Gaon Ke Tilism part-3 in Hindi Drama by डॉ स्वतन्त्र कुमार सक्सैना books and stories PDF | गाँव के तिलिस्म भाग -3

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गाँव के तिलिस्म भाग -3

एक बार महिला एस.डी. एम साहिबा आईं तो उसने उनकी भी विजिट अपने गांव में रखी, महिलाओं की एक मीटि़ंग भी रखी। सुक्‍खो स्‍वयं संचालन कर रही थी, उसकी बेटी व स्‍वयं सुक्‍खो ने जिनके प्रार्थना पत्र नहीं थे तैयार किए। मेडम बहुत प्रभावित हुर्इ्रं सामाजिक कार्यों का ही निवेदन किया गया, कोई व्‍यक्तिगत निवेदन सुक्‍खो का नहीं था। मीटिंग का सारा कार्य पूर्ण निर्धारित समय पर सुचारू रूप से संचालित था। जबकि अधिकतर जगह सरपंच को ही समझ में नहीं आता था। वे पंचायत सेक्रेटरी पर निर्भर रहते। मेडम उत्‍सुकता न दबा सकीं पूंछ ही लिया’- कब से सरपंच हो? !’

सुक्‍खो – ‘मेडम जी! डेढ़ वर्ष से, मैं पहली बार सरपंच बनी हूं।’

मेडम एस. डी् एम.-’ कमाल है, क्षेत्र में इतने सिन्‍सियर तो मेल सरपंच भी नहीं हैं।

कितना पढ़ी हो?’

सुक्‍खो बाई – ‘मेडम! मैं केवल दसवीं पास हूं।’

मेडम एस. डी. एम.-’ अरे सरपंच के लिये इतना तो काफी है यहां कितनी महिलाएं इतना पढ़ीं हैं क्‍या  यहां लड़कियों का स्‍कूल है? कितनी लड़कियां स्‍कूल जातीं हैं?’

‘सुक्‍खो बाई – ‘जी मेडम! पांचवे तक स्‍कूल है, फिर लोग शहर में पढ़ने के लिये लड़कियों को स्‍कूल नहीं भेजते। अगर आप लड़कियों के लिये आठवीं तक स्‍कूल करा दें, तो   कृपा होगी।’

मेडम एस. डी.एम.- ‘सुक्‍खो बाई! आपने जो मांगें उठाई, वे बातें और कोई सरपंच नहीं करता। सरकार की एक महिला को सरपंच बनाने की जो मंशा है। अपने वाकई उसे पूरा किया, अपना प्रार्थना पत्र भेंजे, मैं पूरी कोशिश करूंगी।’

निवेदन में तीन बूढ़ी/प्रौढ़ गरीब महिलाएं भी थीं जिनकी दो–तीन बीधा जमीन गांव के दबंग जमींदार जिनकी जमीन उनके बगल में थी जबरन कब्‍जा किये थे। आज उन्‍होने भी अर्जी दी थी वे पहले भी तहसील व पटवारी को कई बार लिखित में आवेदन कर चुकीं थी, पर सुनवाई नहीं हुई थी, आज जब सुक्‍खो बाई के साथ उन्‍होने आवेदन दिया तो मेडम ने फौरन तहसीलदार से पूछताछ की, और उन्‍हें खेतों पर भेजा साथ ही कहा-’ अगर सही जांच न हुई तो मैं दुबारा कराऊंगी।’

जब तहसीलदार ने कहा-’ पटवारी कल तक करके रिपोर्ट पेश कर देगा।’

तो मेडम बोलीं – ‘अभी मेरे सामने जांच /नाप कर के लाएं, मैं तब तक यहीं बैठी हूं।’

वे सब लोग तुरंत फील्‍ड में गए, एक घंटे में लौट आए, ।

असल में तो पटवारी को सब पहले से ही मालूम था, उसने नापने कर महज ड्रामा किया, फौरन रिपोर्ट पेश की गई, तहसील दार ने आदेश निकाला, कब्‍जा हटा दिया गया। मीटिंग होने के कारण पूरा गांव उपस्थित था सब लोग साथ गए। ऐसा उस गांव में पहली बार हुआ था। सारे जिले में दूर-दूर तक चर्चा फैल गई, दूसरे दिन ही सारे अखबार रंगे थे। मेडम एस.डी.एम की दबंगई की, न्‍याय प्रियता की चर्चा थी।

