KOI NAHI AAP SAA in Hindi Poems by उषा जरवाल books and stories PDF | कोई नहीं आप-सा

Featured Books
  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

  • کیا آپ جھانک رہے ہیں؟

    مجھے نہیں معلوم کیوں   پتہ نہیں ان دنوں حکومت کیوں پریش...

Categories
Share

कोई नहीं आप-सा

मेरे पापा शिक्षक थे | बचपन से ही देखती आई थी कि पूरे गाँव के लोग उनका काफी सम्मान करते थे | जिधर से भी निकलते थे वहीँ लोग हाथ जोड़कर 'गुरुजी नमस्ते', गुरुजी प्रणाम' कहे बिना आगे नहीं बढ़ते थे | पापा स्कूल में तो पढ़ाते ही थे, साथ में ही घर आने के बाद गाँव के कई गरीब बच्चों को भी पढ़ाते थे | बस उनको देखकर ही मेरे मन में शिक्षक बनने की अभिलाषा जाग उठी थी | मैं अक्सर पापा की नक़ल किया करती थी | जब कभी पापा किसी काम में व्यस्त होते तब तक मैं उन बच्चों को शिक्षिका बनकर पढ़ाती थी | हालाँकि सब मुझसे बड़े थे पर फिर भी मैं जो भी बोलती थी उसे मेरी खुशी के लिए सुन लेते थे तो मुझे लगता था कि मैं तो अभी से शिक्षिका बन गई हूँ | 

बड़ी होने पर मैं शिक्षिका बन भी गई | कभी भी स्कूल से संबंधित कोई समस्या होती तो पापा से उसका समाधान ज़रूर पूछती थी | ये तो आप जानते ही होंगे कि पहले के और आज के समय में कितना अंतर आ चूका है ? समस्याएँ तो पहले भी रहती ही थी पर पहले के शिक्षक उन्हें धैर्य के साथ सुलझा लेते थे | आज तकनीकी का ज़माना आ गया है इसलिए हमें समाधान भी चुटकियों में चाहिए | धैर्य हर समस्या से जूझना सिखा देता है | ऐसा मेरे पापा कहते थे | मैं बिलकुलअपने पापा जैसी शिक्षिका बनना चाहती थी | मेरे पति के स्थानांतरण के कारण राज्मेय बदले, शहर बदले, स्रेकूल बदले  पर एक चीज कभी नहीं बदली - बच्चों का प्यार और अपनापन | पर फिर भी पापा जैसी बनने में कुछ कमी - से लगती है | ये कविता मेरे पापा के लिए है और उन सभी शिक्षकों के लिए है जो अपने शिष्यों में उनके जैसा ही बनने की चाह जगाते हैं |

 

 

कविता : कोई नहीं आप - सा

 

तेज जिसका सूर्य - सा और मन में है कोमलता छाई,

अंधकार को मिटाकर जिसने ज्ञान की अखंड ज्योत जलाई |

प्रशस्ति पथ पर बढ़ने में, राह में जब भी कोई बाधा आई,

 समक्ष सदा पाया है आपको, फिर वह बाधा टिक न पाई ।

ज्ञान विज्ञान और कर्म के बल पर आपने नया कीर्तिमान बनाया,

आँखों में सपने पैदा करके, हौंसलों से हमें उड़ना सिखाया।

कण - कण में बसते हो आप, तन - मन में विराजते हो आप,

उम्मीदों की किरण दिखाकर हमारे सपने सजाते हो आप।

देकर हमें शिक्षा - ज्ञान जीवन हमारा सँवारते हो,

लड़कर जीवन – संघर्षों से जीना हमें सिखाते हो।

कैसे कर सकते हैं भला हम आपके गुणों का बखान,

महिमा आपकी अपरम्पार, आप तो हैं गुणों की खान।

शिक्षा - क्षमा- कर्म का दर्पण, श्रद्धा - सुमन है आपको अर्पण,

संस्कारित है आपसे ये सारा चमन, कोटि-कोटि आपको नमन |

माली बनकर सींच रहे हैं आज आप जिस बगिया को,

पुष्प बनकर महकाएँगे कल आपके शिष्य इस दुनिया को ।

शिक्षक दिवस पर आपसे बस यही कहना चाहती हूँ,

जब भी धरा पर जन्म लूँ आप – सा शिक्षक बनना चाहती हूँ |

ईश्वर पूरी करें आपकी चिर - संचित मनोकामनाएँ,

हम सबकी ओर से  आपको शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।

 

 

उषा जरवाल

गुरुग्राम हरियाणा