Who is to blame for children's dependence on mobile phones? in Hindi Philosophy by Sudhir Srivastava books and stories PDF | मोबाइल पर बच्चों की निर्भरता दोषी कौन

Featured Books
  • بےنی اور شکرو

    بےنی اور شکرو  بےنی، ایک ننھی سی بکری، اپنی ماں سے بچھڑ چکی...

  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

Categories
Share

मोबाइल पर बच्चों की निर्भरता दोषी कौन

लघु लेख
मोबाइल पर बच्चों की निर्भरता: दोषी कौन?
***************
आज हमारे घर परिवार में एक बड़ी समस्या भविष्य की चुनौती बनने की दिशा में तेजी से पांव पसारती जा रही है। इसके लिए किसी को दोषी मानने के बजाय हर किसी जिम्मेदार नागरिक को सजगता की जरूरत है, माता पिता और परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को इस दिशा में स्वयं अनुशासित होने की जरूरत है। अति आवश्यक जरूरतों के अलावा क्वालिटी टाइम बच्चों के लिए ही नहीं अपने लिए भी निकालना होगा, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रहने के लिए हमें संकल्पित होना होगा और अपने व अपने बच्चों को पर्याप्त समय देना होगा।
यह सही है कि आज मोबाइल पर हर किसी की दैनिक कामों को लेकर निर्भरता बढ़ती जा रहा है, लेकिन उसमें सामंजस्य बैठाना भी तो हमारा ही दायित्व है। क्या जब हम बीमार होते हैं तब इलाज नहीं कराते, डाक्टर को दिखाने नहीं जाते, अस्पताल में भर्ती नहीं होते या आपरेशन नहीं कराते। शादी ब्याह न अन्यान्य आयोजनों की जिम्मेदारी नहीं उठाते। आखिर तब तो हम मोबाइल से अधिकांश वक्त दूरी बनाए रखते हैं। भले ही मजबूरी में ही सही। और बहाना होता है व्यस्तता। बस इसी व्यस्तता को हमें अपने दैनिक जीवन में शामिल करना होगा। जब हम खुद मोबाइल से फासला बना कर चलेंगे तो अपने और अपने बच्चों, परिवार को समय देंगे। अपने को अन्य गतिविधियों में लगायेगे, कुछ नया करने का प्रयास करेंगे, खुद के साथ बच्चे और अन्य को भी उसमें शामिल कर पायेंगे, कुछ नया करने का प्रयास करेंगे, कुछ न कुछ नया सीखेंगे, या नया करने के लिए प्रेरित होंगे।अपने अंदर के जुनून को निखारने का अवसर पायेंगे। अपने को जब हम मोबाइल से अलग रखकर व्यस्त रहेंगे, ऐसे में हमारे बच्चे भी उसका अनुसरण करेंगे।
होता यह है कि हम अपने मजे, टाइमपास, लाइक, कमेंट और फालोवर्स के लिए भी मोबाइल में उलझे रहते हैं, जिसका हमारे या हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में कोई लाभ नहीं होता, उल्टे हम अपने बच्चों, परिवार या समाज को समय ही नहीं दे पाते हैं और फिर दोषी भी उन्हें ही मानते हैं। उनके साथ न खेलते, कूदते हैं, न संवाद करते हैं, न कुछ और सिखाते हैं नहीं कहानी कविता सुनते सुनाते हैं और न ही अख़बार पत्र पत्रिकाओं में रुचि दिखाते हैं, न बागवानी, कलाया कुछ ऐसा करने का प्रयास करते हैं जिसका अनुसरण बच्चे कर सके, बस बहाना बहाना और बहाना।
हमारे अपने ही बच्चों का बचपन छिन नहीं रहा है, हम खुद ही छीन कर उन्हें आधुनिक रूप से परिपक्व बनाने पर आमादा हैं। ईमानदारी से कहा जाय तो क्या हम इस वास्तविकता को नकारने की हिम्मत रखते हैं कि हम ही उनका बालपन छीनकर को बर्बाद करने के दोषी हैं और तब भी वो ही दोषी जिद्दी लगता है।
समस्या का समाधान हमारे ही पास है और समस्या के लिए सर्वाधिक दोषी हम हैं, समस्या को नासूर बनाने की दिशा में हमारा योगदान कम नहीं है और हम पल्ला झाड़ कर अलग नहीं हो सकते, क्योंकि इसके दुष्प्रभाव का परिणाम हमें भी झेलना है।
अच्छा है और जरुरत भी है, अभी तुरंत जाग जाने की वरना बहुत देर हो जायेगी और हम आप सब हाथ मलते रह जायेंगे?
उदाहरण के उदाहरण हम सब रोज बन रहे हैं, किसी के पास अपने और अपनों के लिए भी समय नहीं है, एक घर, एक परिवार, एक कमरे में साथ साथ/आमने सामने आसपास रहते हुए भी हम सब बहुत दूर होते जा रहे हैं। और अपेक्षाओं का बोझ बच्चों के कंधों पर धकेलने का अक्षम्य अपराध कर मुस्कुरा रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश