Towards the Light – Memoir in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

Featured Books
  • Fatty to Transfer Thin in Time Travel - 13

    Hello guys God bless you  Let's start it...कार्तिक ने रश...

  • Chai ki Pyali - 1

    Part: 1अर्णव शर्मा, एक आम सा सीधा सादा लड़का, एक ऑफिस मे काम...

  • हालात का सहारा

    भूमिका कहते हैं कि इंसान अपनी किस्मत खुद बनाता है, लेकिन अगर...

  • Dastane - ishq - 4

    उन सबको देखकर लड़के ने पूछा की क्या वो सब अब तैयार है तो उन...

  • हर कदम एक नई जंग है - 1

    टाइटल: हर कदम एक नई जंग है अर्थ: यह टाइटल जीवन की उन कठिनाइय...

Categories
Share

उजाले की ओर –संस्मरण

मानसिक संत्रास की परिधि में पीढ़ियाँ !!

=========================

स्नेहिल मित्रों

नमस्कार

अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यान माला, उज्जैन में मुझे आमंत्रित किया गया था | जिसके विषय का चयन भी मुझ पर छोड़ दिया गया था |पहले महिलाओं की मानसिक संत्रास की बात की गई थी किन्तु मुझे यह अहसास हुआ कि

मन व तन की स्वस्थता पुरुष अथवा स्त्री सबके लिए आवश्यक है।

मेरा यह व्याख्यान उज्जैन की प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाने वाली व्याख्यान श्रृंखला में सम्मिलित है। जिसे व्याख्यान हाल में उपस्थित विद्वानों द्वारा सराहना प्राप्त हुई। उज्जैन के अनेक समाचार पत्रों ने मेरे वाक्य की हैडलाइन से इसे प्रकाशित किया। मैं सभी के प्रति विनम्र धन्यवाद अर्पित करती हूँ।

इस व्याख्यान के अंश आप सब मित्रों से साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पाई। अत: कुछ अंश प्रस्तुत कर रही हूँ।

सभी मित्रों का स्नेहिल स्वागत करते हुए मैं कुछ बात मानसिक स्थिति को केंद्र में लेकर करना चाहती हूँ |

अभी तक के अनुभवों से यह स्पष्ट हुआ है कि यदि मन स्वस्थ्य है तो तन को भी स्वस्थ्य रखने में सहायक सिद्ध हो सकता है | मन की पीड़ा मनुष्य को भीतर-बाहर दोनों ओर से पीड़ित रखती है | देखा जाए तो तन का स्वस्थ्य रहना बहुत ही महत्वपूर्ण है किन्तु यदि मन अस्वस्थ हो गया तब पूरा वातावरण अस्वस्थ होने की आशंका रहती है |

भारतीय सभ्यता, संस्कृति, सरकारी-गैर सरकारी योजनाएं, जीवन की असफलता, डिप्रेशन, सुसाइड कर, बच्चों पर आधुनिक तकनीक का प्रभाव, असुरक्षा की भावना, आरक्षण के बावज़ूद भी महिलाओं को कम पेमेंट्स मिलने आदि बहुत से कारण इस मानसिक तनाव के ज़िम्मेदार हैं।

मानसिक स्वास्थ्य, अकेलापन, वैवाहिक मतभेद आदि भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

हम सब इस बात से परिचित हैं कि हमारे देश की सभ्यता व संस्कृति इतनी समृद्ध है | हमें इस बात पर गर्व है कि हम उस देश में जन्में हैं जहाँगार्गी, लोपमुद्रा, अपाला रत्नावली, देवमाता अदिति जैसी महिला-रत्नों ने जन्म लिया है | उनकी स्थिति सम्मानीय थी, उन्हें ऋषियो के समान ही योग्यता हासिल थी, धार्मिक अनुष्ठानों में ससम्मान उपस्थित होने का अधिकार था | तात्पर्य है कि उस युग में महिलाओं की स्थिति प्रत्येक मोड़ पर सुदृढ़ थी, उनका पुरुष की भाँति ही सम्मान था |

लेकिन मुगल शासन के दौरान महिलाओं की स्थिति में बहुत परिवर्तन आया | राजनैतिक परिस्थितियों ने महिला को कैद कर लिया व पर्दा प्रथा के सुपुर्द कर दिया | वैसे तो यह परंपरा अनुशासन व सम्मान की प्रतीक समझी जा सकती थी लेकिन जब इसके माध्यम से अत्याचारों का सिलसिला शुरू हुआ तब महिलाओं ने बहुत लंबे समय तक कष्ट भोगा | एक लंबे समय तक कन्या को अस्वीकार करने की बात समाज के मन में बनी रही | स्वाभाविक ही था कि राजनैतिक व सामाजिक कारणों ने महिला को यह सोचने के लिए विवश कर दिया कि उसका अस्तित्व केवल परिवार की आया व पति की गुलाम व हमबिस्तर बनने के लिए ही है?

