ek prem kahani ka hashr in Hindi Moral Stories by bhagirath books and stories PDF | एक प्रेम कहानी का हश्र

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एक प्रेम कहानी का हश्र

समीर शेख और अणिमा कश्यप की प्रेम कहानी शादी में बदल गई। वे दोनों काफी खुश थे और सुखी वैवाहिक जीवन बिता रहे थे। अणिमा ने यह जानकर शादी की थी कि समीर शेख मुस्लिम है। और इस विवाह के लिए उसके घरवाले कभी राजी नहीं होंगे फिर भी प्रेम के चलते उससे शादी की और अन्तर जातीय विवाह के सब खतरे उठाए। प्रेमी लोग खासतौर पर लड़कियाँ ऐसी हिम्मत कर जाती है। समीर के लिए शादी के बाद भी जीवन सामान्य रहना था क्योंकि उसके माँ बाप को इस शादी से कोई एतराज नहीं था। वे जरूर चाहते थे कि उनकी बहू इस्लाम कबूल कर ले। पर उन्होंने कोई दबाब नहीं बनाया। समीर का कहना था कि समय के साथ सब हो जायेगा।   

अणिमा एक वर्किंग वूमन थी सो सुबह घर का कुछ काम निपटा ऑफिस चली जाती। बाकी काम सास कर लेती। वे दोनों करीब-करीब एक समय घर छोड़ते और एक समय ही घर लौटते। घर में केवल समीर के माता पिता थे। अन्य कोई सदस्य नहीं था। शादी के बाद के दिन उड़े-उड़े जा रहे थे। दस दिन के वेकेशन पर वे हनीमून गए जिससे उनके बीच का बॉन्ड गहरा गया। वे एक दूसरे में डूबे-डूबे घर लौट आए।  

अणिमा ने पहला पाठ यह सीखा कि वह अपने सास ससुर को अम्मी अब्बू कहने लगी।   वे सुनकर खुश हुए कि धीरे-धीरे इस घर के संस्कारों में ढल जाएगी। वे भी उस पर प्यार लुटाते। वह भी उनका खूब ख्याल रखती। मांसाहारी भोजन कभी-कभी घर में बनता जिसे वह खुद बनाती। उसमें उसे कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि वह स्वयं मांसाहारी थी। दिक्कत तब आती जब रिश्तेदार आते और अब्बू-अम्मी से खुसर-पुसर करते।   लेकिन मेरे सामने मेरी प्रसंशा ही करते। खासतौर पर मेरी पढ़ाई और नौकरी को लेकर।  धीरे-धीरे उर्दू शब्दावली जो उनके दैनिक जीवन का हिस्सा थी मेरी भाषा पर कब्जा कर बैठी । क्या यूं ही व्यक्ति धीरे-धीरे बदलता है। अच्छा है मैं उनके जीवन में रम जाऊँगी तो उन्हें परायेपन का एहसास नहीं होगा।   

वैवाहिक जीवन का पहला वर्ष बहुत अच्छे से बीता। दूसरा साल खत्म होते-होते उनके एक बेटी हो गई। जिम्मेदारियाँ बढ़ी लेकिन खुशियों के पल भी बढ़े। पत्नी अपने घरेलू व ऑफिस के काम में व्यस्त हो गई। प्रसव के बाद वह करीब छः महीने छुट्टी पर रही। ऑफिस जॉइन करने पर बेटी का ख्याल रखने को सास घर पर थी। दादी अच्छे से उसका ख्याल रखती ज्यादा ही तंग करती तो दादी उसे फोन कर देती। घर आने समीर भी उस नन्हीं जान से लाड़ लड़ाते। 

अणिमा घर परिवार में कुछ ज्यादा ही रच-बच गई। समीर को लगा अणिमा उसे इग्नोर कर रही है। जबकि ऐसा था नहीं, बस बेटी की देखभाल में व्यस्त रहती। पति से विमुख होना कोई सायास किया कर्म नहीं था बल्कि नई जिम्मेदारियों के चलते ऐसा होना स्वाभाविक था। समीर को जितना सपोर्ट उसे देना था उसने नहीं दिया। उसकी सोच थी कि घर परिवार तो औरत की जिम्मेदारी है।    

