख ने कहा अरे तो क्या हुआ अगर मैं ये गुलदस्ता खरीद कर किसी को दो वक्त की रोटी मिल रहा है तो क्या बुराई है हर एक काली रात के बाद एक सुनहरी धूप भी तो आती है और क्या पता किसी की दुआ भी लग रही है शायद मैं तुम्हें खुश न कर पा रहा हूं पर किसी के घर चूल्हा तो जल रहा है।।।
पिया ने कहा हां ये तो अच्छी बात है फिर तुम रोज गुलाब लाया करो।
आलेख ने कहा हां, जरूर पर क्या अब तक तुम कालेज नहीं जाओगी?
पढ़ाई तो पुरी करनी चाहिए?
पिया ने कहा नहीं, नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती हूं सब मुझे मनहूस कहेंगे।
आलेख ने कहा अरे बाबा सोच मनहूस होता है इन्सान नहीं!इतनी सी बात तुम नहीं समझ पाई।।
पिया ने कहा अरे तुम जाओ वरना बस मिस हो जाएगी।
आलेख ने कहा हां ठीक है पर!
आलेख भी बिना बोले ही निकल गया।
बस में बैठ कर सोचने लगा कि कैसे पिया को मैं वापस लाऊ। छोटी मां जब आपकी सबसे ज्यादा जरूरत है तब आप नहीं है।।आपके जाने के बाद ज़िंदगी थम सी गई थी पर पिया के आने के बाद सब कुछ बदल चुका था मुझे लगा था कि आप मुझे वापस मिल गई पर दूसरे रूप में।।
पिया को मैं खो नहीं सकता।।
फिर मेडिकल कॉलेज पहुंच कर सबसे पहले लैब में चला गया।
अरे आलेख पिया आज भी नहीं आईं?
आलेख ने कहा नहीं।
तो क्या वो इस बार एक्जाम नहीं देगी।
आलेख ने कहा पता नहीं कुछ।।
आलेख का भी मन नहीं लग रहा था।
किसी तरह कालेज करने के बाद हवेली लौट आए।
आलोक ने देखते ही कहा अरे बेटा क्या बात है?
आलेख ने पुरी बात बताई।।
आलोक ने कहा मेरी एक मुंह बोली बहन है वो दिमाग की डाक्टर है।
चलो एक बार बात करता हूं।
आलेख ने सर हिलाया और अपने कमरे में चला गया।


आलेख ने कहा हां ठीक है मुझे किसी भी तरह से ठीक करना होगा उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।
फिर इस तरह से एक महीने बाद ही आलोक ने अपनी बहन डाक्टर गीता को बुला लिया।
गीता ने आते ही कहा भाई आज बरसों बाद ही आप ने आखिर अपनी बहन को कुछ करने का मौका दिया आज मैं जो कुछ भी हुं वो आप की वजह से हुं।
आलोक ने कहा हां, ठीक है ये आलेख है मेरा बेटा।
आलेख ने पैर छुए।
गीता ने कहा अरे बेटा इतने परेशान मत हो।
चलो बैठ कर बातें करे।
छाया ने जल्दी से चाय नाश्ता लगा दिया।
फिर आलेख ने पुरी बात बताई।
गीता ने कहा ओह ओह बहुत बुरा हुआ पिया के साथ और वो अभी तक उस सदमे से बाहर नहीं आ पाई क्योंकि उसके मन से वह काली रात नहीं निकली है पर डरने की बात नहीं मैं सब कुछ ठीक कर दुगी।
आलेख रोने लगा।।
गीता ने कहा मुझे गर्व है बेटा कि तुमने उसका साथ नहीं छोड़ा।
दूसरे दिन सुबह आलोक ने जतिन को फोन करके सब बताया।
जतिन ने हामी भर दी।
फिर सब हवेली से निकल कर सीधे पिया के घर पहुंच गए।
गीता ने पिया के घर पहुंच कर ही कहा कि वो पिया से मिलना चाहती है।
आलेख ही गीता को पिया के रूम में लेकर गया।
गीता ने देखा कि सब कुछ इधर उधर बिखरे हुए पड़े थे।गुलाब के फुल भी सुख चुके थे।
पिया पलंग पर बैठी थी।
गीता ने कहा अरे वाह कितने प्यारे और खुशबूदार फुल।
किसको गुलाब पसंद है?
पिया ने कहा मुझे।
गीता ने कहा अरे वाह मुझे भी!
पिया ये सुनकर उठकर बैठ गई और फिर बोली आप कौन?
गीता ने कहा अरे मैं तो आलेख की बुआ पर तुम्हारी दोस्त हूं!
पिया ने कहा दोस्त!
गीता ने कहा हां, मैं दोस्ती करना चाहती हुं।
पिया ने कहा पर क्यों?
गीता ने कहा अरे मुझे अच्छी लगती हो तुम और हम दोनों एक दूसरे से बातें कर सकते हैं अपनी अपनी इच्छा, रूचि के बारे में।।
पिया आश्चर्य से देखने लगी।
क्रमशः