हम सब इस बात से भी वकिफ़ हैं 'शिक्षित स्त्री के बिना शिक्षित समाज शिक्षित नहीं हो सकता | बच्चे की पहली शिक्षिका उसकी माँ ही है | स्त्री ही सृजन की शक्ति है, पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली महिलाओं को मध्ययुगीन काल में काफ़ी कष्ट उठाने पड़े, उन्हें निम्न स्तरीय जीवन जीने के लिए बाध्य होना पड़ा लेकिन उसके साथ ही उसी समय कई सुधारकों ने महिला व पुरुष के समान अधिकारों को बढ़ावा दिया और महिला में एक स्वाभिमानी जीवन जीने का नया मार्ग दिखाया यानि कहा जा सकता है कि महिलाओं के लिए वह मार्ग जो पर्दों में बंद हो चुका था पुन:एक बार अंधकार से प्रकाश कीओर आया | इसके लिए महिलाओं ने अपने अस्तित्व के लिए कड़े प्रयत्न किए और उनको साथ दिया समाज के चैतन्य उन पुरुषों ने जो महिला की आंतरिक शक्ति को बाहर लाना चाहते थे, उन्हें फिर से आदर, सम्मान देना चाहते थे और यह बहुत स्वाभाविक सी बात है कि समाज के ढांचे को बदलने के लिए, पुन:सम्मान व आदर के लिए महिलाओं ने कड़े प्रयत्न किए और सफलता भी पाई |

सरकार द्वारा भी महिलाओं को आरक्षण दिया गया, विभिन्न क्षेत्रों में छूट दी गई, योजनाएं बनाई गईं, अदालत से भी उन्हें काफ़ी छूट मिलीं | अच्छी बात है लेकिन मुझे परेशानी इस बात से हुई अथवा मेरे जैसों को इस बात से कष्ट हुआ कि इतनी सुविधाओं के पश्चात जब चीजें अर्थात संबंधों में दरार आने लगी, मानसिक त्रास होने लगे | परिस्थितियाँ सुधरने के स्थान पर और पीड़ादायक होने लगीं |

सरकारी, गैर-सरकारी योजनाएं

=====================

वैसे देखा जाए तो न जाने महिलाओं के लिए कितनी योजनाएं चल रही है, सरकारी, गैर सरकारी एंजिओज काम कर रहे हैं | जहाँ तक स्त्री शिक्षा का प्रश्न समक्ष आया और स्त्रियों को सहायता मिली यदि पुरुषों और स्त्रियों में से केवल किसी एक के लिए सामान्य शिक्षा का प्रावधान करना हो तो यह अवसर स्त्रियों को दिया जाना चाहिए इससे अगली पीढ़ी को स्वयं ही शिक्षा प्राप्त हो जाएगी --- यह पं जवाहरलाल नेहरू ने कहा था और स्वामी विवेकानंद ने पूरे राष्ट्र की शिक्षा पर बल दिया था जिसमें स्त्री पुरुष दोनों सम्मिलित हैं बल्कि अब थर्ड जाति को भी पठन पाठन का अधिकार कानूनन प्राप्त हो गया है। यह सब प्रगति के चिन्ह हैं।

हम सब खुली आँखों से देख रहे हैं, महसूस कर रहे हैं कि बदलाव कितनी शीघ्रता से हो रहा है | यह बदलाव केवल एक स्थान पर नहीं किन्तु सम्पूर्ण विश्व में है और प्रकृति से लेकर मनुष्य-मन की भीतरी सतहों पर है |

प्रकृति का नियम है बदलाव, न तो इसमें कोई आश्चर्य है और न ही बुराई किन्तु देखना यह है कि ये बदलाव आज हमें नकारात्मकता की ओर ले जाते हैं तो कभी सकारात्मकता की ओर | यह व्यक्तिगत रूप से सोचने की बात है कि ऐसी स्थिति में महिलाओं व पुरुष का क्या रोल होना चाहिए ?

कई बार ऐसा भी होता है कि हमारे पास चोयस होती है कि हम स्वयं को किस दिशा की ओर ले जाएं किन्तु वातावरण के व अपनी सोच के कारण हम गलत रास्ते पर चल देते हैं और नकारात्मकता ओढ़ बैठते हैं|

मैंने अपनी उम्र में चार पीढ़ियाँ देखी हैं और बहुत शिक्षित पीढ़ियाँ देखी हैं अत:संभवत:मैं उस वास्तविक चित्र से दूर रही हूँ | लेकिन मुझे कष्ट होता है जब आज के युवाओं मानसिक रूप से संत्रास झेलते हुए देखती हूँ | रिश्तों में से विश्वास उठता जा रहा है, जो माता-पिता से बच्चों के मानस पर प्रभाव डाल रहा है | भय इस बात का है कि आज नारी स्वतंत्र हो गई है बेशक वह अपने लिए कितने ही युद्ध करके हुई हो लेकिन वह सहज नहीं है और न ही सहज रह पा रहे हैं उनके सहयोगी, उनके पति, उनके साथी | स्वतंत्रता मिली है लेकिन किन शर्तों पर?