     पता कब कैसे समीर ऑफिस की ही एक सहकर्मी के साथ इनवॉल्व हो गया। वह उसके साथ ज्यादा समय बिताने लगा। उस पर खूब पैसे लुटाता, महंगे गिफ्ट देता और वह यह जानते हुए की समीर शादीशुदा है वह मौज मस्ती के लिए उसके संग साथ रहती। एक बार जब पत्नी ऑफिस गई थी समीर अपनी गर्ल फ्रेंड को अपने घर ले आया। दोपहर का समय था बेटी दादी के पास सो रही थी। वह उसे सीधे अपने बेड रूम में ले गया। फिर यह क्रम कई बार चला। पड़ोसी जरा चौकन्ने हो गए। उन्होंने मोबाईल में फोटो उतार ली। अणिमा को सावचेत करते फ़ोटो फॉरवर्ड कर दिया। 

     सारी बात अणिमा को बताई शक की कोई गुंजाइश नहीं थी सब कुछ सामने था। पति का सारा प्रेम और कमीटमेंट धरा रह गया। अचानक जैसे बिजली गिरी हो और सब कुछ तहस-नहस हो गया हो। पूरा आशियाना धूँ धूँ कर जल उठा।  सुन्न सी उठकर कमरे में गई और बेटी को गोद में लेकर काफी देर तक रोती रही। जिंदगी भर का वादा कुछ ही वर्षों में स्वाहा हो गया। माता पिता उसे पहले ही अंतर धार्मिक विवाह के कारण छोड़ चुके थे। बात करे तो किससे करे। जाय तो कहाँ जाय! बेटी की ओर देख उसने किसी तरह मैनेज किया।   

अणिमा ने इस बात को लेकर समीर से बात की तो वह उखड़ गया ‘मेरी सहकर्मी है घर ले आया तो कौन सा गुनाह कर दिया।‘

‘यह एक बार की बात नहीं है ऐसा कई बार हुआ है और जो उसे महंगे- महंगे गिफ्ट देते हो वह क्या है? ऑफिस और बाहर जो चर्चे हो रहे हैं वो सब क्या है?’ 

‘लोगों का क्या उन्हें तो बातें बनाने में मजा आता है।‘ यानी कुल मिलाकर वह मानने को तैयार नहीं था कि उसका उसके साथ अफेयर है।    

 इस झड़प के बाद उनमें बातचीत बंद सी हो गई। अपने पति को हाथ तक लगाने नहीं देती थी। इसका असर और भी बुरा हुआ, वह गर्ल फ्रेंड की तरफ ज्यादा ही झुक गया। अणिमा ने अपने सास-ससुर से इस बारे में बातचीत की। उन्होंने उसे चेताया कि बात बढ़ाओ मत, नहीं तो वह उससे दूसरी शादी कर लेगा। हालांकि उन्होंने बाद में बेटे को समझाया भी लेकिन उसने अपना रास्ता नहीं बदला। 

      अणिमा ने उससे अलग रहने की सोची, तलाक लेने के बारे में सोचा इससे तो उसकी राह और आसान हो जायेगी। वह लगातार कुंठित होती गई कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी। बच्ची से भी समीर का मोह कम होता जा रहा था। वह उसके साथ न खेलता न उसे घूमने ले जाता जैसे वह उसकी बेटी ही नहीं हो। हालांकि सास-ससुर बेटी को बहुत चाहते थे।

अब उस पर इस्लाम अपनाने का दबाब बढ़ने लगा। जब-जब घर में त्योहार होते उसे   नमाज पढ़ने का कहा जाता सर को हिजाब से ढकने का कहा जाता लेकिन उसने कभी इन सब के बारे में नहीं सोचा हिन्दू त्योहार यूँ ही खाली चले जाते कौन मनाए वह खुद मनाए तो कैसे किसके साथ मनाए। अगर वह इस्लाम कबूल कर लेती तो शायद उसकी शादी बच जाती।           

      जिस प्रेम में पगी वह इस घर में आयी थी वह प्रेम ही नहीं रहा तो अब यह घर उसके लिए यातना गृह हो गया। अपनी कुंठा को रास्ता मिल गया उसने अपने ऑफिस कलीग जो हिन्दू था और उससे उम्र में छोटा था के साथ लव अफेयर में उलझ गई। बदला लेने की नीयत से उसे वह अपने साथ फॅमिली फ़ंक्शन में ले आई इतना ही नहीं वह पूरे समय सबके सामने उसके साथ काफी इंटीमेट रही।

