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बदला ही क्यू ...

बदले की रात छोड़ो,बदले का दिन भी हमें मंजूर नहीं होना चाहिए।
गीता में कहा गया है की "क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाना है " तो फिर किस बात के लिए अपने मन को ,अपनी आत्मा को दु:खी करे और क्यू करे।

कोई आपकी जिंदगी में आता है । तब वह इंशान बहुत खास,सबसे अलग लगता है एक पल के लिए उससे दूर रह नही सकते, फिर क्यू कुछ ही नाराजगीयो से दूर होने पर सबसे कड़वा बन जाता है आखिर इंसान तो वही है। सिर्फ समय और परिस्थिति ही एक मात्र वजह है जिससे अपने बोलने,देखने और समझने में फर्क आता है। जबकि इंशान वही है।

जो इंशान आप के जीवन में आता है । वो आप को कुछ न कुछ नया जरूर सिखाकर जाता है। कुदरत ने पहले ही सब तय कर रखा है । कब अपनी जिंदगी में कोन आएगा ,वो इंशान आकर अपने जीवन में क्या क्या बदलाव लाएगा।
वही से अपने जीवन में बदलवा सुरू हो जाते है ।कुछ बदलाव अच्छे होते है जो जीवन को नई ऊंचाइयों की और ले जाते है तो कुछ सबक बनकर हमेशा सीख देते है।

कोई हमे दर्द से बाहर निकलने आता है तो कोई सिर्फ और सिर्फ दर्द देने।

तो भला कुदरत की उस दिन को हम क्यों बदले की भावना से देखे ।वो तो एक मौका है अपने जीवन में नई ऊर्जा का,नए अहसास का, प्रेम का,विरह का,दर्द का ,खुशी का इन सब से होकर ही तो जिंदगी जिंदगी बनती है।

क्या कभी सोचा भी है बदला लेकर आज तक किसी को क्या मिला है कुछ भी तो नहीं। फिर क्यू बदले की भावना मन में आनी भी चाहिए। जीवन में जिसने अपने साथ अच्छा व्यवहार किया उसका भी भला और जिसने बुरा किया उसका भी भला ।

कहते है ना की माफ करने वाला हमेशा बड़ा होता है। तो फिर क्यू छोटी सोच के साथ जिए । जिंदगी की राह में जो आए सब को माफ करते हुए खुशी खुशी जीवन जिए। इस बदले की भावना ने कही घर उझाड़े है। कितने बच्चो को यतिन किया है। कितनो का सुहाग छीना है। इसीलिए मन से बदले की भावना हमेशा के लिए निकाल देनी चाहिए।

दिखावे की यह दुनिया में सबको बाहर से एक अच्छा इंसान दिखने की चाहत है और उसके रहते अंदर छुपे हुए इंसान को हम मार ही डालते हैं । हम क्या चाहते हैं यह जरूरी नहीं रहता ।दूसरे को क्या अच्छा लगता है क्या अच्छा लगेगा यह सब करने में इतने व्यस्त हो जाते हैं हमारी चाहत हमारे सोच सब धरे के धरे रह जाते हैं और खुशियां कोसो दूर चली जाती हैं। और हम बदले की भावना में अपनी सारी संवेदना को मार देते है।ना जाने क्यों हम ऐसा करते है।

अपनी आत्मा को हमेशा अच्छे विचारों से नहलाया करो । हमेशा कुछ अच्छा सोचो । अपनी कहने ,बोलने ,सोचने की प्रवत्ति बदलो अपने आप ,आप के अंदर से बदले ही भावना समाप्त हो जायेगी।

बदला सिर्फ नुकसान , बर्बादी का कारण है वही माफी फायदे का सौदा है।

भरत (राज)