मानसिक बदलाव महिला -पुरुष दोनों पर मीडिया का प्रभाव

==========================

लेकिन बदलावों की इस शृंखला में मुझे कई बातों पर सोचने के लिए विवश होना पड़ा जो शायद मुझे अपने लेखन की दृष्टि से भी जरूरी महसूस हुआ |

महिला की मानसिकता का समाज पर प्रभाव अथवा समाज की मानसिकता का महिला पर प्रभाव दोनों का एक-दूसरे पर सहज प्रभाव पड़ना ही है | आज महिला की सफलता पर सबको गर्व है लेकिन जो मानसिक त्रास बढ़त जा रहा है, वह बहुत चिंताजनक है |

मैं स्वयं एक महिला होने के नाते इस बारे में बहुत सचेत व आनंदित हूँ कि आज महिला अपने बंधनों को तोड़कर आगे बढ़ी है |कोई भी विषय या क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें आज महिला का पदार्पण नहीं है |

बहुत अच्छी बात है कि सरकार की कई समृद्ध योजनाएं भी महिलाओं के उत्थान के लिए कार्यरत हैं |अब उनका लाभ किस प्रकार उठाया जा सकता है, यह सबका अपना व्यक्तिगत चिंतन व कार्यप्रणाली हो सकती है |

कुछ ऐसी बातें मुझे चिंतन के लिए बाध्य करती हैं कि महिलाएं शरीर से ही नहीं मानसिक रूप से भी किसी न किसी वृत्त में रही हैं और आज भी हैं | यह अलग बात है कि उनके परिवेश में बदलाव हुए हैं व हो रहे हैं |

इतिहास के पृष्ठ पलटकर देखने से हम जानते हैं कि समाज में स्त्रियों पर किस प्रकार का बदलाव हुआ ?हम पीछे इसकी सूक्ष्म चर्चा कर चुके हैं |

अदालत के द्वारा अथवा सरकार के द्वारा सुविधाएं दी गई हों या दी जा रही हों उनकी उपयोगिता जब तक न हो मेरे अनुसार सब व्यर्थ ही हो जाती हैं जब तक संतुलन व्यवहार न हो |

कोई भी कार्य न तो बिना सचेतन मस्तिष्क के सही मार्ग पर ले जाया जा सकता है, न ही उसके बिना उनका अपना जीवन ही सरल, सहज हो सकता है |

महिला पुरुष की भाँति ही समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है।आज उसके जीने का तरीका और सलीका बदला है, अच्छी बात है लेकिन जहाँ तक हमारे भारतीय समाज की बात है क्या प्राचीन काल में स्त्री की स्थिति समाज में बेहतर व उच्च नहीं थी ?

 

प्रकृति का परिवर्तन

=================

परिवर्तन प्रकृति का नियम है अत:जब प्रकृति में बदलाव आता है तो स्वाभाविक है कि हमारे व्यवहार में बदलाव आएगा | प्रकृति से जुड़े हुए स्त्री-पुरुष दोनों ही है अत:उससे बच निकलना संभव नहीं | यह तो हुए प्राकृतिक कारण लेकिन जब हम प्रभाव से इतने बदलने लगते हैं तब हमारे हम की भावना कहीं पर हमें हीनता की ओर ले जाती है | जब स्त्री पर प्रहार होने लगा, उसे पैर की जूती समझा जाने लगा तब भी उसने सहन किया क्योंकि उसके पास कोई चारा ही नहीं था |वह सहती गई लेकिन अधिक बोझ होने के कारण जैसे धरती फटने लगती है, इसी प्रकार से स्त्री के मन की परतें उधड़ने लगीं और उसके मन ने विद्रोह शुरू किया | जैसे तैसे उसने समाज में अपना स्थान बनाने के लिए युद्ध किया उसे बहुत सी परेशानियों का जमकर विरोध करना पड़ा |

इसमें भी कोई बात नहीं, स्त्री ने धीरे धीरे समाज में अपना स्थान बनाया, यह बहुत अच्छा था, वह समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है और अपने अधिकारों को लेना उसका अधिकार था | लेकिन उसके जीवन को जीने का उसका अपना अधिकार है। ज़बर्दस्ती का व्यवहार क्यों? यह प्रश्न सदियों से कचोटता रहा है |

स्वतंत्रता व स्वच्छंदता में अंतर

====================

आज महिला स्वावलंबी है, उसे बहुत सी सुविधाएं हैं लेकिन उस स्वतंत्रता को यदि स्वच्छंदता में देखना कष्टकर है | महिलाओं को स्वतंत्रता लेकिन जब वह उश्रंखलता में परिवर्तित हो तब उसका परिणाम परिवार व समाज पर? हम दोहरे मापदंड जब पुरुष के लिए ठीक नहीं मानते हैं तो स्त्री के लिए क्यों?