      समीर और उसके ससुराल वालों को बहुत बुरा लगा। बुरा लगाने के लिए ही वह उसे अपने साथ लाई थी। फ़ंक्शन में आए और लोग भी आपस में खुसर-पुसर कर रहे थे। समीर अपनी गर्ल फ्रेंड को कभी फॅमिली फ़ंक्शन में नहीं लाया उसे पता है इससे समाज में उसकी थू थू होगी। इस मामले में वह काफी सावधानी बरतता था। लेकिन अणिमा ने तो गजब ही कर दिया अपने बॉय फ्रेंड को ले भी आई और उसके साथ निर्लज्जता के साथ सटी भी रही। सास-ससुर भी नाराज हो गए। सर के ऊपर से पानी निकलते देख उन्होंने सब कुछ रिकॉर्ड करने का तय किया ।  

    ससुराल वाले ने सब रिकॉर्ड कर डिवोर्स का केस कर दिया। प्यार हालातों के मारे नफरत में बदल गया। अणिमा भी अब समीर के साथ नहीं रहना चाहती थी वह इंडीपेन्डेन्ट रहना चाहती थी लेकिन घर का सवाल था, मायके में वैसे भी अब कुछ बचा नहीं था। जब तक डिवोर्स नहीं होता उसे इस घर में रहने का अधिकार है डिवोर्स होते ही अधिकार खत्म हो जायगा। वैसे तो उसने  निकाह किया था मेहर की रकम देकर तलाक दे सकता था लेकिन अणिमा के हिन्दू होने के नाते डिवोर्स फाइल करना ही उचित समझा। दूसरी समस्या बेटी को लेकर थी अगर कोर्ट डिवोर्स मंजूर कर लेती है तो बच्ची की कस्टडी उसे चाहिए। वकील के मार्फत वह कोर्ट में ऐलमनी और बच्ची की कस्टडी पर जोर देने लगी। वकील ने बताया कि चूंकि वह स्वयं कमाती है इसलिए कोर्ट ऐलमनी न भी दे हाँ अगर बच्ची की कस्टडी मिल जाती है तो उसे जरूर मासिक राशि उसकी परवरिश के लिए मिल सकती है।    

    जो सबूत और गवाह समीर ने पेश किये थे वे उसके पक्ष के थे, अणिमा कोई सबूत पेश नहीं कर पाई। ऐसे में फैसला समीर के हक में ही होना था। साल भर बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया-जिसमें पति को बच्ची की कस्टडी मिल गई, उसे कोई हर्जा-खर्चा भी नहीं मिला।

    वह बिल्कुल टूट गई। बेटी होती तो कम से कम उसके सहारे जीवन तो कट जाता। किराये के एक मकान में रहती है। जीवनयापन तो हो रहा था मगर जीवन से खुशियाँ विदा हो गई थी। बॉयफ्रेंड ने भी उसे छोड़ दिया। तलाक शुदा बच्चे वाली माँ से शादी करने कौन तैयार होता? लड़के के माता-पिता ने तो बिल्कुल मना कर दिया, वह भी कोई बहुत उत्सुक नहीं था। यह रिश्ता भी हमेशा के लिए समाप्त हो गया। मायके में माता-पिता ने उसे पहले ही छोड़ दिया था। अब बिल्कुल अकेली रह गई है केवल वीकेंड पर बेटी से मिलने जाती है, कभी समीर बेटी को छोड़ भी देता है तो शाम को लेने आ जाता है।

     समीर ने दूसरी शादी कर ली एक मुस्लिम महिला से। उसने उससे शादी नहीं की  जो उसकी गर्ल फ्रेंड थी।

अणिमा ने एक दिन जब वह बेटी को उसके पास छोड़ने आया तो उससे बेटी को अपने पास रखने की मिन्नतें की। सौतेली माँ उसे वह प्यार नहीं दे सकती जो उसकी माँ उसे देगी फिर तुम्हारे बच्चे होंगे तब तो स्थिति और भी भयावह हो जायगी। समीर ने आश्वस्त किया कि वह घर में मशविरा करके बताएगा। उसे अब उम्मीद बनी है कि जीवन का सम्बल शायद उसे मिल जायगा।