Yugantar - 16 in Hindi Moral Stories by Dr Dilbagh Virk books and stories PDF | युगांतर - भाग 16

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युगांतर - भाग 16

यह दिल भी न जाने कैसी चीज है, जो पहले गलतियाँ करवाता है और गलती हो जाने पर परिणाम का डर दिखा-दिखाकर सताता है। यादवेन्द्र भी इस दिल का शिकार है। शांति उसके पास चलकर ख़ुद आई थी और वह उसको सिर्फ मन बहलावे का साधन मानता था। दिमाग के अनुसार ऐसे लोगों के बारे में ज्यादा सोचना ठीक नहीं होता, लेकिन दिल तो दिल होता है और दिल कह रहा है कि जिसके साथ इतना समय गुजारा हो, जो उसकी खुशी का कारण रहा हो, उसे ऐसे ही कैसे छोड़ा जा सकता है। उसे शांति की चिंता सताती है। जिला मुख्यालय पर भेजना उसे हल दिखा, फिर भी वह निश्चिंत नहीं हो पाया। दिमाग के अनुसार मौजूदा हालातों को देखते हुए शांति को मंत्री जी के फॉर्म हाउस पर भेजना सही फैसला है, इससे उसने शांति को भी बदनाम होने से बचा लिया है और खुद को भी संकट से उबार लिया है, भले ही संकट पूरी तरह से टला नहीं था। बच्चे के पैदा होने के बाद बच्चे का क्या होगा, इसकी चिंता उसको सताती है। अपने खून को अनजान हाथों में सौंपना वह भी नहीं चाहता था और घर ले जाना भी संभव नहीं, क्योंकि बच्चे को घर ले जाने का अर्थ है, अपनी जमी-जमाई गृहस्थी को खतरे में डालना। अगर रमन को जरा सा भी शक हो गया तो उसकी गृहस्थी चौपट हो जाएगी। यादवेन्द्र को कुछ नहीं सूझ रहा है कि किधर जाए, किधर न जाए, वह तो तूफान में घिरी कश्ती की भाँति समय रूपी लहरों के थपेड़े खा रहा है और भाग्य के सहारे सब कुछ छोड़े बैठा है। शायद सब ठीक हो जाए यही एक उम्मीद शेष है, मगर उम्मीद अक्सर निराशा से कमजोर होती है। यादवेंद्र के साथ भी यही हो रहा है। आशा का सूरज निराशा के बादलों से बाहर आ ही नहीं पाता। उसके दिल का चोर उसे उम्मीदों का सहारा पकड़ने नहीं देता। निराशा की खुफिया पुलिस उसके पीछे पड़ी हुई है, जिससे घर-बाहर हर जगह, हर अवसर पर उदासी, परेशानी उसे घेरे रहती है। वह यह सोचकर भी चिंतित हो जाता है कि शांति की धमकी को पूरी तरह से खारिज करना उसकी समझदारी नहीं थी, क्योंकि इसके परिणाम भयानक हो सकते थे। यूँ तो उसने कहा था कि कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, क्योंकि राजनीति के हमाम में सब नंगे हैं, लेकिन वह यह भी जानता था कि जो पकड़ा जाए, वही चोर होता है। विरोधी पार्टी वाले इस बात को लेकर हो-हल्ला कर सकते थे। यदि दिन चुनावों के दिन होते तो ज़रूर ऐसा ही होता। इस समय हो-हल्ले का कोई खास फ़ायदा नहीं था, ऊपर से मंत्री जी के उनके साथ होने ने विरोधियों को चुप रहने पर मजबूर किया होगा, ऐसा ख्याल आते ही वह खुद को भाग्यशाली समझने लगता था कि धमकी से न घबराने की रणनीति सफल रही और इसी से आशा की किरण पुनः चमकती दिखती कि जब पहले सब ठीक हो गया, तो अब भी हो जाएगा।
दूसरी तरफ शांति मंत्री जी के फॉर्म हाउस में कैद होकर भी खुद को कैदी अनुभव नहीं कर रही थी क्योंकि एक तो उसके लिए हर प्रकार की सुविधा थी, दूसरा भावी बच्चे के सुन्दर सपनों में खोए रहती। माँ बनने का ख्याल उसे रोमांचित कर रहा था। जब कभी वह भविष्य के बारे में सोचती तो उसे लगता था कि जिला मुख्यालय पर जाकर काम करना बड़े नेताओं के सम्पर्क में आने का अवसर प्रदान करेगा, जिससे उसके करियर को नई उड़ान मिलेगी। हाँ, कभी-कभार बच्चे की चिंता उसे सताती थी। कैसे दूर कर पाएगी वह खुद को। हालाँकि बच्चे के भविष्य के प्रति वह निश्चिंत थी क्योंकि उसे लगता था कि यादवेंद्र अपनी औलाद के लिए तो कुछ-न-कुछ करेगा ही।
समय पंख लगाए उड़ रहा था और डिलीवरी का समय भी आ गया। शांति ने फूल सी कोमल बच्ची को जन्म दिया। यूँ तो छोटे बच्चे का चेहरा किस पर गया है, यह सटीकता के साथ नहीं कहा जा सकता, लेकिन चोर को हर कोई पुलिसकर्मी नज़र आता है। यादवेन्द्र-शांति दोनों को लग रहा है कि बच्ची की शक्ल हू-ब-हू यादवेन्द्र जैसी है। वही गोल सा चेहरा, तीखी नाख और पतले गुलाब की पंखुड़ियों से जैसे होंठ। यादवेन्द्र तो उसे देखकर एक क्षण के लिए यह भी भूल जाता है कि यह खतरे की घंटी है। शांति भी इसे पाकर अपने सारे ग़म, सारी चिंताएँ ऐसे ही भूल जाती है, जैसे कोई छोटा बच्चा नया खिलौना पाकर न सिर्फ पुराने खिलानों को, बल्कि एक क्षण के लिए तो अपने माँ-बाप को भी भूल जाता है।
उसका राज़ अगर राज़ न रह पाया तो उसकी हालत क्या होगी, इसकी भी उसे कोई चिंता नहीं थी और न ही ऐसा सोचने का उसके पास वक्त था। अब उसका अपना संसार है जिसमें सिर्फ दो ही लोग हैं एक वह खुद और दूसरी उसकी बेटी रश्मि, जो सूर्य की किरण जैसी पवित्र और उज्ज्वल है। यादवेन्द्र को भी उनके संसार में स्थान मिल सकता है, मगर वह स्वयं इसमें जाना नहीं चाहता। शांति को अभी कम-से-कम तीन मास यहाँ और बिताने हैं। बेटी के पैदा होते ही यादवेंद्र की चिंता बढ़ गई है। वह भी अब बेटी को अनजान हाथों में सौंपना नहीं चाहता, लेकिन रमन को वह कैसे मनाए, इसके लिए उसने योजनाएँ बनानी शुरू कर दी है। वह खुद योजना बनाता है और खुद ही खारिज कर देता है। वह संदेह-प्रूफ योजना चाहता है, जिससे रमन को लेशमात्र भी शक न हो, लेकिन यादवेंद्र को अपनी हर योजना में कुछ-न-कुछ कमी दिख जाती है और वह फिर नए सिरे से सोचना शुरू कर देता है।
क्रमशः