परेशानी यहाँ तक हुई कि स्त्री ने बिना सोचे-समझे अपनी स्वतंत्रता को शृंखलता में परिवर्तित होने दिया }पुरुष ने स्वतंत्रता देकर स्त्री पर अहसान किया और स्त्री ने सोच कि जब इतने वर्षों तक पुरुष ने उबके ऊपर राज किट है तो अब उनकी बारी है | इस सोच से दोनों का दम घुटने लगा और उसने जैसे बदला लेने का मन बना लिया जिससे परेशानियां बढ़ती गईं |

एक बार बरोड़ा में व्याख्यान के लिए जाने का अवसर प्राप्त हुआ वहाँ किसी महिला ने व्याख्यान में जब इस बात का उल्लेख किया कि जब परूषों ने स्त्रियों पर इतना अत्याचार किया तब यदि हम उन पर कुछ ऐसा अत्याचार करते हैं तो इसमें क्या गलत है ? कहाँ गलत है ? मुझे इस बात ने झँझोड़ दिया | क्या हम बदला लेने के लिए शिक्षा, स्वतंत्रता और अहं के लिए अपनी स्त्री जाति को तैयार कर रहे हैं ? क्या बदला लेने से परिस्थितियों में बदलाव आ सकेगा ?

इन सब बातों का परिणाम यह होने लगा कि महिला को जो छूट दी गईं उनका दुरुपयोग होने से परिस्थियाँ और भी बिगड़ने लगी | परिवारों का विघटन तो पहले ही शुरू हो चुका था |

परिवारों में जहाँ एक प्रोटेक्शन था, एक दूसरे के लिए परवाह थी वह समाप्त होने लगा और एक अभिमान का मुखौटा चढ़ने लगा |

परिवार बने लेकिन एक-दूसरे की परवाह कम होने से सम्मान में कमी आने लगी |संयुक्त परिवारों पर तो पहले से ही ग्रहण लग चुका था |

 

अभिमान से अहं (कष्टों की जड़ )

==============

अब पति-पत्नी के बीच भी अभिमान की गाँठ बड़ी और बड़ी होने लगी जिसका परिणाम यह हुआ कि पति-पत्नी दोनों पर ही इसके दुष्परिणाम हुए | बच्चे यदि हुए तो उन्होंने सफ़र करना शुरू किया |

नए नए बातें बीच में आने लगीं और दुष्परिणाम स्वरूप मानसिक त्रास पनपने लगा, मानसिक बीमारियों ने अपना स्थान बनाना शुरू किया और वह इस हद तक बन गया कि उसके निकास का मार्ग ही अवरुद्ध होने लगा | हश्र यह हुआ कि पति-पत्नी के बीच जो सामंजस्य होना चाहिए था उसका अभाव होता चला गया और दुष्परिणाम स्वरूप परिवार में बच्चों को उसका भोग बनना पड़ा |

समाज के दिखावे के लिए पुरुषों ने महिलाओं को छूट अवश्य दी लेकिन अंदर से वे अपने अहम से छूट नहीं पाए जिसलिए परेशानी और बढ़ीं और उसका प्रभाव कई पीढ़ियों पर पड़ा |

अवसाद का अनुभव, पुरुषों की तुलना में महिला को अधिक प्रभावित करती है

चिंता, भावात्मक विचार, उदासी, इन सबका ध्यान दोनों को मिलकत रखने की आवश्यकता है |

संभवत:स्त्री को मध्यकाल में जो कष्ट मिल उसे उसने अपने पल्लू की गाँठ में बाँध लिया और बदल लेने की होड में लग गई जिससे उसके अहम को तुष्टि मिली या नहीं लेकिन परिवार की

समानता केवल दिखावा न हो, कोई भी बात अपने से शुरू होती, पुरुष हो अथवा स्त्री उसे अपने भीतर झांकना होगा

==============

समानता सभी क्षेत्रों में होनी आवश्यक है। बेटी बचाओ पढाओ तो ठीक, अच्छा बुरा टच समझाना

सरकार द्वारा अनेक योजनाएं लेकिन उसके बाद परिणाम?

एक-दूसरे की भावनाओं को समझना पड़ेगा तभी आने वाली पीढ़ियों को जीवन जीने की कला समझने में सफ़लता प्राप्त हो सकेगी |