Bejubaan - 2 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | बेजुबान - 2

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बेजुबान - 2

उस रात वह बिस्तर में लेटा हुआ था।मोबाइल का जमाना था नही।मतलब हमारे यहाँ मोबाइल नही आया था।टेलिविजन हमारे देश मे आ चुका था।लेकिन तब हर घर मे नही होता था।अकेला रहता था।करता क्या।खाना खाने के बाद बिस्तर में आ लेटा था।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।कौन है रात में।कही उसे भृम तो नही हुआ।वह लेटा रहा।तब दरवाजा जोर से पीटा जाने लगा।
कौन है जो दरवाजे को इतनी जोर से पीट रहा है।उसे उठना पड़ा।उसने आकर दरवाजा खोला था।बाहर बुरका पहने एक युवती खड़ी थी
कौन हो तुम।वह उस युवती से पूछना चाहता था।लेकिन उस युवती ने उसे इतना मौका ही नही दिया था।दरवाजा खुलते ही वह सीधी अंदर चली गई थी।उसकी समझ मे कुछ नही आया।न वह उसे जानता है न ही वह उसे और वह बिना उससे कुछ कहे उसके घर मे अंदर चली गई।क्यो।वह दरवाजा बंद करके अपने क्यो का जवाब जानने के लिए मुड़ा।वह उस औरत तक पहुंच पाता उससे पहले फिर दरवाजा ठोका गया।वह फिर दरवाजा खोलने के लिए आया।दरवाजे के बाहर लाठी डंडों और हथियार लिए लोगो को देखते ही उसकी समझ मे सब कुछ आ गया।
"इधर एक औरत आयी थी।"उन लोगो की बात सुनकर उसे सनझते देर नही लगी कि ये उपरदवी है और इन लोगों से अपनी जान बचाने के लिए ही वह भागती हुई इधर आयी थी ओर उसके दरवाजा खोलते ही अंदर घुस गई थी।वह समझ गया ये लोग उसकी जान के दुश्मन है अगर उसने सच बोला तो?और शरणागत कि रक्षा के लिए उसने झूठ बोला था"नही तो"हमने उस बुरकेवली को इधर ही आते हुए देखा था।"एक साथ कई आवाजे उभरी थी।
"इधर कोई नही आयी।"वह फिर बोला था।"
"तुम झूठ बोल रहे हो।"दाढ़ी मुछो वाला भयंकर सी शक्ल का आदमी बोला,"इन लोगों ने उसे इधर की तरफ आते हुए ही देखा था।"
उन लीगो के इरादे उसे नेक नजर नही आ रहें थे।उसने झूठ बोला था लेकिन उन लोगो को उसकी बात पर यकीन नही हुआ था।वह समझ गया अगर शरणागत औरतकी जान बचानी है तो उसे और बड़ा झूठ बोलना होगा।
"मैने कहा ने इधर कोई नहीं आया।कमरे में मेरी पत्नी के अलावा कोई नही है,",वह दरवाजे से एक तरफ हटते हुए बोला,"अगर तुम लोगो को मेरी बात पर विश्वास नही है तो तुम लोग अंदर जाकर देख सकते हो
उसकी बात सुनकर उन लीगो में। खुसर पुसर होने लगी।कुछ देर बाद उनका लीडर बोला
चलो
और वे अंदर नही गए।दरवाजे से ही वापस लौट गए।वह उन्हें जाते हुए देखता रहा।पूरी कॉलोनी का चक्कर लगाकर वे कोलिनी से चले गए थे।तब उसने दरवाजा बंद किया और बोला था
डरो मत वे गए
उसकी आवाज सुनकर वह बाहर आई और उसके पैरों में गिर पड़ी
अरे यह क्या कर रही हो
उसने उसे उठाया था।उसने अपना बुर्का उतार दिया था।उसने देखा वह गोरे रंग की सुंदर युवती है।वह बोला
"तुम्हारा नाम क्या है
ऊऊ
वह कुछ नही बोली थी।बस इशारा करती रही।तब उसकी समझ मे आया था।वह बेजुबान है।बोल नही सकती।उसकी बात समझ मे आने पर वह बोला
तुम पढ़ी हो
उसने स्वीकृति में सिर हिलाया था।
लिख सकती हो
फिर उसने सिर हिलाया था।तब वह कागज और पेन ले आया।उसे देते हुए बोला
तुम्हारा नाम क्या है।
उसने लिखा था
शबनम