पर गांव में तो यह सुक्‍खो बाई एवम् द्रोपदी का कमाल था। लोग कह रहे थे जो काम मर्द न कर पाए जनियन ने कर दओ। वाह री सुखिया। गांव में अफसर ले आई, झंई अदालत लग गई। सब नेतन की ऐसी तैसी कर दई। कब सें कब्‍जा करें ते, पांच मिनिट में हट गओ, सबके आंगें वाह- वाह। कुछ लोग उत्‍साह में कह उठे-’ अब तो सुक्‍खो बाई ही हमाई तरफ से परमानेण्‍ट सरपंच रहेगी।’ द्रैापदी का चेहरा देख, सुक्‍खो मौके की नजाकत समझ गई। उसने माईक हाथ में लेकर तुरंत प्रतिवाद किया- ‘गांव के बुजुरगो! व मेरी देवरानी जिठानीं बहुऐं बहने! सबरे सुन लें, मैं एकई बार खों सबकी तरफ से बनीं, दुबारा नईं बननो। जे द्रौपदी जिज्‍जी अगली बेर ठांड़ी होंगी, जोई मोरी बात पत्‍थर की लकीर है। हां जब तक खों आप सबकी सेवा में रहोंगी।’ फिर ज गांव की बहू हों सेवा तो सब की जैसी बनेगी करत रहोंगी अकेली सरपंची में सो ई थोरी लाल लटक रये।’ द्रौपदी भंवर लाल, श्रीपरसाद सब मुस्‍करा उठे। मैडम एस. डी. एम. जा रहीं थीं सारे अफसर उठ खड़े हुए सुक्‍खो एक दम दौड़ी-दौड़ी उनके पास गई मैडम जी अपका बहुत टाईम लगा पांच मिनिट का काम और है, हम गांव वालों की तरफ से एक एक कुल्‍हड़ चाय ले लें बस हम अपनी लालच में इतने व्‍यस्‍त रहे कि ज्‍यादा कुछ न कर सके अगर आप सब ने मेरा निवेदन स्‍वीकार न किया तो गांव वाले इसे अपना अपमान मानेंगे और इसका दोषी मुझे ठहराएंगे, ऐसी नालायक सरपंच को अभी सर्व सम्‍मति से अविश्‍वास प्रस्‍ताव पारित करके निकाल देंगे, सारे पंच व जनता यहीं उपस्थित हैं सब लोग यह सुन कर मुस्‍करा उठे मैडम के भी दांत निकल आए।

मेंडम – ‘अब तो बहुत देर हो जाएगी।’

सुक्‍खो- ‘मेडम जी! बिल्‍कुल नहीं चाय तैयार है बस सर्व करना है वे लोग केवल मीटिंग खत्‍म होने का इंतजार कर रहे हैं मैं लेकर आई।’

सब लोग बैठ गए। सुक्‍खो बाई मीटिंग स्‍थल के सामने एक घर की ओर जाने लगीं तब तक उनके सहायक बच्‍चे व नौजवान व महिलाएं घर की और दौड़े व उस घर से एलम्‍यूनियम के बड़े-बड़े थालों में चाय भरे कुल्‍हड़ लेकर कुछ लोग निकले। थाल के साथ बच्‍चे व महिलाएं चाय सर्व करने लगे। तब तक उन्‍होंने चने की नई फसल से बूंट के  छोटे- छोटे गटठर बांध कर जीपों मे रखवा दिये।

गांव में सारे लोग सुक्‍खो  के समर्थक ही नहीं थे। अगले ही दिन एक बड़े और दबंग किसान लाखन सिंह का बेटा श्‍याम सिंह बंदूक हाथ में लिये सुक्‍खो के दरवाजे आ पहुचा वह गालियां दे रहा था। – ‘चमरिया! अपने को पंडतानी समझन लगी, मैं तोरी असलियत जानता हूं, जाने कहां-कहां बिकी, कौन –कौन से निपटी, अब सरपंच बन के अपने खां बड़ी तोप समझ रई। मैं अबईं दो मिनिट में सगरी सरपंची निकार दंगो।’

