Grihalakshmi in Hindi Moral Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | गृहलक्ष्मी

Featured Books
  • नेहरू फाइल्स - भूल-59

    [ 5. आंतरिक सुरक्षा ] भूल-59 असम में समस्याओं को बढ़ाना पूर्व...

  • 99 का धर्म — 1 का भ्रम

    ९९ का धर्म — १ का भ्रमविज्ञान और वेदांत का संगम — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎...

  • Whispers In The Dark - 2

    शहर में दिन का उजाला था, लेकिन अजीब-सी खामोशी फैली हुई थी। अ...

  • Last Benchers - 3

    कुछ साल बीत चुके थे। राहुल अब अपने ऑफिस के काम में व्यस्त था...

  • सपनों का सौदा

    --- सपनों का सौदा (लेखक – विजय शर्मा एरी)रात का सन्नाटा पूरे...

Categories
Share

गृहलक्ष्मी

1.     गृहलक्ष्मी 

एक बार मुझे दोस्त के बेटे के विवाह के रिसेप्शन में जाने का मौका मिला । स्टेज पर खड़ी खुबसूरत नयी जोड़ी को आशीर्वाद देकर मैं नीचे उतर ही रहे था कि दोस्त ने आवाज देकर वापस स्टेज पर बुलाया और कहा कि दिनेश जी नवदंपति को आशीर्वाद के साथ आज कोई अच्छी शिक्षा देते जाओ"
मैने पर्स में से 500 रुपये का नोट निकालकर दुल्हे के हाथ में देते हुए कहा कि बेटा इसे मसलकर जमीन पर फेंक दो ?"
दुल्हे ने समझदारी पुर्वक कहा "अंकल, ऐसी सलाह ? पैसे को तो हम लक्ष्मी मानते हैं न...."
मैंने जवाब मे उसके सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हुए कहा "अति उत्तम बेटा, तुम जानते हो कि मोड़ - तरोड कर, जमीन पर गिराकर भी इस कागज का मूल्य कम नही होगा, जब कागज की लक्ष्मी का इतना मान सम्मान करते हो तो आज से तुम्हारे साथ खड़ी, कंधे से कंधा मिलाकर, पूरी जिंदगी दुख - सुख में साथ देने के लिए तैयार इस अमूल्य दुल्हन रूपी गृहलक्ष्मी को कितना मान सम्मान देना है, वो तुम खुद तय कर लेना" क्योंकी ये अपने माँ - बाप की सबसे अनमोल मोती हैं ।


2. झूठी प्रशंसा


एक बार की बात है । एक महिला के घर पर कुछ मेहमान आने वाले थे । वह महिला बहुत दिखावा करती थी । उस दिन वह बहुत उत्सुकतावश चहलकदमी करती जा रही थी । उसको सबसे प्रशंसा सुननी अच्छी लगती थी। वह उन मेहमानों से भी प्रशंसा सुनना चाहती थी । अब उसका ध्यान अपने घर के बाहर सूखे हुए गमलों की तरफ गया । उनमें एक भी फूल नहीं था । वह सूखे पड़े थे । इसके लिए उसने उसके घर के बगल वाले घर के बाहर से चुपके से खूब सारे फूलों की टहनियाँ, खिले हुए फूलों के साथ चुरायीं और अपने गमलों में रोपकर उनको पानी दे दिया । उन गमलों को देखकर कहीं से भी नहीं लग रहा था कि वह कहीं से तोड़कर लगाए गये हैं । वह सचमुच ऐसे लग रहे थे, जैसे वह फूल उन्हीं गमलों में उगे हुए हों । अब वह उन गमलों को देख कर खूब खुश हो रही थी । जब मेहमान आये तो उनकी नजर सबसे पहले उन गमलों पर ही पड़ी । उन्होंने उन गमलों की खूब प्रशंसा की । वह भी प्रशंसा सुनकर फूली नहीं समा रही थी । केवल मन आहत था तो उसका, जिसके फूल चोरी हुए थे । वह अपने टूटे हुए फूलों को देखकर जैसे मन ही मन रो उठा था । वह जान तो सब कुछ गया था, परन्तु उस महिला का स्वभाव बिल्कुल भी अच्छा नहीं था, इसलिए जिसके फूल तोड़े गए थे, चोरी हुए थे, उसने उस महिला से बात करना उचित नहीं समझा । बस मन - मसोसकर रह गया । दूसरी तरफ वह महिला प्रशंसा सुनकर बहुत खुश थी । वह महिला अक्सर ऐसे ही करती थी, मगर कभी भी उनके चेहरे पर कोई भी शिकन (पछतावा) के भाव नहीं रहते थे ।

संस्कार सन्देश :- इस तरह के कार्यों से कोई भी प्रशंसा
पाकर क्षणिक खुशी पा सकता है, पर उसे सच्ची खुशी नहीं मिलती है ।