a mix of my words in Hindi Poems by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | मेरे शब्दों का संगम

Featured Books
  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

  • کیا آپ جھانک رہے ہیں؟

    مجھے نہیں معلوم کیوں   پتہ نہیں ان دنوں حکومت کیوں پریش...

Categories
Share

मेरे शब्दों का संगम

1.
किताब की दोस्ती बहुत कमाल की होती हैं...
बात तो नहीं होती, पर बहुत कुछ सिखाती हैं...!

2.
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य स्पष्टीकरण देना नहीं है,
बल्कि मन के दरवाजे खटखटाना है...!

3.
वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या,
जिस पथ पर बिखरे शूल न हों,
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या,
यदि धाराएं प्रतिकूल न हों।

4.
तुम कितने ताकतवर हो?
ये अखाड़े नहीं,
किताबें बताएँगी
कि तुमने उन्हें कितनी ताकत से पढ़ा।

5.
रंग में सांवले और लहज़े में कड़क लगते हो,
सच कहूँ यार तुम और चाय गजब लगते हो।

6.
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा,
जिसमें मिला दो उसके जैसा।

7.
शोर नही है हम जो सुनाई दे
हम तो वो खुशबू है...
जो रूह मे उतर के जिंदगी महका दे...!

8.
मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी,
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी...

9.
जो एक बार घर से निकलते हैं,
वे उम्र भर मकान बदलते हैं...!
.................... परदेशी......!!

10.
तस्वीरें लेना भी जरूरी है जिदंगी में !
आईने गुजरा हुआ वक्त नही बताया करते !!

11.
सादगी से बढ़कर कोई श्रृंगार नहीं होता,
और
विनम्रता से बढ़कर कोई व्यवहार नहीं होता।

12.
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

13.
"मुस्कान" दिल की मिठास को इंगित करती है,
"मौन" मन की परिपक्वता को...
और दोनों,
इंसान होने की पूर्णता को...

14.
रण के सारे मजबूत इरादे तुम से
है जीत के आसार तुम से

खड़े हो तुम जब साथ हमारे
फिर लड़ने का हौसला तुम से

रहो तुम रौनक काफ़िलो की
रहे काफ़िले की मोहब्बत तुम से

15.
कोई कैसे बनें अपने पिता की तरह "दीनू"
पिता की तरह कभी बना ही नहीं जा सकता
क्या हुए हैं कभी झरने समंदर की तरह
बने हैं गमले के पौधे कभी घने बरगद के पेड़ की तरह

16.
सावन आपके प्रेम का बरसा हैं गाँव में
इक सादा शख़्स प्रेम से लबालब हुआ हैं गाँव में

बोऐ थे बीज मैंने वफ़ादारी के बीते बरसों में
कल वही फसल लहलहाती हुई दिखी गाँव में

सारा क़ाफ़िला मुझ में था और मैं क़ाफ़िले में "दीनू"
सारे बच्चे बूढ़े जवान एक ही रंग में दिखे गाँव में

17.
तू रुका हैं ना कभी ना कभी तू रुकेगा
यह काफिला आज नहीं तो कल तेरे साथ चलेगा
तू इम्तिहानो ओर सब्र को यूं ही पालते रहना
ये वक्त भी आजमाईशो को छोड़ तेरे साथ साथ चलेगा
तू चंद तोड़ने वालो से उदास मत हो जाना
तू सिंह है सियारों की सोच से परे हैं तू
तू अपनी पहचान स्वयं लेकर चलेगा

18.
ना होता ये संसार का बंधन
फिर हम भी कोई योगी होते
हम होते शिव की खोज में
और शिव हम में होते

19.
आँधियों के दौर में तूफानों सा हुनर रख
झुंड की फौज नहीं खुद का अलग कारवां रख

गर मिला हैं नाम तो बजा इसका डंका गांव शहर में
तू काफिले के दौर में "दीनू" अपनी अलग पहचान रख

20.
जब चीखें मां की सुनाई दे
उजड़ता सिंदूर गांव में दिखाई दे
जवान जवानी में दामन छुड़ाते नजर आए
फिर शायर कवि कोई प्रेम पे लिखता कैसे दिखाई दे

21.
फिर आज कोई बिना बताए घर से निकल गया !
मां के आंचल को रुसवा और पिता से मुख मोड़ गया !!

अब थोड़ा मुश्किल होगा बहन का भी संभलना !
कलाई जो भाई उम्र भर के लिए सुनी कर गया !!

शाम होने को हैं जरा बेटे को बुलाओ उस मां के "दीनू" !
जो उम्र भर की भूख प्यास सब ले गया !!