जब तक श्रीपरसाद आ गए –’अरे श्‍याम! काए को बक रओ का है तू का कर लेगो हमें का जों ई गाजर मूरी समझ लओ....।’

उसकी बेटी घबड़ा गई वह जोर जोर से चिल्‍लाने लगी- ‘अरे दौरियो बचइयो.....।’

और लोग दौड़ पड़े किसी ने तब तक भंवर सिहं को खबर कर दी वे भी पति पत्‍नी आा गए। श्‍याम ने एक दम जोश में आकर श्रीपरसाद पर बंदूक तान दी और क्रोध करके तुर्शी से बोला- ‘मैं केवल बक नहीं रहा अभी निपटा दूंगा।’

तो सुक्‍खेा श्रीपरसाद के सामने आ गई श्‍याम से बोली- ‘श्‍याम! विनसें का है, मैने करो, तू मो में गोली दे-दे, सब काम निपट जाए, तू मन की कर ले, कसर मत छोड़।’

मामला बिगड़ता देख और भीड़ में कोई उनका समर्थन न देख श्‍याम के पिता लाखन सिंह जो बड़ी देर से वहीं दूर चुपचाप खड़े थे अब आगे आ गए – ‘श्‍याम को डा़ंटने लगे अबे बेटी ...... ठीक से बात कर का अंट संट बक रओ।’

और उसके हाथ से बंदूक छुड़ा ली। वे दोनो चुपचाप निकल लिए। अब श्री परसाद ज्‍यादा सावधान रहते सुक्‍खो को भी रोकते टोकते- ‘जादां शहर जाने की जरूरत नहीं, देख सुन के जाओ करे, अच्‍छी सरपंची करी। बहुत जनें अपन से चिढ़ गए। अपन छोटे लोग अपनी सरपंचीऊ अन खां  हजम नहीं हो रही।’

सुक्‍खो– ‘अरे जे सब तो होतई है, तुम डरो नहीं, जो होने हुए सो हो जाएगो।’

फिर भी श्री परसाद ने बहुत सी पाबंदी लगा दीं, सुबह शहर जाएं तो देर से निकलें, दिन- दिन में शाम को जल्‍दी लौट आएं, यदि देर हो जाए तो वहीं शहर में बेटे –बेटी के पास रूकें, खेत पर अकेले न जाएं, किसी न किसी के साथ जाएं। बेटा -बेटी अब शहर में ही रहेंगे एक दो दिन के लिये अगर गांव आएं तो सीमित घरों में ही जाएं।’

एक दिन तो सुक्‍खेा बोलीं-’ अरे! अब वो बड़े हो  गए, तुम उन्‍हें घर धुस्‍सा बनाए दे रहे, हमारा बेटा बिल्‍ली बन कर नहीं रहेगा, शेर सा दहाड़ेगा तुम देखियो।’

पर श्री परसाद बहुत घबड़ाए रहते-’ हां तुम्‍हारी बात ठीक है, पर सावधानी रखनो चइये, एक ई तो बेटा है कुछ हो गओ तो....!’

समय गुजरता गया और सुक्‍खो बाई के बेटा- बेटी बड़े होते गये एक दिन डॉक्‍टर मेडम ने बताया – ‘सुक्‍खेा तुम्‍हारी बिटिया ने बारहवी में अच्‍छे नम्‍बर लाए हैं। तुम कहो तो आजकल नर्सिगं का फॅार्म भरे जाने हैं, बेटी को भर्ती करा दें?’

वे उसके साथ नर्सिगं कॉलेज गईं और बेटी का एडमीशन हो गया, वह चार वर्षीय कोर्स के लिये बड़े शहर चली गई। चूंकि बेटा यहां अकेला रह गया था, तो वह भी बड़े नगर के कॉलेजमें भर्ती हो गया। हॉस्‍टल में उसके रहने की व्‍यवस्‍था हो गई। सुक्‍खो ने बड़ी दौड़ धूप की। पर पति की तरफ से सहयोग के बजाय अड़ंगे डाले गये’– ‘इतेक पढ़ाई के लाने पैसा कहां से आहे? विनें न कलट्टर बननों? जां ई पईसा की बरबादी है।’

जब तब कलह होने लगी, एक बार श्री परसाद के डाकू मित्र के लायक बेटे का रिश्‍ता आया। सुक्‍खो ने मना कर दिया, तो वह भड़क गया, -’ को करेगो? बाम्‍हन दुनिया के मीन मेख निकारेंगे, कोऊ तैयार भी होओगो, तो डलिया भर रूपैया मांगेंगे, वो कां धरो?’ का बिटिया जनम भर अनब्‍याही रख बे की मंशा है?’

जब कि वे जब-तब दारू पीते, नॉनवेज बनता, मित्र परिचितों सम्‍पर्कों की दावत होती, चाय नाश्‍ता  तो होता ही रहता। पर श्रीपरसाद इसे अपने काम का जरूरी खर्च समझते। शान की, नाम का आवश्‍यक हिस्‍सा मानते, वरना-’ गांव में कितेक घर हैं? काऊ के घरे कोऊ बैठन जात? कर्मचारी गांव में आऊत तो अपनो ई घर तलाशत।’

वे नहीं मानते थे कि इसका कारण सुक्‍खो बाई का सरपंच होना है। इसका श्रेय स्‍वयं का प्रभावशील होना मानते थे। चार आदमी अपन खों पूछत हैं  ।

 लड़का बारहवीं के बाद अच्‍छे नंबर से पास हुआ। दोनो बच्‍चे गांव वालों की नफरत भरी बातें, घृणास्‍पद व्‍यवहार से अपनी स्थिति समझने लगे थे। सुक्‍खो ने बेटे के कहने से उसे एक पुलिस की तैयारी वाली ट्यूशन भी करा दी। वह दौड़ व खेलों मे भी हिस्‍सा लेता। जब सब इंसपेक्‍टर की परीक्षा में पास हुआ। तब सुक्‍खो भंवर सिंह के पास पहुंची। वे मिल कर विधायक जी के पास गये, करीब दो महीने चप्‍पलें चटकाईं, वे पिघले निर्वाचन मंडल के एक अफसर उनके कृपा पात्र थे, उनकी सिफरिश रंग लाई बेटा योग्‍य तो था पर देश में बिना सिफरिश कुछ होता नहीं, आखिर वह सिलेक्‍ट हो गया। और प्रशिक्षण केन्‍द्र में भर्ती हो गया।

इसी दौरान श्री परसाद का दारू पीने के कारण लीवर खराब हो गया। अस्‍पताल में दो महीने भर्ती रहे, घर पर इलाज चला, चलने फिर ने से अशक्‍त रहे खर्चा भी बढ़ गया। वह सरपंच होने के कारण अब सरकारी सेवक नहीं रही थी, खेती का सहारा था। उसने डॉक्‍टर मेडम के नर्सिंग होम में नौकरी कर ली। एक बार रात में उसके खेतों में एक विरोधी ने भैंसे घुसा दीं। वह विनय करने गई – ‘दादा! ऐसो न करो मेरी विपदा की घरी है।’ वे भोले पन का चेहरे पर आवरण ओढ़ कर बोले-’सुक्‍खो! धोखे से भैंसे घुस गई, मौड़ा ने देखी नईं, अब न हुहै।’पर अगले महीने दुबारा जब वह चारा काटने गई, तो उसी के सामने भैंसे- गाय फिर खेतों में घुसती दिखीं, वह लट्ठ लेकर पिल पड़ी लड़का आया तो उससे भी भिड़ गई। उस पर भी दो -तीन लट्ठ पड़े पर रखवाला भाग गया। इसकी पुलिस में रिर्पोट की। रिपोर्ट वापिस लेने का दबाव बना पर उसने मना कर दिया। मोहल्‍ले की  पंचायत बैठी, भैसों के मालिक ने जो एक पड़ोसी समृद्ध किसान थे गलती मानी, हरजाना भरा, श्री परसाद से खड़े होकर सबके सामने माफी मांगी। तब लिखित में समझौता हुआ, सबने हस्‍ताक्षर किए, फिर सुक्‍खो बाई ने रिर्पोट वापिस ली। इससे  सुक्‍खो के खेत में भैंसे घुसना बंद हो गईं।

 

 

क्रमशः